राजनेताओं के शामिल होने से आंदोलन का होने लगा था राजनीतिकरण
आंदोलन में खिलाड़ी, फौजी, विद्यार्थी और वकीलों के शामिल होने से धरने को मिल रही धार
चरण सिंह राजपूत
बीजेपी सांसद और कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाकर दिल्ली जंतर मंतर पर चल रहे पहलवानों के आंदोलन अब जन आंदोलन का रूप ले रहा है। आंदोलन में छात्र छात्राओं के साथ ही खिलाड़ी, फौजी, वकील, किसानों के साथ ही समाजसेवी भी जुट रहे हैं। आंदोलन को जन आंदोलन का रूप के रणनीति के तहत दिया गया है। दरअसल आंदोलन में सियासत घुसने से आंदोलित को होने वाले नुकसान को पहलवान भांप गए हैं। एक रणनीति के तहत पहलवानों ने ऐलान किया है कि आंदोलन में राजनीतिक लोगों नहीं बल्कि सामाजिक लोगों की जरूरत है। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक के साथ ही बजरंग पुनिया ने भी स्पष्ट रूप से कह दिया है कि उनकी लड़ाई सरकार से नहीं बल्कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह से है।
दरअसल पहलवानों के आंदोलन में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, सांसद दीपेंद्र हुड्डा, आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, चंद्रशेखर समाज पार्टी के मुखिया चद्रशेखर आज़ाद, किसान नेता राकेश टिकैत, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक, गुरुनाम चढूनी के साथ ही दूसरे विपक्षी नेताओं के पहुंचने पर आंदोलन का राजनीतिकरण होने लगा था। केंद्र सरकार इसे विपक्षी नेताओं का आंदोलन के रूप में देखने लगी थी। दिल्ली पुलिस की रात में खिलाड़ियों के साथ बरती गई सख्ती भी उसी रूप से देखी जा रही है।
बृजभूषण शरण सिंह का आक्रामक रुख भी बीजेपी के इशारे में ही माना जा रहा है। उधर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करने से इनकार करते हुए हाई कोर्ट जाने की बात कह दी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह तब किया है जब कोर्ट के शिकायतकर्ताओं को सुरक्षा देने के आदेश के बाद भी दिल्ली पुलिस के उनके साथ हाथापाई करने की बात सामने आई। इन सब मामलों को आंदोलित पहलवान राजनीतिक दलों के नेताओं को आंदोलन में आने के बाद आंदोलन के राजनीतिकरण होने के रूप में देख रहे हैं। यही वजह है कि बजरंग पुनिया ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि यह आंदोलन सामाजिक है। आप नेता गोपाल राय जो दिल्ली के 130 गांवों की पंचायत करने की बात कर रहे थे। पहलवान उस पंचायत से भी बच रहे हैं। जंतर मंतर पर चल रहे पहलवानों के आंदोलन में अब समाजसेवी, फौजी, वकील और किसान जुट रहे हैं। इसमें दो रॉय नहीं कि अब यह आंदोलन जन आंदोलन का रूप ले रहा है।
दरअसल आंदोलित पहलवान भली भांति समझ रहे हैं कि किसान आंदोलन में राजनीति घुसने के बाद बड़ी मुश्किल से आंदोलन को संभाला गया था।
सरकार के किसान आंदोलन को विपक्ष का आंदोलन बताने पर किसान नेताओं को बार बार राजनीतिक दलों के नेताओं मंच पर न चढ़ने देने की बात कहनी पड़ी थी। हां जब गाजीपुर बॉर्डर पर लोनी के बीजेपी विधायक के हंगामा करने के बाद गुर्जर समाज के नेताओं को गाजीपुर बुलाकर यह कहलवाया गया था कि गुर्जर समाज किसानों के साथ है। मंच पर पहुंचने वलए नेताओं में समाजवादी पार्टी के गुर्जर नेता राजकुमार भाटी और अतुल प्रधान भी थे।
किसान आंदोलन से सबक लेते हुए पहलवानों ने आंदोलन का राजनीतिकरण रोकने के लिए रणनीति बना ली है। रात में फोल्डिंग बेड को लेकर हुई पुलिस और पहलवानों के बीच हुई झड़पों के बाद आंदोलन में यह बदलाव किया गया है। क्योंकि पुलिस का कहना है बेड आप नेता सोमनाथ भारती लेकर आये थे।
दरअसल दिल्ली में शराब घोटाले को लेकर जहां बीजेपी आप को घेरने में लगी है वहीं एलजी की मनमानी को लेकर आप केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है। ऐसे में बीजेपी को लगने लगा था कि आम आदमी पार्टी पहलवानों के आंदोलन की आड़ में बीजेपी की छवि ख़राब करने में लगी है। उधर कांग्रेस नेताओं के भी आंदोलन में जाने से केंद्र सरकार में नाराजगी है। कुल मिलाकर आंदोलित पहलवान समय रहते संभल गए हैं। राजनीतिक दलों का समर्थन परदे के पीछे से लिया जा सकता है।