Friday, November 22, 2024
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जबतक रहेगा खाने में स्वाद, याद रहेंगे मसालों के सरताज

धर्मपाल महाशय का निधन

शंभु सुमन, दिल्ली दर्पण टीवी

मुख्य बिंदु :

  • तीन दिसंबर सुबह पांच बजकर 38 मिनट पर धर्मपाल महाशय ने ली अंतिम सांस ।
  • 1500 रुपये से शुरु किए अपने मसाले के काम को 2000 करोड़ रुपये तक का सफर ।
  • माता चानन देवी अस्पताल में हार्ट अटैक के कारण धर्मपाल महाशय ने दुनिया को कहा अलविदा ।
धर्मपाल महाशय अपनी गाड़ी के साथ

भारत में मसालों के बादशाह एमडीएच (महाशय दी हट्टी)  ग्रुप के मालिक महाशय धर्मपाल जी का निधन भले ही हर्ट अटैक से हुआ हो, किंतु उन्होंने कोरोना को हरा दिया था। उनका निधन तीन दिसंबर की अल सुबह 5.38 बजे हुआ। उन्होंने 98 वसंत देखे और मसालों के जरिए लोगों की जीभ-जुबान पर इस कदर बैठ गए कि उनको भूला पाना असंभव है। यही कारण है कि उन्हें मसालों का राजा कहा जाता था।  वे ‘दलाजी’ और ‘महाशयजी’ के नाम से भी लोकप्रिय थे।

महाशय जी अपने ब्रांड के साथ

पद्म भूषण से सम्मानित धर्मपाल गुलाटी का व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान रहा है। पिछले साल ही उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मभूषण से नवाजा था। वे न केवल एमडीएच के संस्थापक थे, बल्कि वह 20 स्कूल और 1 हॉस्पिटल भी चला रहे थे।

राष्ट्रपति से पद्मभूषण सम्मान लेते गुलाटी

घर-घर तक पिसे हुए मसालों का अस्सी के दशक में शुरू किया गया कारोबार धीरे-धीरे इतना फैल गया कि आज  एमडीएच की भारत और दुबई में 18 फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में तैयार एमडीएच मसाले दुनियाभर में पहुंचते हैं।  उसके 62 प्रॉडक्ट्स हैं। धर्मपाल गुलाटी अपने उत्पादों का ऐड खुद ही करते थे। उन्हें टीवी पर मसालों के बारे में बताते हर किसी ने जरूर देखा होगा। इस लिहाज से वे दुनिया के सबसे उम्रदराज ऐड स्टार थे।  कंपनी की मानें तो उत्तरी भारत के 80 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है।

एक ऐड के दौरान ली गई महाशय जी की तस्वीर

महज पांचवी कक्षा तक पढ़े महाशय गुलाटी का जन्म 27 मार्च, 1923 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था। 1947 में देश विभाजन के बाद वह दिल्ली आ गए। तब उनके पास महज 1,500 रुपये की पूंजी थी। भारत आकर उन्होंने परिवार के भरण-पोषण के लिए दिल्ली में ही तांगा चलाना शुरू किया। पैसे जुटाने के लिए और दूसरे कारोबार किए ।  साल 1937 में उन्होंने अपने पिता की मदद से व्यापार शुरू किया और उसके बाद साबुन, बढ़ई, कपड़ा, हार्डवेयर, चावल आदि का व्यापार किया। किंतु उनका ध्यान मासालों के कारोबार पर केंद्रीत हो गया।

तांगा चलाते समय की एडिट की गई एक तस्वीर

उन्होंने भले ही किताबी शिक्षा अधिक ना ली हो, लेकिन कारोबार में बड़े-बड़े दिग्गज उनका लोहा मानते थे। यूरोमॉनिटर के मुताबिक, धरमपाल गुलाटी एफएमसीजी सेक्टर के सबसे ज्यादा कमाई वाले सीईओ थे। बताते हैं कि 2018 में 25 करोड़ रुपये इन-हैंड सैलरी मिली थी। गुलाटी अपनी सैलरी का करीब 90 फीसदी हिस्सा दान कर देते थे। उनके पिता  महाशय चुन्नी लाल गुलाटी एक छोटी सी दुकान महाशय दी हट्टी से मसाला बेचा करते थे। धर्मपाल ने अपने पारिवारिक व्यवसाय को फिर से शुरू किया, और मसाले बेचना शुरू किया। इसके लिए 1953 में चांदनी चौक में एक और दुकान किराए पर ली।

एमडीएच मसाला को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 1959 में स्थापित किया गया था, जब धर्मपाल गुलाटी ने कीर्ति नगर में अपना कारखाना शुरू करने के लिए एक प्लाट खरीदा था। और बाद में, करोल बाग क्षेत्र में अजमल खान रोड पर एक ही खोला, और इसके कारण महाशियान डी हट्टी लिमिटेड (एमडीएच) का जन्म हुआ।

आज, कंपनी दुनिया भर में अपने मसाले बेचती है जैसे कि स्विट्जरलैंड, जापान, अमेरिका और कनाडा।

धर्मपाल के पास एक महाशय चुन्नी लाल चैरिटेबल ट्रस्ट है, जो 250 बेड के साथ एक अस्पताल की सुविधा प्रदान करता है। यह एक मोबाइल अस्पताल भी चलाता है जो झुग्गियों में रहने वालों तक पहुंचता है। इस ट्रस्ट द्वारा चार स्कूल भी चलाए जा रहे हैं, और यह लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

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