जहा झुगी वही माकन ये नारा नहीं बल्कि नेताओ डायलॉग सा बन गया था वादो की ऐसी लहर निकली जिसमे दिल्ली की जनता बहती चली गयी । बह के इतनी दूर निकल गयी की अब होश आया तो उनके पास कुछ भी ना था । कुछ ऐसा ही नज़ारा दिल्ली के शकूरपुर बस्ती में देखने को मिला जहा लगभग 5000 झुगिया उजाड़ दी गयी । टूटी झुगियो से अपना सामान समेटते हुए छोटे – छोटे बच्चो को खुले अस्समान के नीचे ठंड से ठिठुरते हुए ढक कर किसी का भी दिल पसीज जाएगा । आज भी इनके आखो में एक उम्मीद की किरण बाकी है की शायद इनका आशियाना मिल जाये । लेकिन कुछ लोग आज भी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे है ।