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नई दिल्ली। एक सवाल जो शायद आप खुद अपने ही आप से पूछ सकते है| कितना ही वक्त गुजरा जब आपने आसपास गौरैया को देखा हो| क्योंकि अब शहरों में गौरैया नहीं दिखती और न ही हाई राइजिंग इमारतों में बने फ्लैटों में घरौंदे दिखते हैं| अगर इस खूबसूरत चेहचाहट को बचाना चाहते हो तो इस प्यारे से पक्षी के लिए आपको अपने घरो में ही घरौंदे बनाएं, पानी का पात्र और दाना रखें, क्या पता आसमां से फुदकती हुई गौरैया आपके आंगन या छत पर आ जाए|
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शहरों में वैसे भी गौरैया की संख्या में गिरावट आई है, जिसकी वजह गार्डन जैसे जगहों की कमी है. जिस कारण गौरैया की चहचहाहट अब कानों में नहीं गूंजती है. ऐसे में हमें ‘गौरैया संरक्षण’ के लिए मुहिम चलाने की जरूरत है| अपने आसपास कंटीली झाड़ियां, छोटे पौधे और जंगली घास लगाने की जरूरत है. फ्लैटों में बोगन बेलिया की झाड़ियां लगाई जाएं ताकि वहां गौरैया का वास हो सके.
लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि हम सिर्फ एक दिन जब गौरैया दिवस आता है, तभी चेतते हैं और गौरैया की सुध लेते हैं. न ही हम पर्यावरण बचाने की दिशा में कोई कदम उठाते हैं और न ही ऐसे पक्षियों को, जिनका विकास मानव विकास के साथ ही माना जाता है. यह पक्षी इंसानी आबादी के आसपास ही रहती है, लेकिन बदलते शहरीकरण ने इस पक्षी को इंसानी आबादी से दूर कर दिया है. यही वजह है कि देश की राजधानी दिल्ली में गौरैया राज्य पक्षी घोषित किया गया है, ताकि इसका संरक्षण हो सके और मनुष्य की इस प्राचीनतम साथी को बचने की कोशिश जारी रह सके.
हमें हमेशा याद रखना चाहिये, कि कैसे बचपन में गौरैया हमारे आसपास ही मंडराती थी. चहचहाहती थी. फुदक कर आ जाती थी. यह एक ऐसा पक्षी है, जो इंसानों के करीब रहना पसंद करता है और डरता भी नहीं है. पहाड़ी घरों के चाक और गोठ में गौरैया का वास होता था. बचपन से ही हमने इस पक्षी को अपने सबसे ज्यादा करीब पाया और अपने आसपास ही चहकते हुए देखा. लेकिन, अब दूर-दूर तक ना तो हम इसकी चेहचाहट सुन पाते और न ही इसे देख पते |
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