” दिल्ली विधासभा चुनाव को बेहद करीब आते देख चुनाव लड़ने का सपना देख रहे नेताओं ने टिकट की दौड़ में पुरे दम – ख़म के साथ लग गए है। वज़ीर पुर बीजेपी में टिकट की दौड़ में कौन बाजी मार सकता है इस पर राजनैतिक गलियारों और पोलिटिकल पंडितों के बीच चर्चाओं का बाजार गर्म है। पक्ष और विपक्ष में तथ्यों और तर्कों के साथ दावे हो रहे है। इन दावों में किस नेता में कितना दम है इस पर प्रस्तुत है हमारी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट : –
-राजेंद्र स्वामी , दिल्ली दर्पण
वज़ीर पुर | अगले साल फरवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में वज़ीर पुर विधान सभा क्षेत्र से टिकट की दौड़ में कौन किससे क्यों आगे है ? इस बार टिकट हथियाने में कौन कामयाब होगा ? इस सवाल पर दिल्ली की बेहद अहम् विधान सभा में शुमार वज़ीर पुर में चटकारे लेकर चर्चाएं हो रही है। सभी नेता टिकट हथियाने के लिए हर हथकंडा अपना रहे है। बात चाहे पोस्टरबाजी को हो , होर्डिंग लगाने की होड़ हो या क्षेत्र में होने वाले सामाजिक धार्मिक आयोजनों की , जनता के बीच जाने और अपना चेहरा चमकाने के लिए कोई नेता कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। क्षेत्र की दीवारें पोस्टर और पेंटिंग से भरी पडी है। इस प्रचंड प्रचार पर प्रशासन की नजर बेशक ना हो लेकर स्थानीय लोगों के बीच चर्चाओं का बाजार गर्म है। यूँ तो पोस्टरबाजी और होर्डिंग की होड़ में कोई भी पार्टी और नेता पीछे नहीं है लेकिन हम यहाँ बात अभी केवल बीजेपी की करेंगे। बाकी पार्टियों के नेताओं का जिक्र अपनी दूसरी खबर पर करेंगे।
वज़ीर पुर में बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ने का सपना पाले नेताओं की कतार कम नहीं है। बल्कि सबसे ज्यादा दावेदार बीजेपी में ही है। बीजेपी में इस बार जिन नेताओं को विधानसभा चुनाव की टिकट की दौड़ में शामिल बताए जा रहा है उनमें लगभग आधा दर्ज़न नेताओं के नाम शुमार है। जिन नामों की चर्चा है उनमें दिल्ली बीजेपी कोषाध्यक्ष सतीश गर्ग , अशोक विहार से पार्षद पूनम भारद्वाज , वज़ीर पुर से पार्षद और जोन चेयरमैन योगेश वर्मा , दिल्ली कैट अध्यक्ष और सुप्रभात क्लब के संस्थापक विपिन आहूजा के नाम चर्चा में है। कुछ ऐसे नेता भी है जो प्रत्यक्ष दावा पेश नहीं कर रहे है लेकिन अपने रसूक और राजनैतिक पहुंच से प्रत्याशी बनाने की संभावनाएं तलाश रहे है।
सबसे पहले हम बात करते है डॉ महेंद्र नागपाल की। डॉ महेंद्र नागपाल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में विधायक चुने गए थे। उसके बाद से लगातार चुनाव लड़ भी रहे है और हार भी रहे है। इसके बावजूद क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता अभी कम नहीं हुयी है। वजह डॉ नागपाल इस विधानसभा के हर क्षेत्र से पार्षद रह चुके है। लगातार 35 – 40 साल से राजनीती और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े है। वज़ीर पुर विधानसभा के हर कोने और हर समाज के लोग उन्हें जानते भी है और मानते भी है। इस सबके बावजूद यह सवाल बना हुआ है कि क्या इस बार फिर पार्टी उन्हें टिकट देगी ? कोई उनकी बढ़ती उम्र का हवाला दे रहा है तो किसी का मानना है कि बीजेपी में अभी डॉ नागपाल से बेहतर उम्मीदवार अभी भी कोई नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या लगातार चुनाव हारने के बाद भी उन्हें टिकट दिया जा सकता है ? पार्टी में भी चर्चा है कि जो नेता लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हार चुकें है उन्हें पार्टी तीसरी बार चुनाव नहीं लाडवा रही है। यदि ऐसा है तो क्या पार्टी किसी अन्य नेता पर दांव खेलेगी ? यदि हाँ तो वह नया चेहरा कौन होगा ? बाकी अन्य चेहरों पर भी क्षेत्र में राजनीति में जानकारी और रुचने रखने वाले लोग तथ्य और तर्कों के साथ चर्चा कर रहे है।
