गौर से देखिए इस वैन को, इसमें आपके बच्चे बैठे हैं कोई भेड़, बकरी या मुर्गी नहीं, लेकिन इस वैन में वो भेड़, बकरियों और मुर्गियों से ज्यादा भी नहीं हैं। ये वही मासूम हैं जिन्हे आप अपने पलकों पर बिठाकर रखते हैं, लेकिन इस वैन में इनकी हालत देखिए, एक छोटे से वैन में 20-20 25 -25 बच्चे ऐसे ठूंसे जाते हैं कि उनकी हर साँस भी आते जाते दूसरों से टकराती है।
आम तौर पर एक स्कूल वैन में आठ बच्चे ही बिठाए जाने चाहिए, लेकिन यहाँ देखिए तीन बैग तो पहले से ही वैन की छत पर मौजूद है, उसके बाद बच्चों का यह रेला अलग से। बैग से ही गिनते रहिए , चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस, एग्यारह, बारह, तरह, चौदह। इसके बाद भी करीब छह सात बच्चे निचे और हैं जो अपनी बैग भी रखने की आवाज लगा रहे हैं। कल्पना करके देखिए अगर आपको बस, मेट्रो या ट्रेन में ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है तो कैसा महसूस होता, इन बच्चों की तो ये हालत रोजाना ही दो बार होती है।
आपको बता दें कि एक स्कूल वैन के लिए सरकार ने कई नियम बना रखे हैं, मसलन वैन 5 साल से पुराना न हो, वैन पर लड़के और लकड़ी का चित्र बना हो, नंबर प्लेट पीला हो, वैन में एक फर्स्ट एड बॉक्स हो आदि। इसके साथ ही इसमें आठ बच्चों से ज्यादा नहीं बिठाए जाने का भी प्रावधान है , लेकिन इन नियमों का शायद ही किसी वैन में पालन होता है। लेकिन न तो माँ बाप ही इसकी परवाह करते हैं और न पुलिस। इसकी वजह से अक्सर इन स्कूली वैनों के साथ हादसे होते रहते हैं। वैन चालकों का तर्क है कि जब बच्चों के माता पिता ही इस ओर ध्यान देने के बजाय पैसे की तरफ ध्यान देते हैं, तो उन्हें क्या पड़ी है।
अशोक विहार इलाके में यह सब कुछ खुल्लेआम चलता रहता है लेकिन पुलिस को यह कभी नहीं दिखता, तो वहीँ स्कूल इसे अभिभावकों का मसला बताकर अपना पल्ला झाड़ लेता है तो वहीँ अभिभावकों वैन पर ज्यादा खर्च करने में असमर्थता जताते है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि अपने बच्चों को इस तरह स्कूल वैन में बिठाकर आप कितने पैसे बचा प् रहे हैं। आपको नहीं लगता कि इससे ज्यादा पैसे तो अपने शौख में खर्च कर देते हैं। ऐसे में सोचना आपको ही होगा, क्योंकि बच्चे आपके ही हैं