Saturday, December 28, 2024
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पुलिस आयुक्त ने राजधानी में कानून व्यवस्था को प्रभावी और जवाबदेह बनाने के लिए उठाए सुधारात्मक कदम

ब्यूरो रिपोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने राजधानी दिल्ली में कानून व्यवस्था को प्रभावी और अधिक जवाबदेह बनाने के लिए कई सुधारात्मक उपाय किए हैं। गृह मंत्रालय के परामर्श से किए गए ऑडिट के बाद दिल्ली पुलिस के 500 से अधिक कर्मियों को सुरक्षा कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है।


दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल का भी पुनर्गठन किया गया है और तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को इसमें शामिल करके इसे और अधिक जवाबदेह बनाया गया है। ऐसा माना जाता है कि स्पेशल सेल को वरिष्ठ अधिकरियों की जानकारी के बिना कोई भी सोलो ऑपरेशन नहीं करने के लिए कहा गया है।

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इसके अलावा पुलिसबल को युक्तिसंगत बनाने के लिए प्रत्येक पुलिस स्टेशन को यूनिट के साथ एक्टिव ड्यूटी पर तैनात कर्मियों का ब्योरा देने के निर्देश दिए गए हैं। स्पेशल सेल और लॉ एंड ऑर्डर प्रमुखों जैसी विशेष पुलिस इकाइयों के पुनर्गठन के लिए कम से कम 79 पुलिस स्टेशन प्रमुखों का ट्रांसफर किया गया है।


सिक्योरिटी ऑडिट में यह पाया गया कि दिल्ली पुलिस के कुछ सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों के पास सातों दिन चौबीस घंटे निजी सुरक्षा अधिकारी हैं, जो न केवल अधिकारियों बल्कि उनकी पत्नियों और बड़े हो चुके बच्चों की भी सुरक्षा कर रहे थे। कुछ पुलिस अधिकारियों जिसमें पूर्व पुलिस आयुक्तों, पूर्व गृह सचिवों और अन्य शामिल हैं, उन्हें बिना किसी खतरे का आकलन किए सुरक्षा प्रदान की गई थी।
कई अन्य लोगों की सुरक्षा को भी दिल्ली पुलिस ने डाउनग्रेड कर दिया है क्योंकि उन्हें कोई खतरा नहीं था। केवल स्टेटस सिंबल के लिए उनके पास सुरक्षा थी। इसके अलावा पुलिस आयुक्त ने सभी पुलिस स्टेशनों को एक्टिव ड्यूटी पर तैनात कर्मियों की संख्या की रिपोर्ट करने के लिए कहा है, ताकि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अपने कर्मचारियों को नई पोस्टिंग पर अपने साथ ना ले जा सकें

यह पाया गया कि कुछ अधिकारी अपने साथ लगभग 20 से 30 कर्मचारियों को अपनी नई पोस्टिंग पर ले गए, जिससे पिछली यूनिट में स्टाफ की कमी हो गई। ऐसे में कर्मचारियों जिसमें इंस्पेक्टर भी शामिल हैं। पोस्टिड यूनिट के प्रति जवाबदेह हैं, वे जिस अधिकारी के लिए काम कर रहे थेए उसके निजी कर्मचारी बन गए थे। अधिकारियों द्वारा इन कर्मचारियों को सब्जी खरीदने और बच्चों को स्कूल छोड़ने जैसे व्यक्तिगत कामों पर लगाया गया था।

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