Monday, November 18, 2024
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 Mission 2024 : मोदी के मुकाबले का नेता भ्रष्टाचार मुक्त, विपक्षी एका कराने वाला, वंशवाद से परे, पिछड़ी जाति का, अनुभवी, समतावादी विचार का समावेशी और हिंदी पट्टी का हो तो ही 2024 पर हाथ डालना नहीं तो फिर पिटोगे! वह भी ज़ोर से !

राजकुमार जैन 

मैं हिमाचल की हालत और चुनाव में कैसे बदलाव हुआ इससे कुछ बेहतर ही वाक़िफ़ हूँ उन लोगों के मुक़ाबले जो अब दिन रात एक कर रहे हैं  कि कैसे भी केवल और केवल जनता के ही प्रयास और उसकी लड़ाई से हुयी जीत का श्रेय शाही परिवार को दे दिया जाये।  कांग्रेस अध्यक्ष को चौथे नंबर पर रखना भी कुछ बता रहा है कि कांग्रेस में कैसे तत्वों की भरमार है ? प्रियंका तो चार और खड़गे जी एक दो सभाएं कर भी आये थे पर दूसरा तो जो भी नेता गया था वो इन दोनों नेताओं के साथ हेलिकॉप्टर में गया था।  फिर इस तरह के पोस्टर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रहे हैं जो सिद्ध कर रहे हैं कि कांग्रेस में अंधत्व और बिन सोचे चापलूसी की संस्कृति न सिर्फ़ विद्यमान है बल्कि संपूर्ण सत्यानाश करके ही मानेगी।

पूरा हिमाचल कह रहा है कि यदि कांग्रेस का केंद्रीय और प्रादेशिक संगठन सक्रिय होता तो कुल इतने कम वोटों से जीत न होती ! सीटों पर मत जाइये , वह बहुमत तो सब दिख रहा है पर जीत कुल कितने वोटों के मार्जिन से हुई वह चिंताजनक है। हिमाचल की जीत कांग्रेस संगठन की नहीं है बल्कि कांग्रेस के बावजूद हुई है लेकिन न सीखना ही तो अब कांग्रेस का पर्याय बन चुका है। 2024  में सिर्फ़ 18  महीने बचे हैं और यही हिमाचल केंद्रीय वैकल्पिक नेता की कमी के कारण लोकसभा चुनाव में मोदी को वोट दे सकता है।


न अभी तक विपक्षी एकता पर कांग्रेस सक्रिय हुयी है और न ही किसी एक चेहरे को आगे लाया गया है जो मुकाबला कर सके मोदी का। यदि आप इस ग़लतफ़हमी में हैं कि राहुल वह चेहरा है तो 2024  की लड़ाई आप अभी से हार रहे हैं।

बड़ी मुख्यधारा का एक गोदी मीडिया है तो उसके मुक़ाबले एक छोटा सा गप्प मीडिया भी खड़ा हो रहा है जो अपनी हास्यास्पद कल्पनाशीलता से कुछ भी गढ़ लेता है और फिर उस पर विश्वास भी करता रहता है । यह गप्प मीडिया हर   चुनाव में भाजपा को हराता रहता है और परिणामों के दिन भी समझना नहीं चाहता कि भाजपा क्यों जीती ?

मैं फिर कह रहा हूँ कि गुजरात बल्कि पूरे देश में अब शून्य संगठन, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की विगत पांच वर्षों में गुजरात में आपराधिक अनदेखी और निहायत ग़लत हाथों में लीडरशिप को बार बार देना साथ ही चुनाव के तीन महीनों में घनघोर निष्क्रियता और विपक्ष के स्पेस को आप पार्टी को सौंप देना ही मुख्य कारण है कि गुजरात इस तरह भाजपा के लिये झुका है।  

कोई यदि अलग राजनीतिक पार्टी बना चुका है वह हरचंद कोशिश करेगा कि उसका संगठन फैले। वह आपको मदद क्यों करेगा ? क्यों करना चाहिये ? आप पार्टी ने पहले चुनाव में यदि इतने वोट लिये हैं तो अगले पाँच साल में वह कांग्रेस की मौजूदा हालात से आगे निकल सकती है और कांग्रेस का हश्र वही होगा जो अनेक राज्यों में उसका होता जा रहा है।  

