दिल्ली की वैश्य और अग्रवाल समाज की लगभग सभी संस्थाओं ने संयुक्त रूप से सम्मलेन कर बीजेपी से अपनी जनसंख्या और काबिलियत के हिसाब से 60 से 70 निगम सीटों की मांग की है –हरियाण के उद्योग मंत्री विपुल गोयल की अगुवाई में करीब 2500 लोगों की मौजूदगी में प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी भरोसा दिया की आने वाली 26 तारीख को जब प्रत्याशियों की सूची जारी होगी तो अग्रवाल समाज को निराश नहीं होना पड़ेगा।
दिल्ली का अग्रवाल वैश्य समाज बीजेपी के साथ रहा है। ‘वैश्य अग्रवाल समाज और भाजपा’ नाम से हो रहा यह विशाल सम्मलेन बीजेपी को यही समझने की कोशिश है। इस समाज की शिकायत है की नोटबंदी के बाद हुयी तकलीफ के बावजूद भी वो बीजेपी के साथ खड़ा रहा। वह न संख्या में कम है और ना ही सेवाभाव में। लेकिन उसे उसकी संख्या के हिसाब से सत्ता में सांझेदारी नहीं मिल रही है। हरियाणा के उद्योग मंत्री विपुल गोयल की अगुवाई और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी की मौजूदगी में हुए इस सम्मलेन में अग्रवाल समाज ने मांग की है की उसे दिल्ली में उसकी संख्या और योग्यता के हिसाब से 60 से 70 सीटें चाहिए। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी उन्हें भरोसा दिया की आने वाले 26 तारीख को प्रत्याशियों की सूची जारी होगी तो अग्रवाल समाज को शिकायत नहीं होगी।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को भरोसा दिलाया गया की अगवाल समाज केवल कारोबार में ही आगे नहीं रहता बल्कि दिल्ली के विकास में भी आगे रहता है। देशभर में 25 करोड़ आबादी वैश्य समाज की है। बीजेपी ने जहाँ जहाँ से उन्हें टिकट दी वे कामयाब रहे है। फिर भी उन्हें सत्ता में सम्मानजनक साथ नहीं मिला। इस सम्मलेन के जरिये अगवाल समाज ने अपनी शक्ति भी दिखाई और अपनी शिकायत को भी सामने रखा। लेकिन मनोज तिवारी ने भी उन्हें गोलमोल जवाब ही दिया। ऐसे में बीजेपी उनकी मांगो को पूरा करेगी इसे लेकर समाज ज्यादा सकारात्माक और उत्साहित नहीं है।
दिल्ली की राजनीती में वैश्य समाज का दबदबा रहा है। नोटबंदी और मनोज तिवारी को बीजेपी अध्यक्ष बनाये जाने के बाद कहीं वैश्य समाज बीजेपी से खिसक न जाये बीजेपी को यह भी डर है। वैश्य समाज इसी डर का फायदा उठाकर बीजेपी से अपनी संख्या और शक्ति के हिसाब से दिल्ली नगर निगम में टिकटों की मांग कर रहा है। अब बीजेपी इनकी मांगों को किस हद तक पूरा करती है यह 26 तारीख को साफ़ हो जाएगा।
नई दिल्ली अग्रवाल जैन समाज का सदस्य ऑन लाईन बनना चाहता हूँ ”बिना मुद्रा”