Sunday, April 28, 2024
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वो 11 मुद्दे जिन्होंने मोदी के पक्ष में पलट दिया गुजरात का गेम

राजनीति-  बीजेपी ने साल भर में दूसरी बड़ी सियासी लड़ाई जीत ली है. 2017 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के चुनाव हुए थे. वहां बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी, इसके बाद गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी फिर से सत्ता पा चुकी है. लगातार छठीं बार गुजरात में बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई है. हालांकि, कांग्रेस ने भी धमाकेदार प्रदर्शन किया है. यही कारण है कि बीजेपी की ये सरकार सीटों के हिसाब से सबसे कम होगी. आइए उन 11 मुद्दों पर नजर डालें, जो बीजेपी की जीत में अहम कारण बनें.

  1. धुआंधार प्रचार

2014 चुनाव में नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव जीता था. इसके बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी ने किसी राज्य के लिए इतनी मेहनत की है. आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी और मोदी ने गुजरात के लिए इतने बड़े पैमाने पर प्रचार किया. गुजरात की 182 सीटों को मोदी ने छूने की कोशिश की. मोदी ने गुजरात में 34 रैलियां कीं. यूपी में भी मोदी ने सिर्फ 24 रैलियां की थीं.

  1. मोदी मैजिक

गुजरात चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देश में मोदी की लहर कम नहीं हुई है. मोदी ने एक बार फिर अपने दम पर चुनाव प्रचार किया. पूरा चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे को सामने रखकर लड़ा. जीएसटी-नोटबंदी जैसे कड़े फैसले, गुजरात के कारोबारियों की नाराजगी के बावजूद मोदी के नाम पर लोगों ने वोट किया.

  1. गुजरात अस्मिता का दांव

कांग्रेस के तगड़े प्रचार, पटेल आंदोलन और लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए मोदी ने गुजरात अस्मिता का दांव चला. उन्होंने अपनी रैलियों में लगातार गुजरात की इज्जत की बात उठाई. इससे कहीं न कहीं स्थानीय वोटर एक बार फिर बीजेपी की ओर झुका.

  1. ओबीसी को न छोड़ना बीजेपी के लिए फायदेमंद

गुजरात में पाटीदार आंदोलन के बीच बीजेपी ने पिछले दो साल में हड़बड़ी नहीं दिखाई. दो साल पहले गुजरात में बड़े पैमाने पर आंदोलन, हिंसा के बाद भी बीजेपी ने सीधे पाटीदारों की बात नहीं मानी. आनंदीबेन पटेल ने भी सीएम का पद छोड़ा पर आंदोलन के कई महीने बाद. कहा जाता है कि इसके पीछे का बड़ा गणित था. बीजेपी पाटीदारों के साथ खड़ा होकर ओबीसी को नाराज नहीं करना चाहती थी.

  1. राम मंदिर का जिक्र

गुजरात चुनाव में बीजेपी फिर से हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे की ओर लौटती. यूपी चुनाव के बाद बीजेपी नेताओं ने लगातार राम मंदिर का मुद्दा उठाया. इससे कभी हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहे गुजरात में फायदा ही मिला. इसी बीच दिसंबर के शुरुआती में सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मामले की फिर से सुनवाई शुरू हुई, वहां कांग्रेस नेता और इस मामले में एक पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने बयान दिया था- राम मंदिर मामले को 2019 तक टाल देना चाहिए. बीजेपी इसका फायदा उठाना चाह रही है. इसे मोदी ने अपने रैलियों में उठाया. कहा- कांग्रेस नेता नहीं चाहते कि राम मंदिर बने.

  

  1. चेहरा विहीन कांग्रेस

कांग्रेस की ओर से पहली बार 22 साल में राहुल गांधी ने इतना बड़ा प्रचार किया. पार्टी कार्याकर्ताओं के बीच उम्मीद भी दिखाई. पर गुजरात में कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं है जिसे स्थानीय लोग याद रख सकें. स्थानीय स्तर के कांग्रेस नेताओं से ज्यादा चर्चित हार्दिक पटेल का चेहरा था जो कि चुनाव नहीं लड़ रहे थे. लोगों को राहुल गांधी पर भरोसा भले ही हुआ पर उन्होंने सीएम के तौर पर कोई चेहरा नहीं दिखा जिसे आगे रखकर वे मतदान करें.

  1. गुजराती बनाम हिंदी

इस चुनाव में गुजराती बनाम हिंदी भी एक बड़ा फैक्टर रहा. 2014 के बाद देश-विदेश में लगातार ज्यादातर मौकों पर हिंदी में भाषण देने वाले पीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात में गुजराती को चुना. वे लगातार अपनी रैलियां गुजराती में करते रहे. न सिर्फ उन्होंने गुजराती में स्पीच दी बल्कि कच्छ, भरूच जैसे इलाकों में स्थानीय बोलियों में लोगों से संपर्क किया. इसका कहीं न कहीं फायदा मिला. वहीं, राहुल गांधी गुजराती नहीं जानते थे, इसके कारण वे लगातार हिंदी में ही लोगों से जुड़ने की कोशिश करते रहे.

  1. पटेल वोट में सेंध

हार्दिक पटेल ने आरक्षण के लिए पाटीदार आंदोलन खड़ा किया. बड़े पैमाने पर युवा उनके साथ आए. पटेल समुदाय पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो गया. पर चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने कई मौकों पर पटेल आंदोलन के साथ-साथ हार्दिक को कमजोर किया. हार्दिक के कई करीबियों जैसे रेशमा पटेल को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. इससे पटेल वोट्स में सेंध पड़ी. बीजेपी ने 182 में से 52 पाटीदारी चेहरों को टिकट दिया.

  1. इमोशनल कॉर्ड- गुजरात का बेटा

बीजेपी ने गुजरात में जमकर इमोशनल कार्ड खेला. करीब 13 साल तक सीएम पद की कुर्सी संभालने वाले मोदी ने खुद को लोगों से जोड़ने की बड़ी कोशिश की. उन्होंने खुद को गुजरात का बेटा कह कर प्रोजेक्ट किया. कहीं न कहीं उन्होंने लोगों को सीएम रहते हुए अपने लगाव को याद कराया. यह संदेश देने कि कोशिश की आपका बेटा दिल्ली में पीएम है, और आपको गुजरात में भी उसका साथ देना चाहिए.

  1. अमित शाह की तैयारी- मैनेजमेंट

बीजेपी के प्रचार और मोदी के चेहरे के बाद सबसे बड़ा कारण अमित शाह का मैनेजमेंट समझ में आ रहा है. कांग्रेस के प्रचार, सत्ता विरोधी लहर, वोट प्रतिशत में गिरावट के बाद भी अगर बीजेपी को मैजिक आंकड़े से ज्यादा सीटें मिल रहीं हैं तो इसके पीछे शाह का बूथ मैनेजमेंट पूरी तरह से कारगर रहा है.

  1. कांग्रेस के पास संगठन का अभाव

गुजरात में जो बीजेपी की ताकत थी वही कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी. बीजेपी के पास पार्टी के अलावा आरएसएस जैसे संगठनों के कार्यकर्ता थे, जो बूथ लेवल तक सक्रिय रहने के लिए जाने जाते हैं, वहीं कांग्रेस के पास सिर्फ प्रचार ही दिखा. राहुल गांधी के प्रचार को पार्टी के कार्यकर्ता सीट और बूथ लेवल पर ले जाने में कहीं न कहीं असफल रहे. इसके पीछे 22 साल में वहां विपक्ष का न होना भी एक कारण है.

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