पुलिस बड़ी मुश्किल से समझाबुझा कर घरों को भेजा
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
भुगतान के लिए सहारा निवेशकों की बेताबी न केवल सहारा प्रबंधन बल्कि शासन-प्रशासन के लिए भी एक बड़ा चैलेंज बनती जा रही है। एक ओर जहां सहारा इंडिया के निदेशकों के खिलाफ देशभर में तमाम एफआईआर दर्ज कराई जा रही हैं तो दूसरी ओर विभिन्न प्रदेशों में निवेशक और जमाकर्ता सड़कों पर उतरे हुए हैं। शासन-प्रशासन के लिए एक और बढ़ी दिक्कत और यह बनती जा रही है अब सहारा के पैसे देने की अफवाह भी उड़ने लगी हैं। हाल ही में सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की कर्मस्थली रहे गोरखपुर में सहारा ऑफिस पर निवेशकों का जमावड़ा लग गया। इन निवेशकों को खबर मिली थी कि सहारा आफिस पर निवेशकों का पैसा मिल रहा है। गोरखपुर सहारा आफिस पर जब इन निवेशकों का जमावड़ा लगा तो सहारा प्रबंधन ने पुलिस बुला ली और पुलिस ने किसी तरह से समझा-बुझाकर इन निवेशकों को उनके घरों को भेजा।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि इस तरह की अफवाहें देश के विभिन्न प्रदेशों के विभिन्न शहरों फैलनी शुरू हो गईं तो सहारा प्रबंधन के साथ ही शासन प्रशासन के लिए यह मामला कितना पेचीदा हो जाएगा ? ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि सहारा प्रबंधन और शासन प्रशासन इस तरह की अफवाहें उड़ाने का मौका दे ही क्यों रहा है ? जब सहारा के सभी आफिस विधिवत रूप से चल रहे हैं तो निवेशकों और जमाकर्ताओं के पैसे क्यों नहीं दिये जा रहे हैं ? या फिर सहारा प्रबंधन इन निवेशकों को खदेड़ने के लिए पुलिस को क्यों बुला रहा है ? क्यों पुलिस प्रशासन इन निवेशकों को समझा-बुझाकर उनके घर भेज दे रहा है। सहारा प्रबंधन या फिर पुलिस प्रशासन इन निवेशकों के भुगतान के लिए प्रयास क्यों नहीं कर रहा है ? सहारा प्रबंधन या फिर पुलिस प्रशासन इस तरह की अफवाह फैलाने का मौका ही क्यों दे रहा है ? क्यों नहीं निवेशकों का भुगतान कराया जा रहा है ?
दरअसल सहारा निवेशकों को गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि सहारा के लगभग सभी ऑफिसों में विधिवत रूप से काम हो रहा है। उनके पैसे दिलवाने के प्रयास जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट और सेबी के साथ ही विभिन्न सरकारें उनका पैसा नहीं दिलवा पा रहे हैं। इन लोगों ने विभिन्न कोर्ट के साथ ही सेंट्रल रजिस्ट्रार के यहां भी अपनी शिकायत भेजी हैं। पीएमओ, राष्ट्रपति भवन, विभिन्न राज्यों की सरकारों को अपनी शिकायत की हैं। देश के विभिन्न थानों में मामले दर्ज करवाये हैं। इन सबके बावजूद उनका पैसा नहीं मिल पा रहा है। इन निवेशकों की पीड़ा और गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि सुब्रत राय ने जितनी भी बुलंदी छुई है और जितनी भी राजनीतिक पैठ बनाई है उनके द्वारा लाये गये पैसों से बनाई है। अब उनका पैसा उन्हें नहीं मिल रहा है। सहारा के एजेंटों की सबसे बड़ी परेशानी इस बात को लेकर है कि जिन लोगों से व्यवहार में इन्होंने सहारा में पैसा जमा कराया है वे अब पैसे के लिए तकादा कर रहे हैं। सहारा प्रबंधन ने भुगतान मामले में हाथ खड़े कर दिये हैं, जिसके चलते वे लोग अपने घरों में नहीं जा पा रहे हैं। कितने एजेंटों के तो घरों में तोड़फोड़ की गई है।
जमीनी हकीकत यह है कि इन आंदोलित निवेशकों ने गली-मोहल्लों में घूम-घूम कर रेहड़ी पटरी वाले, मोची, सब्जी वाले मतलब आम आदमी से एक-एक पैसा इकट्ठा कर सहारा में जमा कराया था। ये लोग अब अपने पैसों के लिए तकादा कर रहे हैं। इन सभी लोगों ने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए सहारा द्वारा दिये गये मोटे लालच में अपने खून पसीने की कमाई को सहारा में जमा कराया था। किसी निवेशक ने अपनी बेटी की शादी के लिए पैसा जमा किया था तो किसी ने अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए। अब जब सहारा पैसा नहीं दे रहा है तो कितने निवेशकों की बेटियों की शादियां नहीं हो पा रही हैं तो कितने के बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। निवेशक बेचारे सड़कों पर हैं और सुब्रत राय के साथ ही दूसरे निदेशक और दूसरे सहारा पदाधिकारी मौज मार रहे हैं। सब कुछ हो रहा है पर उनका पैसा नहीं मिल पा रहा है।
यही सब वजह है कि जहां राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय देव शुक्ला के नेतृत्व में ऑल इंडिया जनांदोलन संघर्ष न्याय मोर्चा ने देशभर में सहारा इंडिया के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है वहीं ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार के संयोजक मदन लाल आजाद की अगुआई में बड्स एक्ट तहत निवेशकों की लड़ाई लड़ने के लिए भारत यात्रा निकाली जा रही है। कहने को तो देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के अलावा विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में भी यह मामला उठ चुका है पर निवेशकों को पैसा नहीं मिल पा रहा है।
दरअसल सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय और दूसरे निदेशक ओपी श्रीवास्तव ने देशभर में सहारा इंडिया के कार्यालय खोलकर लोगों को मोटा लालच देकर अपने एजेंटों के माध्यम से मोटा कलेक्शन कराया है। कहा तो यह भी जाता है कि एक राज्य से एक महीने में हजारों करोड़ रुपये सहारा इंडिया में जमा होता था। ये सब इन निवेशकों और जमाकर्ताओं की कड़ी मेहनत का पैसा था। सहारा इंडिया में प्रबंधन ने यह व्यवस्था कर रखी थी कि जब किसी निवेशक की मैच्योरिटी पूरी हो जाती तो फिर से लालच देकर दूसरी स्कीम में वह पैसा ट्रांसफर करवा दिया जाता। मतलब जिस व्यक्ति ने सहारा में पैसा जमा करवा दिया उसे वापस नहीं दिया गया बल्कि दूसरी स्कीमों में ट्रांसफर करवाया जाता रहा है। अब जब एक-एक निवेशक का लाखों रुपये पैसा सहारा इंडिया पर हो गया है तो सहारा इंडिया ने सेबी का हवाला देते हुए हाथ खड़े कर दिये हैं। निवेशक बेचारे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और सहारा प्रबंधन मजे मार रहा है।