Thursday, November 7, 2024
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Tribute : भारत की पहली ऐसी महिला मुख्यमंत्री, सुचिता कृपलानी जिनकी अपनी कोई संपत्ति नहीं थी

कुमार कलानंद मणि

आचार्य जे बी कृपालानी, भारत की आजादी के आंदोलन में वरिष्ठता के क्रमांक में पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस से उपर के क्रम में थे। वे महात्मा गांधीजी से इन नेताओं से पहले से जुड़ चुके थे तथा चंपारण सत्याग्रह में अग्रणी सिपाही थे। अपने प्रखर स्वभाव, राजनीतिक शुचिता, विद्वता आदि के कारण सदैव सबों से अलग रहे। संविधान सभा का जब भी सही आंकलन होगा तो आचार्य कृपलानी का नाम टाॅप 05 में होगा। यदि कृपालानी नहीं होते तो 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को चौथी बार अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष पद शायद नहीं मिलता। आचार्य कृपलानी कांग्रेस पार्टी के जेनरल सेक्रेटरी पद पर सबसे अधिक समय सेवा देने वाले एकमेव व्यक्ति थे।

आजादी के आंदोलन का अंतिम दशक था। तब आचार्य कृपालानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संविधान का इतिहास के प्रोफेसर 28 वर्षीया सुचेता मजूमदार की ओर आकर्षित हुए। तब वे सुचेता से 20 साल बड़े थे ‌। कुछ समय बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। सुचेता जी के घर में इसका बहुत विरोध हुआ । घर के लोगों ने सुचिता जी से स्पष्ट कह दिया कि वो अगर शादी करेंगी तो घर से रिश्ता टूट जाएगा। दरअसल घरवालों को जेबी कृपलानी की ज्यादा उम्र भी खासी चुभ रही थी। दूसरी बात कृपलानी जी का सिंधी और सुचेता जी का बंगाली होना था। इस शादी के प्रारंभिक निर्णय से खुद महात्मा गांधी असहमत थे। उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां कृपालानी को आजादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। गांधी ने कृपलानी से कहा, अगर तुम उससे शादी करोगे तो मेरा दायां हाथ तोड़ दोगे। तब सुचेता ने उनसे कहा, वह ऐसा क्यों सोचते हैं बल्कि उन्हें तो यह सोचना चाहिए कि उन्हें आजादी की लड़ाई में एक की बजाय दो कार्यकर्ता मिल जाएंगे।. दोनों की शादी हुई और सुचेता मजूमदार सुचेता कृपालानी बनीं।

पंजाब में जन्मीं यह बंगालन सुचेता कृपालिनी, जो सिंधी से शादी कीं थीं, आज की राजनीतिक भाषा में कहा जाए तो एक गैर प्रांत उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं। वह भारत की पहली महिला थीं जो किसी प्रांत की मुख्य मंत्री बनीं थी। बाद में सफलतम मुख्यमंत्री साबित हुई। वे बतौर मुख्यमंत्री 1963 से 1967 तक इस पद पर थीं। यह वह काल था, जब उनके पति तथा कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता आचार्य जे बी कृपालानी पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रखर विरोधी थे।‌

आजादी की लड़ाई में अरुणा आसफ अली , उषा मेहता और सुचेता कृपलानी का अविस्मरणीय योगदान है । वह ‘ भारत छोड़ो आंदोलन ‘ के समय ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गईं । भारत विभाजन के समय जो दंगे हुए थे उसमें पारस्परिक सौहार्द और कौमी एकता के लिये सुचेता जी , महात्मा गांधी की अनन्य सहयोगी थीं ।सुचेता कृपलानी जी ने सत्याग्रही के रूप में अग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता मिलने के बाद आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने उत्तरप्रदेश की बागडोर संभाली। 1952 में उन्हें लोकसभा का सदस्य और 1957 में नई दिल्ली विधानसभा का सदस्य बनाकर लघु उद्योग मंत्रालय प्रदान किया गया। 1962 में वह कानपुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य चुनी गईं । 1963 में उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाई गईं और इसके साथ ही उन्होंने देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जैसा गौरव अपने नाम कर लिया । 1971 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया था । 1974 में उनका देहांत हो गया ।

भारत के लिए जब संविधान बनना था, तब संविधान सभा का गठन हुआ, इसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए सुचेता कृपलानी को शामिल किया गया था। उन्होंने भारत के संविधान में महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी।

सुचेता कृपलानी के बड़े भाई श्री धीरेन्द्र मजूमदार भी आजादी के आंदोलन में सक्रिय थे। आजादी के बाद वे राजनीति में पड़ने के बजाए संत विनोबा के साथ सर्वोदय, भूदान के काम को आगे बढ़ाने में प्रमुख स्तंभ बने रहे।

राजनीति तथा शिक्षा क्षेत्र के शीर्ष पदों पर रहने के बावजूद सुचेता कृपालिनी तथा आचार्य कृपालानी के नाम कोई चल या अचल संपत्ति नहीं थी।

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