वज़ीर पुर विधानसभा चुनाव की टिकट में दूसरा सबसे बड़ा दावेदार दिल्ली बीजेपी में कोषाध्यक्ष सतीश गर्ग को बताया जा रहा है। सतीश गर्ग पूर्व दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और वज़ीर पुर के पूर्व विधायक स्व. मांगेराम गर्ग के पुत्र है। वज़ीर पुर बीजेपी की राजनीति लगभग कई तीन दशक तक स्व. मांगेराम गर्ग और महेंद्र महेंद्र नागपाल के इर्द गिर्द घूमती रही है। दोनों एक दूसरे के कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी रहे है। सतीश गर्ग लगातार दो दशक से वज़ीर पुर विधानसभा से टिकट की दावेदारी करते आ रहे है। लेकिन हर बार टिकट उनके लिए दूर की कोड़ी ही साबित रही है। विगत विधानसभा चुनाव में माना जा रहा था की इस बार पार्टी उन्हें जरूर टिकट देगी , लेकिन हर बार की तरह उनका यह सपना फिर चकनाचूर हो गया। इस बार भी पक्का दावा किया जा रहा है की पार्टी इस बार उन्हें निराश नहीं करेगी। बार बार नकार दिए जाने के बावजूद सतीश गर्ग में कभी विद्रोह के स्वर सुनाई नहीं दिए। पार्टी के लिए हमेशा समर्पित भाव से काम किया। यही वजह है की पार्टी में उन्हें कई बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां भी दी , उन्हें कोषध्यक्ष भी बनाया गया। उनकी वफादारी और पार्टी में उनकी सक्रियता को देखते हुए कहा जा रहा है कि पार्टी इतनी निष्ठुर नहीं हो सकती कि लगातार उनके सब्र का इम्तिहान ही लेती रहे। इस बार टिकट उनके राजनीतिक करियर का ही सवाल नहीं है बल्कि उनकी प्रतिष्ठा का भी सवाल है। इस सबके बावजूद उनकी टिकट को लेकर कयास जारी है। यह चुनाव बीजेपी की भी प्रतिष्ठा का सवाल है। विगत 28 साल से राजनीति वनवास झेल रही बीजेपी को इस बार तो हर हाल में जिताऊ उम्मीदवार ही चाहिए। ऐसे में यदि सर्वे हुआ तो क्या उसमें सतीश गर्ग का रिपोर्ट कार्ड बेहतर होगा इसे लेकर चर्चाएं उनके हक़ में नहीं है। सतीश गर्ग बहुत काबिल और कुशल वक्ता है, लेकिन उनकी व्यवहार कुशलता को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे है। यही वजह है की वज़ीर पुर की राजनीति में वे योग्यता होने की बावजूद उतने लोकप्रिय नेता कभी बन नहीं पाए। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेता भी भगवान् से दुआ कर रहे है कि यदि वे चुनाव लड़ें तो उनके सामने बीजेपी से सतीश गर्ग ही उम्मीदवार बने तो उनकी जितने की उम्मीदें बहुत बढ़ जाएंगी।
उपरोक्त तथ्यों और तर्कों कहा जा रहा है की बीजेपी इन दोनों से अलग किसी तीसरे नेता पर भी नजर जमा सकती है। वह तीसरा नेता कौन हो सकता है इस पर तीन नेताओं के नाम चर्चा में है। ये तीन नेता है पूर्व पार्षद और वज़ीर पुर का लालू कहे जाने वाले नेता सुरेश भारद्वाज की पुत्रवधु पूनम भारद्वाज। दिल्ली की स्लम और दलित वोट बैंक हमेशा बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती और चिंता बना रहा है। वज़ीर पुर में के बड़ा वोट बैंक इसी वर्ग का है। जिस इलाके से चुनाव लड़ने में बीजेपी नेताओं को पसीने आ जाते है उसी इलाके से सुरेश भारद्वाज परिवार चार बार चुनाव लड़ चुका है। इसमें तीन बार चुनाव जीतें है और के बार उन्हें मामूली अंतराल से हार का सामना करना पड़ा है। इस बार भी सुरेश भारद्वाज ने अपनी पुत्र वधु को चुनाव लड़वाया और जीत हासिल की। सुरेश भारद्वाज रोहिणी जोन के चेयरमैन रहे है तो उनकी पुत्रवधु पूनम भारद्वाज सिविल लाइन जोन की चेयरपर्सन रही है। पूनम भारद्वाज ने अपन योग्यता भी