सच्चर समिति और सच्चर साहेब को भूलते जा रहे लोग
दिल्ली दर्पण ब्यूरो
नई दिल्ली। समाजवादी नीरज कुमार का कहना है कि 22 दिसम्बर को जस्टिस राजेंद्र सच्चर का जन्मदिन होता हैं | सभी साथियों को मिलकर जस्टिस सच्चर मेमोरियल लेक्चर फोरम बनाना चाहिए। उनका कहना है कि जो फॉर्मल हो और यह व्यक्तिगत चंदे से चले | उनका कहना है कि वह सोशल मीडिया से हमेशा जुड़े रहते हैं। इसलिए कह रहे हैं। उनका कहना है कि लोग धीरे-धीरे सच्चर समिति और सच्चर साहेब को भूलते जा रहे हैं।
नीरज कुमार का कहना है कि उनके जन्मदिवस पर हर साल एक मेमोरियल लेक्चर बड़े पैमाने पर हो | जिसमें पुरे देश से लोग दिल्ली में इकठा हों | इस फोरम के तहत सच्चर साहेब पर और भी कार्यक्रम हो सकते हैं | यह मेरा प्रस्ताव हैं इसमें अधिक से अधिक लोगों को जोड़ जल्द एक मीटिंग हो | उन्होंने कहा कि जस्टिस राजेंद्र सच्चर वंचित तबकों, स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए हमेशा लड़ते रहते थे |
जस्टिस सच्चर अपने आप में अनूठे व्यक्तित्व के मालिक थे| हम उन्हें किसी एक बॉक्स में बंद नहीं कर सकते | जहां भी अन्याय देखा उसका विरोध किया | नागरिक स्वतंत्रताओं और नागरिक अधिकारों के लिए वे लगातार संघर्षरत रहे | सच्चर साहब आम लोगों के साथ जुड़ कर उनके रोजमर्रा के संघर्ष का हिस्सा बने रहते थे | सच्चर साहब 1948 में गठन के साथ ही सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य हो गए थे। वे दिल्ली प्रदेश के सचिव भी थे। पार्टी द्वारा किये जाने वाले आंदोलनों में वे सक्रिय भूमिका निभाते थे। मई 1949 में दिल्ली में नेपाली दूतावास के सामने किया गए प्रदर्शन में वे डॉ. लोहिया के साथ गिरफ्तार हुए थे और डेढ़ महीने जेल में रहे थे। वे बताते थे कि जजी के दौरान उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी से छुट्टी ली थी और अवकाश प्राप्ति पर फिर पार्टी के सदस्य हो गए थे। सच्चर साहब का समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, नागरिक अधिकारों, व्यक्ति-स्वातंत्र्य और अन्याय के प्रतिकार की अहिंसक कार्यप्रणाली में अटूट विश्वास था। सच्चर साहब की बहुआयामी भूमिका की सार्थकता के मूल में उनकी लोकतांत्रिक समाजवाद और सोशलिस्ट विज़न में गहरी आस्था थी. और इस गहरी आस्था को जिंदा रखना हम समाजवादी साथियों की जिम्मेदारी हैं।