Thursday, November 21, 2024
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Delhi : इस्कॉन रोहिणी श्री राधा माधव मंदिर में भगवान जगन्नाथ स्नान यात्रा महामहोत्सव

पारौणिक कथा के अनुसार भगवन जगन्नाथ को स्नान  करवाया जाता है और पश्चात भगवान पंद्रह दिन के लिए बीमार हो जाते हैं, पंद्रह दिन बात स्वस्थ हो कर वे रथ यात्रा के लिए  अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सभी को दर्शन देने के लिए रथ पर आरूढ़ हो बाहर निकलते हैं 

नई दिल्ली। इस्कॉन रोहिणी, श्री राधा माधव मंदिर में 4 जून को भगवान जगन्नाथ स्नान यात्रा का आयोजन  किया गया। इसी दिन चैतन्य महाप्रभु के दो परिकर मुकुंद दत्त और श्रीधर पंडित जी का तिरोभाव  दिवस भी था। निर्माणाधीन मंदिर में  तीसरी गोल्डन ब्रिक सेरेमनी के लिए इसी शुभ दिन को चुना गया।

मंदिर में  सुबह से ही भक्तों का आना आरंभ हो गया । भक्तों ने अत्यंत श्रद्धा के साथ यज्ञ में भाग लिया। सुमधुर कीर्तन के भक्ति रस से मंदिर का वातावरण अत्यंत आनंदमय था।  दानकर्ताओं ने अपने हाथों से भगवान के चरण स्थान पर अपने नाम से अंकित  ‘गोल्डन ब्रिक ‘ को रखकर भगवान के स्वागत की तैयारी  की।


बताया जाता है कि आज ही भगवान जगन्नाथ जी का आविर्भाव दिवस है । आज के दिन उन्हें स्नान  करवाया जाता है और पश्चात भगवान पंद्रह दिन के लिए बीमार हो जाते हैं । पंद्रह दिन बात स्वस्थ हो कर वे रथ यात्रा के लिए अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सभी को दर्शन देने के लिए रथ पर आरूढ़ हो बाहर निकलते हैं।

इस शुभ अवसर पर मंदिर अध्यक्ष श्रीमान केशव मुरारी दास प्रभु जी ने अपने प्रवचन में दानकर्ताओं को मंदिर निर्माण में योगदान के लिए धन्यवाद किया। अपने प्रवचन में उन्होंने स्नान यात्रा की कथा के साथ शुद्ध वैष्णवों मुकुंद दत्त और श्रीधर पंडित के तिरोभाव की कथा द्वारा सभी के लिए भक्ति मार्ग में प्रगति के लिए भगवान से प्रार्थना की।  उन्होंने भक्ति और संस्कारों की जागृति के लिए मंदिरों के विशेष महत्व को रेखांकित किया। श्रील प्रभुपाद के प्रयासों द्वारा  किस प्रकार इस्कॉन एक आध्यात्मिक अस्पताल की भूमिका में सामाजिक उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत है। मंदिर मन और बुद्धि को शुद्ध करके व्यक्ति को भगवान की सेवा के योग्य बनाते हैं। भौतिक बीमारियों से ग्रस्त व्यक्ति की इंद्रियों को शुद्ध करते हैं । भगवान की भक्ति से व्यक्ति में संस्कारों की जागृति होती है और वह पाप से दूर होकर अपने घर परिवार में ही वृंदावन जैसा आनंद लेना सीखता है।


मानव जन्म की सार्थकता आध्यात्मिक प्रगति में निहित है। इस्कॉन ने पूरे विश्व में सात सौ पचास से अधिक मंदिरों का निर्माण कर इस सामाजिक दायित्व को निभाया है।  इन मंदिरों ने करोड़ों  लोगों के जीवन को प्रभावित किया। बड़ों के जीवन में बदलाव के साथ – साथ बच्चों में भी गुरुकुल की आध्यात्मिक शिक्षा, नाम जप और भागवत गीता के द्वारा अपने जन्म को सार्थक करने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। उन्हें धर्म के प्रति जागरूक करके मनुष्य जन्म को सफल करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
 इस अवसर पर सभी दानकर्ताओं ने भगवान का अभिषेक करके अपने हाथ से स्वर्ण ईंट को भगवान के श्री चरणों में स्थापित किया । कार्यक्रम के पश्चात मंदिर प्रबंधन द्वारा सभी के लिए स्वादिष्ट प्रसाद की व्यवस्था रही। 

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