संवाददाता, दिल्ली दर्पण टीवी
दिल्ली।। केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों और उसके विरोध में प्रचंड होते किसान आंदोलन ने अचानक देश. दुनिया का ध्यान गांव, खेत, फसल आदि पर केंद्रित कर दिया है। जैसे – जैसे सरकार की हठधर्मिता बढ़ती जा रही है, वैसे – वैसे किसान का आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है। भारत की आबादी का अधिकांश हिस्सा प्रत्यक्ष या परोक्ष खेती. किसानी से जुड़ा है और वे किसान की दुर्दशा से दुखी है।
अतः आप कह सकते है कि आज भारत की बहुसंख्यक जनता इस आंदोलन से नैतिक और भावनात्मक रूप से जुड़ी है और सरकार के रवैये से दुखी है।आज देश में किसान और उपभोक्ता दोनों ही परेशान हैं कि एक को उसकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा जबकि दूसरे को वही चीज बेहद महंगे दामों पर मिल रही है। इधर शहरी लोग जगह-जगह हो रहे ट्रैफिक जाम के कारण परेशान है लेकिन सरकार पता नहीं किन सपनों में खोई है।
क्रूर मजाक तो यह है कि सारे राजनीतिक दल बारी – बारी से किसानों को बेवकूफ बनाते हैं और घुमा. फिरा कर देसी विदेशी दैत्याकार पूंजी वाली कंपनियों के कारिन्दों की तरह कुतर्क करते हैं। बस होता इतना है कि सत्ता या विपक्ष में होने के साथ अपनी सुविधानुसार इनके डायलॉग बारी-बारी से बदलते रहते हैं। भाजपा के मंत्री गत दिनों कूद – कूद कर बता रहे थे कि देखो यही कानून कांग्रेस भी ज्यों का त्यों लागू करना चाहती थी। अब हमने लागू कर दिया तो ये विरोध क्यों कर रहे हैं। भैया वे चोर थे तो क्या तुम भी चोर हो।
भारत में संसार की सभी तरह की जलवायु और मिट्टी पाई जाती है अर्थात विश्व की सब तरह की फसलें भारत में उगाई जा सकती हैं। इसके बावजूद भारत का किसान बदहाल है। कभी दलहन तो कभी तिलहन तो कभी प्याज कभी चीनी आदि की देश में अचानक कमी हो जाती है और महंगाई बेलगाम हो जाती है फिर सरकार को महंगे रेट पर यह चीजें आयात करनी पड़ती है। दूसरी तरफ कभी इनमें से किसी फसल की बहुतायत हो जाती है और किसान को अपनी फसल सड़क पर फेंकनी पड़ती हैं।
जब तक विदेशों से यह चीजें भारत पहुंचती हैं तब तक नई फसल आ जाती हैं और अक्सर यह आयातित चीजें बंदरगाहों पर सड़ती हैं या भ्रष्टाचारी और कालाबाजारी गिरोह दबाकर दावत उड़ाता है। बाढ़, सूखा, जंगली पशु, ओलावृष्टि, पटवारी, पुलिस, साहूकार, बदमाश व्यापारियों, चीनी मिल मालिकों से लड़ता.झगड़ता, लुटता .पिटता, बचता.बचाता, जैसे तैसे भारतीय किसान अपनी मेहनत और जिजीविषा के बल पर हर साल रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन कर दिखाता है।
इतना उत्पादन कि भयंकर रूप से बढ़ती जनसंख्या के लिए भी अनाज कम नहीं पड़ता। ऐसी स्थिति में सरकार और समाज को किसान का अभिनंदन करना चाहिए था उसे पुरस्कार देना चाहिए था पर उसे मिल रहा तिरस्कार है और वह धक्के खाते. खाते हताश परेशान हैं।