Friday, November 22, 2024
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Delhi Politcs : तो क्या दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं एलजी वीके सक्सेना ?

संवैधानिक पद पर रहते हुए भी एक राजनेता की तरह कर रहे हैं काम 

सी.एस. राजपूत 

दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार पर आम आदमी पार्टी तो बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा ही रही है पर उनके क्रियाकलाप भी एक राजनेता की तरह ही देखे जा रहे हैं। दिल्ली में जिस तरह से वीके सक्सेना दिल्ली सरकार के खिलाफ ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे हैं उसको देखकर तो यही लग रहा है कि जैसे वह राजनीति में सक्रिय होकर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना चाहते हों। दिल्ली सरकार के पीछे तो वह पड़े ही हैं साथ ही विकास कार्यों के फीते भी काट रहे हैं। मतलब आम आदमी पार्टी को गलत साबित कर अपने को एक अच्छा शासक के रूप में पेश करने में लगे हैं। तो क्या बीजेपी वीके सक्सेना को पार्टी में शामिल कर मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही है। वैसे भी बीजेपी पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को भी मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रस्तुत कर चुकी है।

दरअसल दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल बहुमत वाली सरकार चला रहे हैं पर उप राज्यपाल वीके सक्सेना हैं कि उनके हर काम में कमी निकालते देखे जा रहे हैं। यह वीके सक्सेना का बीजेपी के पक्ष में काम करना ही रहा कि मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव भी होता नहीं दिखाई दे रहा है। एलजी जो 10 एल्डरमैन की नियुक्ति करता है, वह दिल्ली सरकार के राय मशविरे के बाद पर वीके सक्सेना ने बिना दिल्ली सरकार के राय मशविरे के 10 एल्डर सदस्य नियुक्त कर दिए। 

आम आदमी पार्टी का आरोप है कि ये लोग बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और इन्हें अनुभव भी बहुत कम है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो एलजी के 10 एल्डरमैन की नियुक्ति को तुरंत गलत करार दे दिया था। उधर पीठासीन अधिकारी भी उस पार्टी का होता है जो सत्ता में होती है पर एलजी वीके सक्सेना ने पीठासीन अधिकारी बीजेपी की पार्षद सत्या शर्मा को बना दिया, जबकि आप ने पीठासीन अधिकारी के लिए अनुभवी पार्षद मुकेश गोयल का नाम भेजा था। इसे एलजी की राजनीति करना ही कहा जाएगा कि हर मामले में एलजी वीके गुप्ता और सीएम का टकराव हो जाता है। यह एलजी की मनमानी ही है कि सोमवार को भी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव नहीं हो पाया है। यह एलजी का चुनाव को टालना ही है कि उन्होंने अभी तक मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव की तारीख घोषित ही नहीं की है। स्टैडिंग कमेटी के मामले भी एलजी ने बीजेपी का पक्ष लिया है। 

अब एलजी विनय सक्सेना ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पत्र के जवाब में एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने दिल्ली के विकास के लिए दोनों की मीटिंग होने की बात कही है। दरअसल सीएम केजरीवाल ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार के कामकाज में लगातार दखल देने और मंत्रिपरिषद को दरकिनार कर फैसले लेने पर सार्वजनिक बहस की अपील की है। एलजी की ओर से भी पत्र भेजकर विभिन्न मुद्दों पर निजी चर्चा के लिए आमंत्रित किये जाने के बाद सोमवार को सीएम को अपनी प्रतिक्रिया भेजी गई है। दरअसल अधिकारियों से सीधे अधिसूचना जारी कराकर 10  एल्डरमैन, पीठासीन अधिकारी और हज कमेटी सदस्य की नियुक्ति करने पर जनता की ओर से एलजी की कड़ी आलोचना हुई है।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आपने सरकार को दरकिनार करने की सभी कार्रवाइयों को स्वीकार करते हुए कहा कि उन भी एक्ट और प्रावधानों में लिखा था कि यह सब उप राज्यपाल नियुक्त करेंगे। बिजली, स्वास्थ्य, पानी, शिक्षा से संबंधित सभी कानून और अधिनियम सरकार को प्रशासन/एलजी के रूप में पारिभाषित करते हैं, तो क्या ये सभी विभाग सीधे आप ही चलाएंगे ? फिर दिल्ली की चुनी हुई सरकार क्या करेगी ? क्या यह निर्वाचित सरकार से संबंधित स्थानांतरित विषयों पर सुप्रीम कोर्ट के सभी निर्णयों के विपरीत नहीं होगा ? सवाल यह भी है कि पूरे देश के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए निजी बातचीत से बेहतर हैं कि सार्वजनिक चर्चा हो।  
दरअसल सोमवार को सीएम अरविंद केजरीवाल को एलजी विनय सक्सेना ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए एक पत्र भेजा था, जिसमें यह कहा गया था कि दिल्ली के विकास के लिए दोनों की बीच मीटिंग का दौर फिर से शुरू होना चाहिए। इस पर आज सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर एलजी की ओर से मिले पत्र की जानकारी साझा करते हुए कहा है कि विभिन्न मुद्दों पर निजी चर्चा के लिए एलजी ने एक पत्र भेजकर मुझे अपमानित किया है। मैं निश्चित रूप से जल्द ही उनकी सुविधानुसार समय लेकर उनसे मिलूंगा।  

