दिल्ली यूँ तो दिल वालों की कही जाती है लेकिन दिल्ली रामलीला के लिए भी जानी जाती है। नवरात्रि में दिल्ली की गलियों में सिर्फ श्री राम चंद्र के प्रहसन और जयकारे सुनाये देते हैं मानो त्रेतायुग के रामायण का हर पात्र सजीव हो जाता है । भव्य पंडाल के नीचे रामलीला का आयोजन सफल बनाने के लिए एक दो दिन नहीं बल्कि महीनो की तैयारी होती है। नार्थ दिल्ली हो या साउथ , ईस्ट हो या वेस्ट रामलीला की तैयारी के लिए आर्थिक प्रबंधन और व्यवस्था के दर्शकों की सुरक्षा पर लगभग सभी रामलीला कमेटियां जी तोड़ मेहनत करती है और कई महीने पहले से होमवर्क शुरू हो जाता है। तब जाकर जीवंत होती है रामायण की अद्धभुत गाथा जिसके आदर्श प्रेणना बन हजारो साल से अनवरत देश के जनमानस को दिशा दे रहे हैं। साथ ही साथ मेले का आयोजन भी इसे और दर्शनीय बना देता है। मंच पर रामायण के पात्रों को जीने वाले कलाकारों की मेहनत, समपर्ण और श्री राम कथा में अगाध विस्वास से ही ये संभव हो पाता है। आम लोगों की तरह आम लोगों के बीच से आये ये कलाकार चाहे वो परदे के सामने के हों या परदे के पीछे सभी अपनी जिम्मेदारियां और योगदान देते है। ऐसे ही रोहिणी सेक्टर 11 – और सेक्टर-16 के की रामलीला में रावण का रोल करने वाले ये जनाब अपने किरदार में इतने रमें हैं की परदे के पीछे भी उसी भाव भंगिमा और अंदाज के साथ अपने डायलॉग सुनाते है जैसे स्वयं रावण अट्टहास कर रहा हो। जो दिखाता है की इनका समर्पण कितना है। फिर चाहे वो हनुमान का रोल करने वाले कलाकर हों या स्वयं श्री राम किरदार को जीने वाले ये सभी बताते हैं की रामायण के पात्रों में उनका अगाध विश्वास ही उन्हें कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित करता है। दिल्ली में रामलीला सिर्फ एक कथा नहीं बल्कि यहां की तहजीब, विरासत, लोक नाट्य, और उत्सव है जो यहां के लोगों में रची बसी है। जिसका अप्रितम प्रवाह रामलीला कमेटी और लोंगों के सहयोग से हर वर्ष और प्रगाढ़ हो रहा है ।