संवाददाता, दिल्ली दर्पण टीवी
नई दिल्ली।। किसान आंदोलन लोकतंत्र का एक खूबसूरत मेला दिखाई दे रहा है। यहां शानदार उत्सव का माहौल है। एक नई रंगत का विरोध उत्सव, जहां किसानों के समर्थन में लोग उमड़ रहे हैं। अपनी अपनी हस्ती के साथ। आंदोलन स्थलों पर कहीं कोई तनाव नहीं, कोई हिंसा बात नहीं। सत्ता के विरोध का यह गांधीवादी तरीका सभी को लुभा रहा है। गौरवान्वित कर रहा है। हमें ऐसे आंदोलन पर गर्व करना चाहिए जहां विरोध का एक बेहतरीन शालीन तरीका नजर आ रहा है।
स्कूल, कॉलिज, विश्वविद्यालयों के छात्र छात्राएं, लेखक, कवि, सिंगर आ रहे हैं। देश के मशहूर शख्सियतों का आना जाना आम लोगों को आकर्षित कर रहा है।पुस्तकों की स्टाल सजी हैं। धरना स्थलों पर खानेपीने के लिए लंगर लगे हुए हैं।परिवार, बच्चे घूमने आ रहे हैं और किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं।
भारत की सांस्कृतिक एकता की झांकी अगर देखनी हो तो किसान आंदोलन स्थलों से बेहतर और कोई जगह नहीं होगी। यहां न जाति, न धर्म, न वर्ग की पूछ है। जात न पूछो साधो की।जहां सत्ता में साधु की जात ही सर्वोपरि है। सत्ता के द्वारा विभाजित किए जा रहे धर्म, जाति, वर्ग से उकताए लोगों का यह शानदार उत्सव है। हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध की संकीर्णता से परे अनेकता में एकता के दर्शन सही मायने में किसान आंदोलन में किए जा सकते हैं।
दिनरात हिंदू, मुसलमान चीखते टेलीविजनों की कर्कश आवाजों का यहां शांतिपूर्ण, शालीन विरोध भी है।सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा और पंजाब से आए हज़ारों ट्रैक्टर और ट्रॉलियां खड़े हैं और हर बीतते दिन के साथ ये संख्या बढ़ती ही जा रही है। ट्रॉलियों में खाने.पीने का सामान लदा है और किसानों के रहने और सोने की व्यवस्था है।और सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे हैं। यहां किसानों के सम्मान में समूचा राष्ट्र नतमस्तक हो रहा है। लोकतंत्र की इससे बेहतर तस्वीर क्या हो सकती है
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