वीके सक्सेना का इस बात कर प्रयास कम है कि दिल्ली सरकार से मिलकर दिल्ली को विकास के रास्ते पर लाया जाये। इस बात पर ज्यादा है कि केजरीवाल को कैसे परेशान किया जाये। 97  करोड़ रुपये का राजनीतिक विज्ञापन सरकारी खर्चे से देने का आरोप लगाकर उन्होंने वह पैसा वसूलने का निर्देश दिया तो दिया पर इस बात पर ध्यान नहीं दिए कि केंद्र सरकार भी सरकारी खर्चे से अपने विज्ञापन जारी करती रहती है। एलजी के हर काम में में बीजेपी के इशारे पर काम करने की बू आ आती है। यही वजह है कि एलजी ने यह आदेश इसलिए दिया था क्योंकि कथित तौर पर राजनीतिक विज्ञापनों को सरकारी विज्ञापन के रूप में प्रकाशित करने के लिए दिल्ली सरकार ने भुगतान किया था। यह एलजी वीके सक्सेना की जिद ही थी कि उन्होंने मुख्य सचिव से सरकारी विज्ञापन में सामग्री नियमन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्ति समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए कह दिया था। 

उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना अगस्त में केजरीवाल की फाइलें वापस भेज दी थीं। दरअसल वीके सक्सेना ने सीएम केजरीवाल की ओर से हस्ताक्षरित नहीं की गई 47 फाइलों को वापस भेज दिया था। राज निवास कार्यालय की ओर से स्पष्ट किया गया था कि सभी 47 फाइलों पर संवैधानिक मानदंडों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर कर नहीं भेजा था। इसलिए सभी फाइलों को सीएम ऑफिस को वापस कर दिया है।  
दरअसल बीजेपी ने अनिल बैजल के बाद वीके सक्सेना की उनके उत्तराधिकारी के रूप में ऐसे ही नियुक्त नहीं किया था। इसके पीछे केजरीवाल पर अंकुश लगाना था। एलजी ने केजरीवाल सरकार को जुलाई में तब बड़ा झटका दिया था जब उन्होंने उसकी 2021-22 की आबकारी नीति की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की सिफारिश कर दी थी । इस नीति में नियमों के उल्लंघन और प्रक्रियागत खामियों के आरोप लगाये गए थे।  दिल्ली सरकार ने राजस्व बढ़ाने और शराब व्यापार में सुधार के लिए पिछले साल शुरू की गई नीति को उसी महीने वापस ले लिया था। इस नीति को लागू करने में कथित अनियमितताओं के संबंध में इस साल अगस्त में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर सीबीआई ने छापा मारा गया था ।  

इतना ही नहीं ‘रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ…’ और ‘दिल्ली की योगशाला’ समेत अन्य सरकारी योजनाओं को लेकर भी सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई। एलजी ने दिल्ली सरकार को मई में उस समय झटका लगा दिया था। जब जब प्रवर्तन निदेशालय ने धनशोधन के एक मामले में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ्तार कर लिया था। जैन की मुश्किल तब और बढ़ गई थी जब कथित ठग सुकेश चंद्रशेखर ने अक्टूबर में वीके सक्सेना को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि मंत्री ने जेल में उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 2019 में उससे 10 करोड़ रुपये की ‘‘उगाही’’ की थी। दरअसल एलजी वीके सक्सेना का रवैया केजरीवाल सरकार से साथ वैसा है जैसा कि वह बीजेपी के नेता हों। 

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