- अंशु ठाकुर , दिल्ली दर्पण टीवी
साकेत कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ झूठा रेप का आरोप लगाने और झूठी गवाही देने के मामले में कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि यह मामला एक हनी ट्रैप था जिसमें महिला ने पहले से सोची-समझी साजिश के तहत आरोपी को फंसाकर उससे पैसे वसूलने की कोशिश की.
एडिशनल सेशन जज अनुज अग्रवाल ने आरोपी के खिलाफ रेप, धमकी और यौन उत्पीड़न के आरोपों की सुनवाई करते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही न केवल विरोधाभासों से भरी है बल्कि यह स्वाभाविक रूप से असंगत, झूठी और मनगढ़ंत है. अदालत ने महिला के बयान में गंभीर विसंगतियों को उजागर किया, जैसे कि उसका दावा कि उसने एक निजी कंपनी में नौकरी शुरू की, जबकि उस समय वह कंपनी अस्तित्व में ही नहीं थी. जज ने कहा यह स्पष्ट है कि यह एक हनी ट्रैप था जिसमें आरोपी को जानबूझकर फंसाया गया.

साकेत कोर्ट के सेशन जज अनुज अग्गरवाल ने कहा कि गवाह द्वारा ली गई शपथ एक पवित्र कर्तव्य है और झूठी गवाही दंडनीय अपराध है. उन्होंने कहा अभियोजन पक्ष ने झूठी गवाही देकर न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किया. इसलिए, महिला के खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 379 के तहत मुकदमा चलाया जाए.
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी को बरी करना उसकी प्रतिष्ठा और मानसिक आघात की भरपाई नहीं कर सकता. जज अनुज अग्रवाल ने एक कविता की पंक्तियों का हवाला देते हुए कहा, न्याय तब तक अधूरा है, जब तक कि निर्दोष पर लगे झूठे आरोपों का हर्जाना नहीं मिलता.

1 – BNS धारा 379 – झूठी गवाही या कोर्ट को गुमराह करने पर 7 साल तक की कैद हो सकती है.
2 – झूठे आरोपों का शिकार – निर्दोष व्यक्ति मानहानि या भावनात्मक क्षति के लिए नागरिक मुकदमा दायर कर सकता है.
यह फैसला झूठे मामलों की बढ़ती संख्या और न्याय प्रणाली के दुरुपयोग पर चिंता जताता है. अदालत ने स्पष्ट किया कि झूठी शिकायतें न केवल निर्दोष लोगों को प्रभावित करती हैं, बल्कि सच्चे पीड़ितों के लिए न्याय प्राप्त करना भी कठिन बना देती हैं.