दावा है कि भगत सिंह ने सावरकर की चर्चित किताब ‘1857- इंडिपेंडेंस समर’ का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया था, जबकि भगत सिंह द्वारा अनुवादित पुस्तकें आयरिश क्रांतिकारी डेन ब्रीड की आत्मकथा और सचिंद्र नाथ सान्याल की बंदी जीवन थी।
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
इन दिनों विनायक दामोदर सावरकर को लेकर एक अलग बहस छिड़ गई है। तमाम बातें कही और लिखी जा रही हैं। एक खेमा उनकी तारीफ कर रहा है तो दूसरा आलोचना। इसी क्रम में सावरकर की भगत सिंह से भी तुलना की जा रही है। तमाम पहलुओं को नापा-तौला जा रहा है। स्वतंत्रता की लड़ाई में दोनों जेल गए। भगत सिंह को शहादत देनी पड़ी और सावरकर को रिहाई मिल गयी। भगत सिंह के सावरकर के साथ संबंधों को लेकर क्या दावे किए जाते हैं, आइए जानते हैं।
भगत सिंह ने किया था सावरकर की किताब का अनुवाद?
प्रसिद्ध मराठी इतिहासकार वाई.डी फड़के के अनुसार भगत सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के विषय में सावरकर की चर्चित किताब ‘1857- इंडिपेंडेंस समर’ का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया था। जबकि इस दावे के विपरीत इंडियन कल्चर फोरम की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में दावा किया गया है कि सावरकर की पुस्तक का ऐसा कोई अनुवाद नहीं मिला है और न ही प्रकाशित किया गया है। भगत सिंह द्वारा अनुवादित पुस्तकें आयरिश क्रांतिकारी डेन ब्रीड की आत्मकथा और सचिंद्र नाथ सान्याल की बंदी जीवन थी।
सावरकर की किताब से ली थी भगत सिंह ने प्रेरणा ?
इतिहासकार वाई.डी फड़के दावा करते हैं कि भगत सिंह ने सावरकर की पुस्तक ‘हिंदूपदपादशाही’ से भी प्रेरणा ली थी और अपनी जेल डायरी में उन्होंने इस पुस्तक से कुछ उदाहरण भी लिए हैं। हालांकि कई इतिहासकारों का कहना है कि जिस जेल डायरी में सावरकर की किताब के कुछ अंश मिले हैं वह डायरी भगत सिंह के लिए एक “स्क्रिबलिंग पैड” की तरह थी, वह जो कुछ भी पढ़ते थे उसे लिखते थे, इस तरह के उल्लेखों को स्पष्ट रूप से भगत का सावरकर के विचारों को समर्थन के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
इतिहासकार वाई.डी फड़के के मुताबिक सावरकर के रत्नागिरि स्थित घर पर हमेशा भगवा झंडा लहराता था। भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी के अगले दिन सावरकर के घर से भगवा झंडा उतार काला झंडा लगा दिया गया था। सावरकर ने भगत सिंह की शहादत पर कविता भी लिखी थी।
इसके विपरीत दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शमशुल इस्लाम सावरकर और भगत सिंह के बीच जमीन-आसमान का अंतर देखते हैं। अपने एक लेख में वह लिखते हैं कि ‘समकालीन दस्तावेज इस तथ्य के साक्षी हैं कि जब भगत सिंह और नेताजी ने दमनकारी ब्रिटिश शासन और द्वीराष्ट्र सिद्धांत के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उस वक़्त सावरकर ने समावेशी स्वतंत्रता संग्राम को हराने के लिए ब्रिटिश शासकों और मुस्लिम लीग का साथ दिया था’।