जहाँ सोच वहां शौचालय, विद्या बालन जी की यह बात देश के लोगों ने तो मान लिया, लेकिन शायद दिल्ली के प्रशासन को चला रही एजेंसियां इससे इत्तफाक नहीं रहतीं, तभी तो झुग्गी बस्तियों में लोगों को मजबूरन बाहर जाना ही पड़ता है, यहाँ कोई चाहकर भी प्रियंका भारती नहीं हो सकता क्योंकि जिस झुग्गी में सिर छुपाने की जगह ही कम पड़ हो वहां शौचालय के लिए सोचना भी लग्जरी लगता है। सरकारी सुविधा के नाम पर जो शौचालय हैं उनमे से आधे से ज्यादा बंद पड़े हैं , जो खुले हैं उनकी लाइन इतनी लम्बी है कि बारी से पहले ही काम ख़राब हो जाता है। ऐसे में उनके पास बाहर जाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता, लेकिन अब यहाँ भी एमसीडी के सफाई कर्मचारी डंडे लिए खड़े हो जा रहे हैं, और अमिताभ बच्चन की तरह पत्थर फेंक कर भगा रहे हैं।जिसकी वजह से वज़ीरपुर इंड्रस्ट्रियल एरिया के लोगों के लिए शौच एक संग्राम बनता जा रहा है। इनका कहना है कि वो बाहर मर्दानगी दिखाने नहीं, बल्कि मज़बूरी के मारे जाते हैं क्योंकि बिना जाए तो जिया भी नहीं जा सकता।
ख़ास बात यह है कि इससे जहाँ शौच करने वाले नाराज हैं तो उन्हें रोकने वाले भी खासे नाखुश हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तमगा लेने के लिए दिल्ली के तीनो नगर निगम अपनी भूमि के अलावा रेलवे, डीडीए और जल बोर्ड जैसी अन्य एजेंसियों की जमीनों को भी खुले में शौच मुक्त कराने पर तुली हुई हैं। इसके लिए निगम सभी सफाई कर्मचारियों को सुबह चार बजे से ही रेलवे पटरियों और ऐसी जगहों पर तैनात कर रहे हैं जहाँ लोग खुले में शौच के लिए आते हैं। ऐसे में सफाई कर्मचारियों वह काम भी करना पड़ रहा है, जो उनका है ही नहीं।
ये हालत तब है जब उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने दो साल पहले ही खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया है। अब ऐसे में अपनी नाक बचाने और स्वच्छता अभियान का तमगा लेने के लिए नगर निगम अपनी सारी ताकत तो रेलवे पटरियों पर लगा रही है, इससे वार्डों में सफाई की समस्या बढ़ने लगी है। वहीँ मानसून के सर पर होने के बाद भी नालों की सफाई को लेकर कुछ भी नहीं हो पा रहा है। इससे पार्षद भी नाराज हैं।
इसलिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम में मोदी जी का स्वच्छता और खुले में शौच मुक्त भारत अभियान लोगों के लिए एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है, जिससे जूझता हर शख्स बस यही कह रहा है कि मेरे दर्द की तुझे ऐसी सजा मिले कि आई हो जोर से और करने की जगह न मिले