तीन चक्रों में चलेगा अभियान, पहला चक्र नौ से 20 जनवरी, दूसरा 13 से 24 फरवरी और तीसरा 13 से 24 मार्च
नोएडा । खसरा और रूबेला (एमआर) से बचाव के लिए विशेष टीकाकरण अभियान का पहला चरण नौ (सोमवार) से 20 जनवरी तक चलाया जाएगा। विशेष टीकाकरण अभियान नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत तीन चक्रों में चलेगा। इसमें पांच वर्ष तक के बच्चों को मीजल्स रूबेला (एमआर) के दो टीके लगाए जाएंगे। यह जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. सुनील शर्मा ने दी।
उप जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. उबैद ने बताया- शासन के निर्देश पर नौ से 20 जनवरी, 2023 तक विशेष टीकाकरण अभियान का प्रथम चक्र चलेगा। द्वितीय चक्र 13 से 24 फरवरी, 2023 और तृतीय चक्र 13 से 24 मार्च, 2023 तक संपन्न होगा। टीकाकरण के लिए सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। आशा-एएनएम ने घर-घर जाकर सर्वे के बाद एमआर वैक्सीन से वंचित पांच वर्ष तक के बच्चों की ड्यू लिस्ट तैयार कर ली। उन्होंने बताया- नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सप्ताह में छह दिन (सोमवार को छोड़ कर) सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और जिला अस्पताल में सातों दिन टीकाकरण किया जाएगा। इस दौरान करीब एक हजार सत्र आयोजित किये जाएंगे। शून्य से पांच साल के तक के 2.19 लाख बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य है।
डॉ. उबैद ने बताया – बच्चों को खसरा होने का खतरा ज्यादा रहता है। खसरा से बचाव के लिए मीजल्स-रूबेला (एमआर) विशेष टीकाकरण अभियान मिशन इंद्रधनुष की तर्ज पर चलेगा। पूरा डेटा ई-कवच पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा।
अभिभावकों से अपील- बच्चों को जरूर लगवाएं टीका
उप जिला प्रतिरक्षण अधिकारी ने जनपद के लोगों से अपील की है कि वह अपने बच्चों को खसरा-रूबेला का टीका जरूर लगवाएं। टीका लगने से बीमारी का खतरा लगभग न के बराबर रह जाता है। उन्होंने कहा नियमित टीकाकरण भी जरूरी है। यह बहुत सी जानलेवा बीमारियों से बच्चों को बचाता है। नियमित टीकाकरण में बच्चों को बीसीजी, पैंटा, एमआर, आईपीवी, डीपीटी, टीडी, हैपेटाइसिस , मीजल रूबेला आदि के टीके लगाए जाएंगे।
प्रवासी लोंगों के बच्चों के नियमित टीकाकरण में आती है दिक्कत
डा. उबैद का कहना है कि विभाग की पूरी कोशिश होती है कि कोई भी बच्चा नियमित टीकाकरण से वंचित न रह जाए, लेकिन इस कार्य में प्रवासी लोगों खासतौर पर श्रमिक वर्ग के साथ दिक्कत आती है। कई बार देखा गया है कि इन लोगों के बच्चों को पहला टीका तो समय पर लग जाता है लेकिन जब दूसरे टीके का समय आया तो परिवार वह जगह छोड़ कर कहीं और चला गया होता है। इन लोगों को खोज पाना मुश्किल होता है। कई बार तो यह शहर छोड़कर ही चले जाते हैं।