Monday, November 25, 2024
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निगम चुनावों को टाले जाने पर कांग्रेस और आप भाजपा पर हुई आक्रामक

दिल्ली दर्पण टीवी
नई दिल्ली।
राजधानी दिल्ली में तीनों नगर निगमों के चुनावों को टाले जाने पर कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है कि इसकी मंशा इन्हें लेकर साफ़ नहीं है और अपनी पराजय को देखते हुए उसने इन्हें टलवा दिया है !
नगर निगमों के चुनाव अप्रैल में कराये जाने की उम्मीदों के चलते अनेक संभावित उम्मीदवारों ने अपने अपने पक्ष में प्रचार शुरू कर दिया था ताकि पार्टी उन्हें टिकट दे सके ! लेकिन नौ मार्च को दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग आयुक्त एस के श्रीवास्तव ने मीडिया को कहा कि केंद्र सरकार तीनों निगमों को एक करने की योजना बना रही है और इसी वजह से निगम चुनावी कार्यक्रम टाल दिया गया है ! पहले ये चुनाव अप्रैल में कराये जाने प्रस्तावित थे !

इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और कहा कि केंद्र के हस्तक्षेप को रोकते हुए समय पर चुनाव कराये जाएं ! उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि भारतीय जनता पार्टी ने अपनी हार को देखते हुए इन्हे टलवा दिया है ! लेकिन कांग्रेस और भाजपा नेताओं का कहना है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तीनों निगमों को एक कर देने से इनकी वित्तीय
हालत में सुधर आ जायेगा !

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कांग्रेस नेता और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ नरेश कुमार ने कहा कि कांग्रेस ने दिल्ली की जनता को इन दोनों पार्टियों की असलियत से वाकिफ करा दिया है ! कांग्रेस ने पिछले छह महीने में अपनी पोल खोल यात्राओं और नुक्कड़ कार्यक्रमों के जरिये केंद्र और आप सरकार की असफलताओं को सबके सामने ला दिया है !

उन्होंने कहा कि भाजपा के इस षडयंत्र में आम आदमी पार्टी भी साथ है और दोनों पार्टियां जनता को दिखाने के लिए नूरा कुश्ती लड़ रही हैं ! उन्होंने कहा कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार ने अपनी मेहनत से दोनों पार्टियों की नाकामी का पर्दाफ़ाश कर दिया है! डॉ कुमार ने कहा कि इस मसले पर आप सुप्रीम कोर्ट गई है और वह लोगों को दिखाने के लिए किया गया है क्योंकि केजरीवाल भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से मिल गए हैं !

स्थानीय नेताओं का कहना है कि 2012 में निगम का बंटवारा प्रशासन के बजाय राजनीतिक अधिक था और अगर अब तीनों निगमों का एकीकरण संभव नहीं है तो कम से कम इनके वित्तीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल तो किया ही जा सकता है ! वर्ष 2012 के बाद सबसे अधिक घाटा पूर्वी दिल्ली नगर निगम को हुआ था क्योंकि उसके पास संसाधन बहुत कम थे !

पूर्वी दिल्ली नगर निगम की महापौर नीमा भगत का कहना है कि हम तीनों निगमों के एकीकरण के पक्ष में हैं क्योंकि वर्ष 2012 के निगम के विभाजन के बाद पूर्वी दिल्ली नगर निगम की लगातार उपेक्षा की गयी है और इस वित्तीय असमानता के कारण हम अपने कर्मचारियों को समय पर सैलरी भी नहीं दे पा रहे हैं ! इस संकट का सबसे अधिक सामना सेवानिवृत लोगों को करना पद रहा है !जानकारों का कहना है कि दिल्ली नगर डीएमसी एक्ट 490 कहता है कि केंद्र सरकार कभी भी हस्तक्षेप करके कॉरपोरेशन के कामकाज में दखल कर सकता है, खासकर तब जब निगम की वित्तीय हालत ठीक नहीं हो! लेकिन सरकार ने अब जो फैसला लिया है यह कदम मजबूरी में उठाया हुआ लग रहा है!

केंद्रीय गृह मंत्रालय के दखल के बाद साफ हो गया है कि तीनों नगर निगमों के एकीकरण के बाद ही दिल्ली में नगर निगम चुनाव होंगे! जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार नगर निगम को स्थगित कर इसका कार्यकाल 6 महीने आगे बढ़ा सकती है! साल 2017 में निगम के चुनाव के बाद 18 मई को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, 19 मई को दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और 22 मई को पूर्वी दिल्ली नगर निगम का गठन हुआ! इस लिहाज से निर्वाचन आयोग के पास 18 मई तक चुनाव कराने समय है!

वर्ष 2012 में निगम को यह सोचकर तीन भागों में बांटा गया था कि लोगों के बीच सीधी पहुंच बनेगी लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ ! पॉश इलाकों वाली साउथ एमसीडी रेवेन्यू पैदा करने में अव्वल रही, बाकी नॉर्थ और ईस्ट एमसीडी फिसड्डी साबित हुईं! कर्मचारियों की सैलरी लटकने लगी तो उसके बीच दिल्ली सरकार और बीजेपी एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे! दिल्ली के मेयरों ने 13 दिन तक धरना दिया कि एमसीडी के बकाया 13 हजार करोड़ रुपये दिल्ली सरकार रिलीज करे तो वहीं दिल्ली सरकार का आरोप है कि उसके दिए पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं!

अभी दिल्ली के अलग-अलग निगमों के तीन मेयर होते हैं वो भी एक साल के लिए! जब तक अधिकारी और नेता आपसे में काम समझते हैं, तब तक मेयर का कार्यकाल पूरा हो जाता है ! एकीकरण में कार्यकाल 5 साल करने की सिफारिश की जा सकती है! निगमों में मेयर के लिए महिला और अनुसूचित जाति का पद आरक्षित हैं! अभी दिल्ली एमसीडी में कुल 272 वॉर्ड हैं लेकिन इस बार यह फैसला किया जा सकता है कि वॉर्ड का परिसीमन आबादी के हिसाब से कर अधिकार क्षेत्र बढ़ा दिया जाए! इससे वॉर्डों की संख्या कम हो जाएगी और वॉर्ड संख्या कम होने के बाद नए सिरे से रोटेशन होगा!
हालांकि राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वॉर्ड की संख्या 272 ही रहने पर एकीकरण के बाद भी रोटेशन नहीं होगा ! अब देखना यह है कि इस मुद्दा क्या रूप लेगा क्योंकि तीनों पार्टियां एक दूसरे पर आक्रामक हो गयी हैं !

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