Indian Politics : शरद पवार ने कहा-सभी क्षेत्रों में चाहे कला हो, लेखन हो या कविता हो सबसे ज्यादा योगदान मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने दिया है
सी.एस. राजपूत
देश में वोटबैंक की राजनीति ऐसी हो गई है कि राजनीतिक दलों के नेता जो कुछ भी बोलेंगे तो उसमें वोटबैंक की राजनीति होगी ही। सेकुलरिज्म के नाम पर तो बस नेताओं को मुस्लिमों के अलावा कुछ दिखाई देता नहीं है। अब एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को ही देख लीजिये कि उन्होंने शुक्रवार को दावा किया कि बॉलीवुड में सबसे बड़ा योगदान अल्पसंख्यकों ने दिया है। उन्होंने कहा कि बॉलीवुड को टॉप पर ले जाने में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का बड़ा योगदान है, जिसे कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि बॉलीवुड में सबसे ज्यादा योगदान मुस्लिम समुदाय की तरफ से आया है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों और उर्दू भाषा ने देश के सभी क्षेत्रों में योगदान दिया है।
पवार ने कहा, “आज सभी क्षेत्रों में चाहे कला हो, लेखन हो या कविता हो, सबसे ज्यादा योगदान अल्पसंख्यकों से आया है और उर्दू भाषा में आया है।” पवार के इस बयान पर एक शख्स ने सवाल किया कि तो फिर गुलशन कुमार को किसने मारा था। बनारसी छोरा (gkj) नाम के एक ट्विटर यूजर ने एनसीपी प्रमुख से यह सवाल किया है।
शरद पवार ने नागपुर में कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को लगता है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा होने के बाद भी उनको उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है। वह विदर्भ बौद्धिक मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इसमें एनसीपी प्रमुख ने कहा कि मुसलमान समुदाय को लगता है कि उन्हें उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है, जो वास्तविकता है। इस पर सोच-विचार करना चाहिए।
कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उर्दू स्कूलों और शिक्षा पर भी विचार किया जाना चाहिए और इसके साथ राज्य की मुख्य भाषा के बारे में भी विचार करने की आवश्यकता है। शरद पवार ने कहा कि सभी समुदायों में बेरोजगारी एक मुद्दा है। मुस्लिम समुदाय कला, कविता और लेखन के माध्यम से देश में एक बहुत बड़ा योगदान दे सकता है। उन्होंने कहा कि एनसीपी ने हमेशा अल्पसंख्यकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है क्योंकि पार्टी के 8 सांसदों में से 2 मुसलमान हैं।
वहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान पर पलटवार करते हुए पवार ने कहा कि इस तरह के बयान पर असल में अमल होना चाहिए। इसे केवल दिखावे के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। भागवत ने अपने बयान में सामाजिक भेदभाव करने वाली हर चीज को खारिज करने की बात कही थी।