राजेंद्र स्वामी, संवाददाता
नई दिल्ली। कोरोना काल में कोर्ट का काम काज भी प्रभावित हुआ है और वकील भी आर्थिक तंगी का शिकार हुए है। ऐसे बीसीडी जहां अपने वकीलों को साढ़े नौ करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता दी है वही वह सरकार से भी उनके हक़ के लिए लड़ाई लड़ है और आरोप लगा रहा है कि सरकार अपनी वेलफेयर स्कीम में वकीलों के साथ भेदभाव कर रही है बीसीडी सरकार के इस भेदभाव वाली नीति को कोर्ट में भी चुनौती दे रही है
देश में वकील भी बड़ी संख्या में कोरोना महामारी का शिकार हुए है। कई बीमार हुए तो कई वकीलों की कोरोना के चलते मौत भी हुई कोर्ट का काम काज भी लगभग बंद ही रहा, ऐसे में बड़ी संख्या में ऐसे वकील भी थे जिनके सामने या तो रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया या फिर इलाज के पैसे का ऐसे में दिल्ली बार कॉउन्सिल अपनी इस कम्युनिटी के साथ खड़ा नजर आया और करीब साढ़े नौ करोड़ रुपये की आर्थिक सहायत के साथ साथ पतंजलि किट के जरिये उनके घर तक राशन भी पहुंचाया। दिल्ली में कुल सवा लाख वकील है जिनमें 30 हज़ार वकीलों ने आवेदन किया है। बार कॉउन्सिल ऑफ़ दिल्ली के सचिव पियूष गोयल ने कहा है की बीसीडी अपने वकीलों के साथ खड़ी है।
बीसीडी एक तरफ अपने वकीलों को आर्थिक मदद कर रही है तो वही वह दिल्ली सरकार से भी संघर्ष कर रही। बीसीडी दिल्ली सरकार पर आरोप लगा रही है वह सोशल वेलफरे स्कीम में वकीलों के साथ भेदभाव का रही है। वह केवल उन वकीलों को आर्थिक सहायता या बिना ब्याज लोन दे रही है जिनके पास दिल्ली का वोटर आईकार्ड है। जबकि अन्य सोशल स्कीम में ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली बिल, बीमा पेपर, जैसे कई दस्तावेजों में कोइ भी एक को ही मान्यता दे रही है। बीसीडी का कहना है की दिल्ली सरकार ने बीसीडी से राय लेने तो दूर उनकी बात भी नहीं सुन रही है। ऐसे में उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटा पड़ रहा है —
बीसीडी ने दिल्ली सरकार के इस कदम की तो प्रशंसा की है कि देश में कम से कम दिल्ली सरकार ने वकीलों के वेलफेयर पर ध्यान तो दिया लेकिन बीसीडी का यह भी कहना है कि कोई भी एडवोकेट देश के एक ही राज्य में रजिस्ट्रड हो सकता है। ऐसे में जो एडवोकेट बीसीडी में रजिस्टर्ड है उसके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए यह नेचुरल जस्टिस के विरोध भी है और मानवता के विरोध भी -ऐसे में यदि दिल्ली सरकार वकीलों को केवल वोटर कार्ड के आधार पर ही सोशल वेलफेयर स्कीम का लाभ दे तो यह सहायता कम अपने वोट बैंक बढ़ने वाला सियासी कदम ज्यादा माना जाएगा, अब बीसीडी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, अब इस सरकारी सहयता पर कोर्ट में संघर्ष होगा जिसका फैसला भी बड़ा दिलचस्प हो सकता है