ई-रिक्शों के बढ़ते चलन के बीच उनका नियमन करना और किसी दुर्घटना के बाद, किसी एक की जिम्मेदारी तय करने के मामले में मुश्किलें आ रही थीं। इसे देखते हुए MCD ने रिक्शों के रजिस्ट्रेशन की पहल की थी। लेकिन रिक्शा चालकों ने इस फैसले का काफी विरोध किया था।नगर निगमों ने अदालत को सूचित किया था कि उनके अनुसार शहर की सड़कों पर चल रहे रिक्शा की संख्या 30,000 से कुछ ज्यादा है। इनमें पंजीकृत और गैर पंजीकृत दोनों शामिल हैं। इस सूचना के बाद अदालत का यह निर्देश आया है।
हालांकि पीठ ने साल 2010 में अदालत द्वारा दिए गए एक आदेश को संज्ञान में लिया, जिसमें अदालत ने कहा था कि दिल्ली में चल रहे रिक्शा की संख्या 6 लाख से ज्यादा होगी। पहले वाले आदेश का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और आईएस मेहता की एक पीठ ने कहा कि नगर निगमों द्वारा एक हलफनामे में 30,000 का आंकड़ा देना सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि 2010 के फैसले के बाद से 7 साल गुजर चुके हैं।अदालत गैर सरकारी संगठन मानुषी और अन्य द्वारा साल 2007 में चांदनी चौक के पुनर्विकास और बिना मोटर वाले वाहन के लिए लेन बनाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।