राजेंद्र स्वामी
दिल्ली।। दिल्ली नगर निगम में नेताओं का दखल ख़त्म हुआ और अब निगम अफसरों के हवाले है। निगम में अधिकारियों की सत्ता को अभी एक महीना ही पूरा हुआ है लेकिन नेता बहुत याद आ रहे है। जो अधिकारी इस बात से बेहद खुश थे कि उन्हें पार्षदों और नेताओं से छुटकारा मिल गया है अब वे परेशानी में है। पहले किसी भी शिकायत विवाद या मुद्दे पर आयुक्त स्तर पर या बड़े अधिकारीयों तक वे उनके माध्यम से बात पहुंचा दिया करते थे। नेता और पार्षद उनके बीच के कड़ी थी जो उनके कष्टों पर मरहम लगा देती थी। लेकिन अब वह कड़ी टूट जाने से वे खुद को ज्यादा तकलीफ में पा रहे है। जेई से लेकर निगम आयुक्त तक अपना पक्ष अपनी बात और समस्या को समझने के लिए एक लम्बी चैन है जिसने अब उनका सुख चैन ही छीन लिया है।
स्थानीय RWA अपने कार्यों के लिए अब सीधे डीसी और निगम को मेल और पत्र लिख देती है। चाहे वह शिकायत हो या कोई मुद्दा ,अब उस पर जबाब देने में उनकी जान आफत में आ जाती है। पार्षद इस पर पल्ला झाड़ लेते है की अब उनके पास पावर नहीं है। लिहाज़ा जनसुनवाई ,सम्पर्क जो पहले पार्षद के माध्यम से होते थे अब वह अफसरों को करना पड़ रहा है।
निगम के मौजूदा माहौल में प्रसन्न पार्षद भी नहीं है। अपने हाथ से सत्ता जाने का दुःख क्या होता यह यह बताने की जरूरत नहीं है। जो पार्षद और निगम के बड़े नेता अधिकारीयों को आदेशात्मक भाषा में बात करते थे अब वे अनुरोध की भाषा बोलते है। उस पर भी अधिकारी उनकी सुन नहीं रहे थे। लिहाज़ा अब नेताओं ने नया तरिका निकाल लिया है। अब वे जनता को ऐसा रास्ता दिखाते है जिससे अधिकारी परेशानी में पड़ जाता है। निगम में भ्र्ष्टाचार की जड़ें कितनी मजबूत है यह अधिकारीयों और ग्रह मंत्रालय से छुपा नहीं है। लिहाजा अब सरकार भी भ्र्ष्टाचार पर सख्त है। अब नेताओं ने अधिकारियों को धमकी देनी शुरू कर दी है की यदि उन्होंने उनकी नहीं सुनी तो वे जनता को को शिकायत और RTI के काम पर लगा देंगे। मीडिया में उनकी पोल खोल देंगे। इसी धमकी ने नेताओं की नाक में इतना दम किया है कि वे घुटनों पर आ गए है। अब खबर है कि वे ताकतवर और तकनीकी जानकारी रखने वाले नेताओं से मदद ले रहे है। उनकी बात भी सुनने लगे है।
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परेशानी पब्लिक को भी कम नहीं है। अपनी समस्याओं और कार्यों का बोझ जो नेताओं पर डाल देती थी अब उसकी दिक्कत यह है कि वह किसके पास जाये। पार्षद उनके इलाके में ही रहता था जब चाहे उसे झाड़ लगाकर भी काम करा लेते थे। लेकिन अब MCD ऑफिस दूर होने और अधिकारीयों के ऑफिस में नहीं मिलने से जनता भी परेशान है। जरूरी नहीं की जनता का काम और उनकी समस्या का समाधान जोन स्तर पर ही हो जाये , ऐसे में यदि उन्हें सिविक सेंटर जाना पड़े तो उन्हें पसीने आ जाते है। लिहाज़ा निगम के मौजूदा माहौल में मुसीबत पब्लिक , पॉलिटिशन और प्रशासन तीनो की बढ़ गयी है।
ऐसा नहीं है की केंद्र सरकार की इसकी जानकारी नहीं है। खबर है कि इस माहौल को देखते हुए नगर निगम अधिकारीयों और जनता के बीच कड़ी का काम करने वाली कुछ कमेटियां बनाने जा रही है। यह इसलिए भी जरूरी है कि स्थानीय नेताओं को एडजस्ट भी किया जा सके। अब बीजेपी से जुड़े नेता इस जुगत में है की वे किसी न किसी तरह किस ने किसी कमिटी में जगह बना सकें ताकि उनकी ठंडी पड़ चुकी राजनीति में सत्ता का रंग आ सके। लेकिन सवाल है की विपक्ष के नेताओं क्या इसमें जगह मिलेगी ?
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