भक्तों ने उपवास रख भगवान नरसिंह से अपनी भक्ति और विश्वास को मजबूत करने की प्रार्थना की
इस्कॉन गुरुकुल के छात्रों और भक्तों ने विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का किया आयोजन
मंदिर अध्यक्ष केशव मुरारी दास प्रभु ने नरसिंह भगवान की कथा ने सभी को भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए किया प्रेरित
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
नई दिल्ली। इस्कॉन श्री श्री राधा माधव मंदिर रोहिणी में गुरुवार को भगवान नरसिंह का प्राकट्य उत्सव धूमधाम से मनाया गया। श्री नरसिंह चतुर्दशी के अवसर पर मंदिर परिसर पुष्पों और विभिन्न फलों से सुसज्जित किया गया था। इस उत्सव में भक्तों ने पूरा दिन उपवास रखा और भगवान नरसिंह से अपनी भक्ति और विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए प्रार्थना की। साथ ही हरिनाम संकीर्तन की मंगल ध्वनि के साथ भगवान के अर्चविग्रह का अभिषेक किया गया।
इस अवसर पर इस्कॉन गुरुकुल के छात्रों और भक्तों ने विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। नन्हें बच्चों ने नरसिंह आरती की। साथ ही नरसिंह कवच का पाठ किया गया और इस्कॉन यूथ फोरम के भक्तों ने भक्त प्रहलाद के जीवन चरित, पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचार, नरसिंह भगवान के प्राकट्य और भगवान की भक्तवत्सलता को दर्शाते हुए सुंदर नाटिका प्रस्तुत की गई।
इस अवसर पर मंदिर अध्यक्ष केशव मुरारी दास प्रभु जी ने नरसिंह भगवान की कथा द्वारा सभी को निष्ठापूर्वक, शुद्ध भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया गया ।
उन्होंने कहा कि इस संसार में जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि से भी अधिक कष्टप्रद है ‘भय’ है ।
भयभीत पिता हिरण्यकश्यप अपनी तपस्या द्वारा ब्रह्म से वरदान तो प्राप्त करता है लेकिन उसका अभिमान और भगवान विष्णु से उसकी शत्रुता उसके विनाश का कारण बनती है। भगवान के चरण – कमल भक्तों को अभय प्रदान करते हैं । जिस प्रकार भगवान हिरण्यकश्यप को दिए प्रत्येक वचन का पालन करते हुए अपने भक्त प्रहलाद के लिए नरसिंह रूप धारण कर , खंभे से प्रकट हुए उसी प्रकार वे प्रत्येक भक्त से निष्ठापूर्वक भक्ति में निरंतर अग्रसर रहने की प्रतीक्षा करते हैं। भक्त हरिनाम जप,कीर्तन करें और भगवन्नाम का प्रचार कर अपना जन्म सार्थक करें।
भगवान के चरणों की शरण लेने वाले का भारी कष्ट भी दूर हो जाता है। वे किसी भी काल और स्थान पर भक्तों की पुकार सुनकर उसके कष्ट को हरने पहुंच जाते हैं । वे हृदय के बाहर भी हैं और भीतर भी। वे हमारे भीतर काम, क्रोध लोभ, मोह, मद, मत्सर जैसे शत्रुओं का विनाश भी करते हैं और भक्ति में बाधक बाहरी शत्रुओं से भी हमारी रक्षा करते हैं। उनके हाथ कमल जैसे कोमल हैं लेकिन नाखून अस्त्र के समान हैं । हिरण्यकश्यप जैसे विशाल भयानक राक्षस का दलन भी कर देते हैं और अपने कोमल हाथों से भक्त प्रहलाद को सहला कर अपना वात्सल्यपूर्ण प्रेम भी प्रदान करते हैं।
उन्होंने कहा कि जीवन में कितनी भी बड़ी समस्या हो भगवान की कृपा से ही उसका समाप्त होना संभव है । भक्त प्रहलाद सा एकनिष्ठ विश्वास रखेंगे तो भगवान भक्त प्रहलाद की भांति हमारी रक्षा कर भक्ति में दृढ़ता प्रदान करेंगे। अपने दास प्रहलाद महाराज के वचनों को सत्य करने के लिए पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान नरहरि ने अपना अद्भुत रूप प्रकट किया। वे न मनुष्य थे और न ही सिंह । उनका यह विशेष रूप भक्तों के सभी अवरोधों को नष्ट करने वाला है । उन्होंने कहा कि भक्ति मार्ग के सभी विघ्नों को हरने वाला है । उनका यह रूप उग्र भी है और कोमल भी।अनुभवी दुश्मन का दलन करने के लिए उनसे भयानक कोई भी नहीं और भक्त प्रहलाद पर अपना वात्सल्य दिखाते हुए उनके समान स्नेही भी कोई अन्य नहीं। भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में बैठा कर वात्सल्य भाव से उसे प्रेम करते हैं, उनकी एक आंख में शत्रु के लिए क्रोध है और दूसरी में भक्त प्रहलाद के कष्ट को देखकर आंसू भी है।
इस प्रकार एकनिष्ठ भक्तों के लिए भगवान सभी जगह उपस्थित हैं । वे संसार में आते हैं लेकिन वे सांसारिक नहीं होते । विश्वास की रक्षा के लिए वे खंभे से प्रकट हुए और उन्होंने सहज ही भक्त के विश्वास की रक्षा की। अपने हिरण्यकश्यप अवतार द्वारा उन्होंने साबित कर दिया कि वे सब प्रकार की सामाजिक मान्यताओं से भिन्न है । उन्हें केवल अटूट विश्वास से ही प्राप्त किया जा सकता है । भगवान परमात्मा रूप में सभी में विद्यमान हैं । वे भयानक भी हैं और सुंदर भी हैं।
उन्होंने कहा कि इस्कॉन संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद ने स्वीकार किया है कि इस्कॉन के प्रचार-प्रसार में भगवान नरसिंह की विशेष कृपा रही है। उन पर आने वाले प्रत्येक स्वास्थ्य – संकट को भगवान नरसिंह ने दूर किया । भगवान के चरण कमलों का आश्रय लेने वाले संत भक्तों की भगवान प्रसन्नतापूर्वक रक्षा करते हैं।
कार्यक्रम के अंत में मंदिर प्रबंधन द्वारा सभी के लिए एकादशी प्रसाद की सुंदर व्यवस्था रही। सभी ने श्री नरसिंह चतुर्दशी महोत्सव के अवसर पर भक्त प्रहलाद के जीवन और शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए प्रसाद ग्रहण किया।