नीरज कुमार
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के साथ उनके जर्मन मित्र कैलनबैक रहते थे | गांधी जी के प्रयोगों में वे बराबर साथ थे | उन्हीं दिनों हुआ कुछ ऐसा था कि किसी गलतफहमी के कारण कुछ भोले-भाले पठान गांधी जी से नाराज हो गए | लोगों ने भी भड़का दिया तो वातावरण गर्म हो उठा | लगा, वे पठान किसी भी समय गांधी जी पर हमला कर सकते हैं | कैलनबैक को भी यह बात मालूम हुई | तबसे वे बराबर गांधी जी के साथ रहने लगे | गांधी जी को मालुम था न हो इस तरह, जहां भी गांधी जी जाते, वे भी साथ हो लेते |
एक दिन दफ्तर से बाहर जाने के लिए गांधी जी कोट पहन रहे थे | कैलनबैक का कोट भी पास ही टंगा था | गांधी जी ने देखा कि उनकी जेब ज्यादा ही भारी है | उन्होंने जेब देखा तो उसमें रिवाल्वर था | उन्होंने कैलनबैक को बुलाया, “यह रिवाल्वर अपनी जेब में किसलिए रखते हैं आप ?”
कैलनबैक हतप्रभ ! लज्जित से बोले, “कुछ नहीं, ऐसे ही |”
गांधी जी हंस पड़े, “रस्किन और टालस्टाय की पुस्तकों में क्या कहीं ऐसा लिखा है कि बिना कारण रिवाल्वर जेब में रखी जाए ?”
कैलनबैक और भी शर्मिंदा हुए | बोले, “मुझे पता लगा है कि कुछ गुंडे आप पर हमला करने वाले हैं |”
“और आप उनसे मेरी रक्षा करना चाहते हैं |”
“जी हाँ, मैं इसीलिए आपके पीछे-पीछे रहता हूं |”
कैलनबैक को सुनकर गांधी जी खूब हँसे | बोले, “अच्छा, तब तो मैं निश्चिन्त हुआ ! प्रभु का दायित्व आपने ले लिया है न | जब तक आप जीवित हैं, मुझे खुद को सुरक्षित समझना चाहिए | वाह, मेरे प्रति स्नेह के कारण आपने प्रभु का अधिकार छीन लेने का खूब साहस किया |”
कैलनबैक तो एकदम से विचलित हो उठे | उन्हें अपनी भूल मालूम हुई | गांधी जी फिर बोले, “किस सोच में पड़े हो ? यह भगवान के प्रति श्रद्धा के लक्षण नहीं हैं | मेरी रक्षा की चिंता मत करो वह काम सर्वशक्तिमान प्रभु का है | इस रिवाल्वर से आप मेरी रक्षा नहीं कर सकते |”
कैलनबैक ने वह रिवाल्वर फेंक दी और बोले, “मेरी भूल हुई मैं अब आपकी चिंता नहीं करूँगा |”