Thursday, November 21, 2024
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Savitri Bai Phule : लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोलने वाली पहली महिला शिक्षिका

नीरज कुमार 

सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। 9 साल के उम्र में सावित्री बाई फुले का विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ | सावित्री की पढाई में रुची देखकर ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया | सावित्री ने अहमदनगर और पुणे से अपना प्रशिक्षण पूरा किया और 1848 में ज्योतिराव-सावित्री बाई ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला | 1876 व 1879 के अकाल व 1897 के प्लेग में सावित्री बाई फुले ने गाँव-देहात में पीड़ितों के लिए सहायता-शिविर चलाने व भोजन व्यवस्था करने में अथक प्रयास किए | प्लेग के मरीजों की सेवा-देखभाल करते हुए ही वो बीमार पड़ी और उनकी मौत (10 मार्च 1897) हो गई |

सावित्रीबाई का पढना और पढ़ाना जाती व्यवस्था और पितृसत्ता दोनों पर चोट था | एक बेहतर समाज की कल्पना करती और इस कल्पना को पूरा करने के लिए सीमाएं लांघती सावित्री को रोकने के लिए व्याकुल कट्टरपंथी कभी उनपर गोबर फेंकते और कभी पत्थर, कभी उनका रास्ता रोकते और कभी उन्हें घर से निकलवा देते |

कहते हैं एक अच्छा शिक्षक वही हो सकता है जो अच्छा विधार्थी हो | सावित्रीबाई भी एक अच्छे विधार्थी की तरह लगातार सामाजिक गैरबराबरी और उत्पीडन को समझतीं और उसे तोड़ने में खुद को झोंक देतीं | अन्याय के खिलाफ संघर्ष में अपने विधार्थियों को भी सक्रिय करती | इनका कक्षा के अन्दर और बाहर का जीवन एक दुसरे से जुड़ा दिखता हैं |

सावित्रीबाई फुले हर सामाजिक कुरीति से लड़ती और अपने आस-पास के माहौल में हस्तक्षेप करती | इन्होने जीवनभर विधवा विवाह के लिए प्रयास किये, अनाथ बच्चों के लिए आसरे खोले व महामारी के समय लोगों की शारीरिक आर्थिक मदद की | उनका उदाहरण दिखाता है कि समाज से कटकर कोई प्रगतिशील नहीं बन सकता |  उनके शिक्षा दर्शन के केंद्र में था ‘समाज सुधार’ | इन्होने आर्थिक स्वतंत्रता के लिए व्यवसायिक शिक्षा पर जोड़ दिया और मानसिक स्वतंत्रता के लिए ऐसी शिक्षा पर जो परिस्थितियों की गुण-दोष विवेचना करना सिखाए | एक ऐसी शिक्षा जो  उत्पीड़न के स्त्रोत को समझकर बदलाव के रास्ते खोजना सिखाए | साथ ही पुरुष-महिला संबंधों में बराबारी सिखाए, जैसे महिलाओं और उनके निर्णयों का सम्मान करना और बच्चे के लालन-पालन को लेकर पुरुष और स्त्री में सहभागिता का पालन करना |

सावित्रीबाई के लिए सभी बच्चों का ‘सार्वभौमिक अधिकार’ था और उनका मानना था कि संवेदनशील, तार्किक और सामाजिक सुधारवादी शिक्षा पाने का अधिकार हर बच्चे को है | तर्क और भावनाओं को जोड़ती सावित्रीबाई फुले ने जीवन के आखिरी पल तक न सहानुभूति को छोड़ा, न न्याय को न प्यार को |

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