नई दिल्ली। दिल्ली गुरुद्रारा चुनाव मामलों के जानकार स. इन्दर मोहन सिंह ने दिल्ली सिख गुरुद्रारा प्रबंन्धक कमेटी के अधीन चल रहे गुरु हरक्रिषन पब्लिक स्कूलों एंव अन्य शिक्षण -संस्थान के मौजूदा हालातों को गंभीर चिन्ताजनक करार देते हुये कहा है कि मौजूदा प्रंबन्धकों को इन संस्थानों में लगातार गिर रहे शिक्षा के स्तर तथा बढ़ रहे वितीय संकट के सच को कबूलना चाहिये। उन्होने कहा कि अगर इन संस्थानों के हालात अच्छे होते तो कर्मचारियों को कई-कई महीने वेतन का इन्तजार ना करना पड़ता तथा लाखों रुपये खर्च करके सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंग बोर्ड लगवाकर बच्चों को कमेटी के शिक्षण -संस्थानों में दाखिला लेने की अपील करने की आवश्यकता नही होती,जबकि दूसरे आम पब्लिक स्कूलों में दाखिला लेने के लिये भारी मशक्क्त करनी पड़ती है।
स. इन्दर मोहन सिंह ने कहा कि अगर कमेटी के मौजूदा अहुदेदार इन शिक्षण -संस्थानों को बचाना चाहते हैं तो वह आगामी निकट समय में गठित की जाने वाली गवरनिंग-बाडीयों में केवल उन शख्शियतों को चैयरमेन अथवा मैनेजर के अहुदे से निवाजें, जो शिक्षा-सुधार क्षेत्र के माहिर हों। उन्होने कहा कि इससे दिल्ली कमेटी के स्कूलों एंव अन्य शिक्षण -संस्थानों में षिक्षा का स्तर अच्छा हो सकता है तथा इनका वितीय संकट भी दूर किया जा सकता है। स. इन्दर मोहन सिंह ने बताया कि गुरुद्रारा एक्ट के अनुसार कमेटी के चुने हुये सदस्यों की मूल जिम्मेवारी गुरुद्रारों के प्रबंन्ध एंव धर्म-प्रचार की होती है, परन्तु यह कड़वी सच्चाई है कि लंम्बे समय से दिल्ली कमेटी के अधीन चल रहे स्कूलों तथा अन्य संस्थानों का प्रबंन्ध उन सदस्यों के हवाले किया जाता रहा है,जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र की कोई मूल जानकारी भी नही होती है, जिस कारण शिक्षा-सुधार क्षेत्र से वंचित चेअरमैनों तथा मैनेजरों के लिये यह संस्थान केवल पिकनिक-स्थल बनकर रह जाते हैं तथा कुछ चापलूस कर्मचारी इनकी अज्ञानता का फायदा उठाकर इनको दूसरे कर्मचारियों के विरुद्ध निजी रंजिशें निकालने के लिये इस्तेमाल करते रहे हैं। उन्होने कहा कि पिछली कमेटियों की गलत नीतियां इन संस्थानों की खस्ता हालातों का एक कारण हो सकती हैं, परन्तु इस लकीर को पीटने के स्थान पर प्रबंन्ध-सुधार के लिये ठोस कदम उठाने की आवष्यकता है