सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों का सरकारी विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य करो
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) अभिभावक सभा ने कहा है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 को लागू करने में प्रदेश सरकार द्वारा लापरवाही बरती जा रही है, जिससे बच्चों का भविष्य अधर में लटक गया है। धारा 12(1)(ग) के तहत निजी विद्यालय निशुल्क शिक्षा हेतु बच्चों का दाखिला नहीं लेते व अभिभावक इधर-उधर भटकते रहते हैं।
अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा विद्यालय बताने वाला सिटी मांटेसरी स्कूल उपर्युक्त धारा के तहत एक भी दाखिला नहीं लेता व राष्ट्रीय कानून की धज्जियां उड़ाता है और कोई भी अधिकारी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जो निजी विद्यालय दाखिला ले भी लेते हैं वे अभिभावकों से किसी न किसी नाम पर वसूली करते रहते हैं, बच्चों के साथ भेदभाव करते हैं और या तो बच्चे को निकाल देते हैं अथवा अभिभावक को इतना मजबूर कर देते हैं कि वे खुद अपने बच्चे को निकाल लेते हैं। जो बच्चे सामान्य रूप से शुल्क देकर भी पढ़ रहे हैं उनके अभिभावक भी त्रस्त हैं। निजी विद्यालयों के शुल्क बहुत ज्यादा हैं। करोना काल में जब अभिभावकों की आय कम हो गई तो बहुत सारे लोग अपने बच्चों को जिन विद्यालयों में पढ़ा रहे थे अब उन्हें मुश्किल हो रही है। कई लोगों को अपने बच्चों को सस्ते विद्यालयों में स्थनांनतरित करना पड़ा है तो कई लोग कर्ज लेकर बच्चों का शुल्क भर रहे हैं।
ऐसे अभिभावक भी हैं जो अपनी आय का आधे से दो-तिहाई अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर दे रहे हैं। निजी विद्यालय त्रस्त अभिभवकों को कोई भी राहत देने को तैयार नहीं होते। बल्कि अभिभवकों के उत्पीड़न के नए तरीके निकालते रहते हैं।
निजी विद्यालयों के आतंक से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता है कि निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम सभी बच्चों के लिए लागू किया जाए और बच्चों के लिए शिक्षा निशुल्क हो। यदि कोई निजी विद्यालय चलाना भी चाहता है तो उसे धन की व्यवस्था कहीं और से करनी चाहिए। सिटी मांटेसरी स्कूल यदि प्रति वर्ष मुख्य न्यायाधीशों का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन करा सकता है तो क्या अपने विद्यालयों के संचालन के लिए धन नहीं जुटा सकता?
जब तक समान शिक्षा प्रणाली लागू नहीं होती तब तक 2015 के उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल के फैसले कि सभी सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालय में अध्ययन करना अनिवार्य हो को लागू किया जाए। जब अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों व न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ेंगे तो उनकी गुणवत्ता अपने आप सुधर जाएगी जिसका लाभ गरीब के बच्चे को भी मिलेगा। मांग करने वालों में मोहम्मद आसिफ सिद्दीकी, अमृता सिंह, रुख्सार, जनक दुलारी मौर्य, शायरा बानो, सविता यादव, गुड़िया, सबीना, 9शबाना, प्रवीण श्रीवास्तव, सलमान राईनी, मोहम्मद अहमद आदि थे।