-अंशु ठाकुर, दिल्ली दर्पण टीवी
रणवीर इलाहाबादिया जो कि एक पॉपुलर कंटेंट क्रिएटर है . इन दिनों अपने एक बयान को लेकर काफी विवादों में फसे हुए है . जो बयान उन्होंने समय रैना के शो इंडिअस गॉट लटेंट में दिया था.रणवीर इलाहाबादिया के द्वारा दिए गए इस बयान की सोशल मीडिया पर काफी ज़्यादा आलोचना की जाने लगी.
पर क्या आपने कभी ऐसा सोचा की ऐसे क्या कारण है कि रणवीर इलाहाबादिया के केस को इतनी ज़्यादा हाइप मिल रही है? क्या इससे पहले सोशल मीडिया पर आज तक किसी ने आप्पत्तिजनक बयान नहीं दिया ? क्या इससे पहले सोशल मीडिया पर अश्लीलता नहीं फैलाई गयी ?
इन्फ्लुएंसर और कंटेंट क्रिएटर रणवीर इलाहाबादिया का केस इन दिनों काफी चर्चा में है जिसके बाद सोशल मीडिया पर काफी लोग तो उनकी कड़ी आलोचना कर रहे है वहीँ रणवीर इलाहाबादिया के फैंस उनका सपोर्ट भी कर रहे है.
और इसी बीच सोशल मीडिया पर एक बहुत बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या ररणवीर इलाहाबादिया सिर्फ एक मोहरा है जबकि इस केस को इतनी ज़्यादा हाइप मिलने का कारण कुछ और ही है ?

रणवीर इलाहाबादिया के केस को लेकर काफी ज़्यादा बवाल मचा हुआ है. और अब लोग रणवीर इलाहाबादिया के केस को लेकर लोग यह भी अंदाज़ा लगा रहे है कि सरकार रणवीर इलाहाबादिया के केस को अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है, सरकार इस केस की मदद से अपना ब्राडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन बिल 2023 को पास करवाने की कोशिश कर रही है और यही वजह है कि रणवीर इलाहाबादिया का यह मुद्दा हर जगह चर्चा का विषय बन गया है चाहे वो बॉलीवुड इंडस्ट्री हो, सोशल मीडिया हो या संसद.
संसद में रणवीर इलाहाबादिया का मुद्दा उठाते हुए कहा गया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कोई भी सेंसरशिप नहीं लगी हुई है. उनके कंटेंट के पास कोई दिशा नहीं है यह कुछ भी अनाब शनाब बोलते है.और यह ट्रेंड बन चूका है.और सेंट्रल गवर्नमेंट को इस पर दिन देना चाहिए और सख्त कानून बनाने चाहिए.
रणवीर इलाहाबादिया ने अपने द्वारा दिए गया आपत्तिजनक टिपण्णी को लेकर माफ़ी भी मांगी थी .इसके बावजूद देश के अलग अलग राज्यों में रणवीर के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ कि गयी और गिरफ्तारी कि भी मांग कि जाने लगी . जिसके बाद रणवीर इलाहाबादिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया .उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे वकील अभिनव चंद्रचूड़ के माध्यम से याचिका दायर की.
बीते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर इलाहाबादिया को कड़ी फटकार लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
- रणवीर इलाहाबादिया के दिमाग में कुछ बहुत गन्दा है. जिसे उन्होंने अपने कार्यक्रम में उगल दिया.
- वो माता -पिता का भी अपमान कर रहे है. ऐसे में अदालत उन्हें राहत क्यों दे ?
- ऐसे शब्दों के इस्तेमाल से सभी माता-पिता , बहन बेटियां शर्मिंदा हुई है.
- आप लोकप्रिय है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप समाज को हलके में ले
- क्या इस धरती पर कोई ऐसा है, जिसे इस तरह की भाषा पसंद आएगी ?
- आप और आपके लोग इस हद तक गिर गए है कि वे भ्रष्ट हो गए.
- सभी को देश में मौजूद कानूनों का पालन करना होगा.
- हम जानते है कि रणवीर ने ये संवाद ऑस्ट्रेलिया कार्यक्रम से कॉपी किया है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम चाहते है कि सरकार सोशल मीडिया मंचो पर परोसी जा रही सामग्री को लेकर कदम उठाये. यदि सरकार कुछ करने का तैयार है, तो हमे ख़ुशी होगी, अन्यथा हम इस कमी को इस तरह से नहीं छोड़ेंगे. अदालत ने कहा कि हमे इस मुद्दे के महत्व और संवेदनशीलता को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
इस केस ने ब्राडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन के मामले को बहुत हाईलाइट किया है. शायद सरकार इस मामले को एक उदहारण के रूप में देख रही है , जिससे यह दिखाया जा सके कि मीडिया कंटेंट की जवाबदेही कितनी ज़रूरी है. इस तरह ब्राडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन बिल को पास करने के लिए यह केस एक बहुत बड़ा सहारा हो सकता है.
इनसबसे पहले हम आपको यह बताते है कि ब्राडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन बिल 2023 आखिर है क्या ?
ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन बिल, 2023, डिजिटल और टेलीविज़न ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े नियमों को तय करता है. यह बिल, केबल टेलीविज़न नेटवर्क अधिनियम, 1995 की जगह लेगा. इस बिल के तहत, डिजिटल समाचार, ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म, और समसामयिक मामलों को रेगुलेट किया जाएगा
- ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटरों को सरकार के साथ पंजीकरण कराना होगा.
- ब्रॉडकास्टर्स को शिकायतों के लिए एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना होगा.
- शिकायतकर्ता अगर शिकायत अधिकारी के फ़ैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वह स्व-नियामक संगठन में अपील कर सकता है.
- ब्रॉडकास्टर्स को एक आंतरिक कंटेंट मूल्यांकन समिति (सीईसी) बनानी होगी.
- सभी ब्रॉडकास्ट कंटेंट को सीईसी की तरफ़ से सर्टिफ़ाइड किया जाएगा.
- डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाए जाने वाले कॉन्टेंट को रेगुलेट करने के लिए कॉन्टेंट इवैल्यूएशन कमिटी बनाई जाएगी.
अब यह देखना ज़रूरी होगा कि इस बिल का इम्प्लीमेंशन कैसे होता है और क्या यह सच में मीडिया की फ्रीडम को लिमिट करता है या नहीं . अगर रेगुलेशंस को सही तरीके से इम्प्लीमेंट किया जाए, तो यह मीडिया को बेहतर बनाने में मददगार हो सकता है, लेकिन अगर इसका मिसयूज होता है, तो यह फ्रीडम ऑफ़ प्रेस के लिए खतरनाक हो सकता है.