फिर से समझिये कि चुनाव में बूथ पर आपका संगठन कैसा है और उसके पास साधन कैसे हैं यह मतदाताओं के कुल 5 -7  % मतों को बदलता है ! यह बेसिक चुनावी फ़ॉर्मूला है। यदि सत्ताधारी पार्टी की एंटी इंकम्बेंसी इन सात प्रतिशत मतों से ज़्यादा है तो वहां हार जाएगी और यदि विपक्षी दर्शन ही यहां नहीं होंगे तो फिर जीतेगी कि “ कोउ नृप होय हमें का हानि “

यूपी चुनाव के नतीजों के पहले ही मोदी शाह गुजरात पहुँच चुके  थे। इस बार भी गुजरात में मतदान के तत्काल बाद मोदी शाह कर्नाटक मप्र राजस्थान छग की चुनावी रणनीति बनाने में लग गये है। अभी प्रधानमंत्री बनाम प्रचार मंत्री की चर्चा मत करिये ।उस चुनावी महामशीन को समझिये जो हर चुनाव को जीतने में विश्वास करती है जबकि कांग्रेस हारने में।  

कांग्रेस का राजस्थान हारना निश्चित सा है बचे तीन राज्य मप्र छग और कर्नाटक जहॉं यदि गफ़लत दिखायी , जिसके पूरे चांस हैं , कांग्रेस ने तो ” बचा न कोउ रोवनहारा” की हालत होगी और फिर से २०२४ को थाली में सजाकर दे दिया जायेगा। इन आठ बरसों का ट्रेंड , रणनीति और सांगठनिक मशीन ही नहीं देख रहे ? तृणमूल स्तर पर चल रही सामाजिक सांगठनिक राजनीतिक प्रक्रियाओं को नहीं देख रहे ? मत देखो !

आज भाजपा मप्र व कर्नाटक में टाइट पोजीशन में हैं वे हार सकते हैं पर खुद हार जाना तय करेगी कांग्रेस और कांग्रेस के बंटाधार । कैसे ? यह तफ़सील मैं क्यों और किसके लिये खोलूँ ?

यात्रा कब करें  ? कहाँ  करें ? कौन कौन से जिलों से गुज़रें? हाई वे पर चले कि छोटी सड़कों पर ? क्या क्या हो उन चार घंटों में जो कि पैदल चलने व विश्राम के बाद बचते हैं? इस पर कांग्रेसी सलाहकार भविष्यगामी दृष्टि के अभाव में अपने चमचों की गुटबंदी में उलझे रहे हैं या फिर राहुल के जयजयकार में

अभी भाजपा से निपटने का एक ही रास्ता है कि ग़ैर -भाजपावाद की छतरी के नीचे सबको इकट्ठा करो एक अपेक्षाकृत बेहतर साफ़ सुथरे व्यक्ति को अभियान समिति का
अध्यक्ष या नेता घोषित करो और सब अपनी ज़मीनी हैसियत के अनुसार चुनाव लड़े और मदद करें !
जो दल और नेता चुनाव बाद सर्वाधिक सहमति बना सके उसे प्रधानमंत्री बनायें लेकिन इस सबके पहले समयबद्ध न्यूनतम कामों की सूची पर सहमति हो जो जनहित में अगले पाँच
सालों में करना है और वह सब शब्दशः लागू किया
जाये

इसी फॉर्मूले पर डॉ० लोहिया ने नेहरू जैसे और जेपी ने इंदिरा गांधी जैसी प्रधानमंत्री को हिला दिया था , उनके मुकाबले मोदी उतने करिश्माई नहीं हैं।
न समझ में आये तो गप्पी मीडिया को सुनते रहिये और खुश रहिये और जब यात्रा समाप्त हो जाये तो देशज पर्यटन के दूसरे रास्ते ढूंडिये और पाँच दस साल और इंतज़ार करिये कि ………? ( बाद में कभी लिखूँगा )

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