साबित की है और इलाके में उनकी कितनी पकड़ा है ,कितना प्रभाव है यह भी साबित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को राजनीती में आरक्षण देने का ऐलान भी किया है। ऐसे में पूनम भारद्वाज को महिला होने का लाभ भी मिल सकता है। एक तरफ महिला कोटे से उनकी टिकट मजबूत दिखाई देती है वहीँ बीजेपी के लिए झुग्गी वोट बैंक को साधना भी आसान हो सकता है। स्लम बस्ती की राजनीती के हर हथकंडे से सुरेश भारद्वाज परिचित है। वज़ीर पुर जहाँ से चुनाव लड़ने में बीजेपी नेताओं को पसीना आ जाता है वहां से यह परिवार चुनाव लड़ने को हमेशा तैयार रहता है। ऐसे में बीजेपी के लिए पूनम भारद्वाज के जिताऊ उम्मीदवार साबित हो सकती है। लेकिन चर्चा यह भी है कि क्या बीजेपी पार्षदों पर दाव खेलेगी ? दिल्ली नगर निगम में अभी उसके पार्षद भी कम है ऐसे इस आधार और आंकलन की कैसोटी पर उनकी टिकट खटाई में दिखाई दे रही है। सुरेश भारद्वाज के पुत्र और पूनम भारद्वाज के पति अशोक भारद्वाज पार्टी में बेहद सक्रीय है। वे युवा है , जिला में वे महामंत्री भी है। इस सबके बावजूद टिकट के दावेदारी पूनम के लिए ही हो रही है।
वज़ीर पुर बीजेपी में टिकट की दावेदारी में एक नाम योगेश वर्मा का भी मजबूती से लिया जा रहा है। योगेश वर्मा दो बार से निगम पार्षद है ,विगत नगर निगम में वे हर साल निगम की किसी न किसी महत्वपूर्ण पद पर रहे। अपनी योग्तया को उन्होंने साबित भी क्या है और अब भी पार्टी ने उन्हें दिल्ली नगर निगम केशव पुरम जोन में चेयरमैन की जिम्मेदारी दी है। पेशे से अच्छे वकील योगेश वर्मा जितनी तेज़ी से पार्टी में लोकप्रिय हो रहे है उसने लोगों के बीच उन्हें विधानसभा टिकट का दावेदार बना दिया है। अपने वार्ड में विकास और रचनात्मक कार्यों को लेकर वे हमेशा से चर्चा में रहते है। पूर्व विधायक डॉ महेंद्र नागपाल के सबसे निकट सहयोगी रहे है। अशोक विहार में पंजाबी वोट बैंक पर नागपाल की पकड़ रही है लेकिन अब पूरा प्रभाव योगेश वर्मा का भी बना हुआ है। अगर नागपल और योगेश वर्मा के बीच कोई आपसे सहमति और समझौता होता है तो विधानसभा टिकट हासिल करना इनके लिए कुछ आसान हो सकता है।
इन सबके बीच दिल्ली कैट अध्यक्ष और सांसद प्रवीण खंडेलवाल की सहयोगी विपिन आहूजा का भी लिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में विपिन आहूजा प्रवीण खंडेलवाल के साथ साये की तरह रहे। इसी निकता और उनकी सक्रियता को देखते हुए कहा जा रहा है की विपिन आहूजा भी विधानसभा जाने का सपना देख रहे है। कैट अध्यक्ष होने के अलावा विपिन आहूजा जाने माने सोसाइल क्लब सुप्रभात के भी संस्थापक अध्यक्ष है , अशोक विहार विहार व्यापार मंडल के भी अध्यक्ष रहे है। लेकिन उन्हें की करीबी रहे कई साथियों ने अलग से सद्भावना सोसाइटी बनाकर उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती दे दी है। इस सोसाइटी में विपिन आहूजा के कई करीबी लोग है जिनमें लगभग पंजाबी समाज की बहुलता है। यानी न एव पंजाब समाज के सर्वमान्य नेता है और व्यापारियों के और ना ही स्थानीय बीजेपी में कोई बड़ा कद ही है। उनकी टिकट का आधार केवल प्रवीन खंडेलवाल है बताया जा रहा है।
यहाँ यह भी जानना जरूरी है कि बीजेपी में टिकट वितरण में स्थानीय सांसदों को कितनी अहमियत दी जाएगी। यदि सांसद की पसंद को तरजीह दी तो उनकी पसंद कौन होगा इस पर भी प्रश्न है। प्रवीण खंडेलवाल के संसदीय क्षेत्र में कितने ही स्थानीय नेता ऐसे है जिन्हे वे बेहद पसदं करते है। ऐसे में वे खुलकर किसी का पक्ष लेंगे यह कहना मुश्किल है। ऐसे में विधान सभा चुनाव के लिए बीजेपी खेमे में कौन टिकट की दौड़ जीतता है यह देखना दिलचस्प होगा |