निवेशकों और जमाकर्ताओं के मनोबल को गिराने वाला है ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष मोर्चा और ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार के नेतृत्व का आपस में उलझना
सी.एस. राजपूत
सहारा इंडिया के अलावा दूसरी ठगी कंपनियों के खिलाफ देशभर में चल रहा आंदोलन दो संगठनों के अध्यक्षों के वर्चस्व की लड़ाई की भेंट चढ़ने जा रहा है। अपने अपने तरीके से लड़ाई लड़ रहे दोनों ही संगठनों का यह विवाद बड्स एक्ट को लेकर हुआ है। ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय देव शुक्ला और ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार के राष्ट्रीय संयोजक मदन लाल आजाद के बीच बढ़े इस विवाद से आंदोलन के भटकाव का अंदेशा हो गया है।
दरअसल ठगी कंपनियों के खिलाफ चल रही निवेशकों और जमाकर्ताओं की इस लड़ाई की मजबूती में अभय देव शुक्ला और मदन लाल आजाद के बीच का विवाद कमजोर कड़ी माना जा रहा था। इन दोनों दिग्गजों के बीच के विवाद को दूर करने का भरसक प्रयास किया गया पर ऐसा लगता है कि दोनों ही नेताओं के नजरों में निवेशकों और जमाकर्ताओं की लड़ाई ज्यादा व्यक्तिगत वर्चस्व ज्यादा महत्व रखता है। किसी विवाद को सोशल मीडिया में जाने को परिपक्व नेतृत्व नहीं कहा जा सकता है। होना तो यह चाहिए कि नेतृत्वकर्ताओं को दूसरे आंदोलनकारियों को सोशल मीडिया पर किसी विवाद को न लाने की चेतावनी देनी चाहिए। उल्टे दोनों ही अपने इस विवाद को सोशल मीडिया पर ले आये। मदन लाल आजाद का कहना है कि अभय देव बड्स एक्ट का विरोध कर रहे थे। हालांकि एक डिजिटल चैनल पर डिबेट में दोनों ही दिग्गजों ने विवाद समाप्त होने और एक दूसरे के कार्यक्रमों में भाग लेने की बात कही थी।
इस विवाद में अभय देव शुक्ला ने एक वीडियो जारी करते हुए नाम न लेते हुए कहा है कि कुछ लोग बड्स एक्ट के आधी अधूरी जानकारी दे रहे हैं। उनका कहना है कि 2020 में लागू हुए बड्स एक्ट कानून से अभी तक एक भी पैसा नहीं मिला है। जबकि इन लोगों का कहना है कि पैसा 180 दिन में मिल जाएगा। उनका यह भी कहना है कि डीएम ऑफिस में फार्म भरने मात्र से पैसा नहीं मिलेगा बल्कि एफआईआर दर्ज करानी पड़ेगी। यह सब उन्होंने एक वीडियो जारी कर कहा है। उधर मदन लाल आजाद का कहना है कि बडस की लड़ाई कुछ दिन से ही शुरू हुई है। शहीदी दिवस यानी कि 23 मार्च तक काफी निवेशकों का पैसा मिल जाएगा नहीं मिलेगा तो वे केंद्र सरकार के खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोल देंगे।
इसमें दो राय नहीं कि ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष मोर्चा और ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार दोनों ही संगठनों को कुछ मजबूती मिलने लगी है। दोनों ही नेताओं को मंथन करना चाहिए कि यह मजबूती किसकी वजह से मिल रही है। निवेशकों और जमाकर्ताओं की वजह से न। कोई भी निवेशक और जमाकर्ता यह नहीं चाहेगा कि दोनों ही संगठनों के दिग्गज आपस में उलझें। ऐसे में दोनों ही संगठनों के अध्यक्षों को बड़ा दिल रखकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और ईगो को दूर कर सामूहिक रूप से लड़ाई लड़नी चाहिए। इन दोनों दिग्गजों पर बड़ी जिम्मेदारी और जवाबदेही है। इन दोनों ही नेताओं को ठंडे दिमाग से यह सोचना चाहिए जो भी कुछ लोकप्रियता आप लोगों को मिली है वह सब जमाकर्ताओं और निवेशकों की वजह है। आप दोनों ही नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ और ईगो के चलते यदि लड़ाई कमजोर पड़ती है तो निवेशकों और जमाकर्ताओं के मन में आप लोगों के प्रति क्या धारणा बनेगी ?
आज की तारीख में जब सहारा प्रबंधन के अलावा दूसरी ठगी कंपनियों का प्रबंधन आंदोलन को कमजोर करने के लिए कमजोर कड़ी ढूंढ रहे हैं तो ऐसे में यदि नेतृत्वकर्ता ही उन्हें अपनी कमजोरी दे देंगे तो फिर निवेशकों, जमाकर्ताओं और दूसरे आंदोलनकारियों की कमजोरियों को कैसे दूर किया जाएगा ? आपसी संबंध सुधारने के बजाय एक दूसरे की कमी निकालकर यदि संगठनों के नेतृत्व ही बयानबाजी करने लगेंगे तो इसका फायदा निवेशकों और जमाकर्ताओं को नहीं बल्कि ठगी कंपनियों के प्रबंधनों को मिलेगा, यह गांठ दोनों ही नेताओं को समझ लेनी चाहिए। आंदोलन और राजनीति रेत के ढेर की तरह होते हैं। आंदोलनों के नेतृत्व का जब तक ही होता है जब आंदोलनकारी उनके साथ हैं जब आंदोलनकारियों का विश्वास आंदोलन के नेतृत्व से उठ जाता है तो नेतृत्व कहां होता है यह बताने की जरूरत नहीं है।
देश में एक से बढ़कर एक नेता हुआ और जिन नेताओं ने लचीला बनाकर बड़ा दिल कर आंदोलन कर लिया वे सफल हो गये और जिन नेताओं ने अपनी ताकत पर घमंड किया वे कहीं के नही रहे। लड़ाई बड़ी है। मिशन बड़ा है। निवेशकों और जमाकर्ताओं का पैसा भी बहुत ज्यादा है। यदि इसी तरह से दोनों ही संगठनों के नेतृत्व एक दूसरे की कमी निकालकर अपने को साबित करने मे लग गये तो इसका फायदा ठगी कंपनियों का प्रबंधन उठाएगा और आंदोलन की कमजोरी का प्रभाव लड़ाई पर पड़ेगा। मदन लाल आजाद और अभय देव शुक्ला का यह विवाद ऐसे समय में जोर पकड़ रहा है जब न तो प्रबंधन और न ही सरकारें भुगतान के प्रति गंभीर हैं। मतलब आंदोलन को मजबूती देने के लिए अभी बहुत कुछ करना है। जब दोनों ही संगठनों को मजबूती करते हुए शासन और प्रशासन पर दबाव डालना चाहिए। ऐसे में दोनां संगठनों के नेतृत्वकर्ता आपस में उलझ रहे हैं जिसे आंदोलन के हित में कतई नहीं कहा जा सकता है।