अभी भी आरक्षण से महिलाओं के लाभान्वित होने की उम्मीद कम ही
जनगणना और परिसीमन के बाद ही लागू हो पाएगा महिला आरक्षण बिल
अधिकतर महिला जनप्रतिनिधियों का काम काज संभालते हैं उनके पति
महिलाओं को राजनीतिक समझ न होने की बात करते हुए उनको पीछे धकेल देते हैं खुद उनके परिजन
एससीएसटी और पिछड़ा वर्ग के लिए अलग से कोटा भी है बड़ा पेंच
चरण सिंह राजपूत
मोदी सरकार ने महिलाओं का 33 प्रतिशत आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कर दिया है। वह बात दूसरी है कि विपक्ष ने महिला आरक्षण स्वीकार करते हुए भी एससीएसटी और पिछड़ों के लिए अलग से कोटा करने की मांग करते हुए फ़िलहाल पेंच फंसा दिया है। खुद बीजेपी नेता उमा भारती ने पिछड़ा वर्ग के लिए कोटा न होने से निराशा व्यक्त की है। वैसे भी जनगणना और परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण बिल लागू हो पाएगा। मतलब 2029 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण का फायदा मिलने की उम्मीद है।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या पुरुष प्रधान राजनीति में राजनेता इतनी आसानी से महिलाओं का 33 प्रतिशत आरक्षण स्वीकार कर लेंगे ? जगजाहिर है कि आज के दौर में भी प्रधान पति, पार्षद पति, विधायक पति और सांसद पति तक शब्द समाज में बहुत प्रचलित हैं। मतलब जहां महिला आरक्षित सीट होती है वहां पर प्रभावशाली लोग अपनी पत्नियों को चुनाव तो लड़ा देते हैं पर चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि पत्नियों कामकाज खुद ही संभाल लेते हैं। यहां तक कि विभिन्न समारोह में भी जनप्रतिनिधि पति की ही पूछ होती है। कितनी महिला जनप्रतिनिधि देश में ऐसी हैं जिन्हें आज भी घर से नहीं निकलने दिया जाता है। ऐसे में बड़ा प्रश्न उठता है कि महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण के बाद महिलाओं को उनका हक़ मिल जाएगा ?
विपक्ष महिला आरक्षण में एससीएसटी और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के लिए इसलिए बात कर रहा है। क्योंकि यह माना जाता है कि महिला आरक्षण का फायदा सवर्णों को ज्यादा होगा। समाज में यह धारणा है कि दलितों और पिछड़ों में पढ़ी लिखी महिलाएं कम होती हैं। उनको आगे बढ़ने का मौका कम मिलता है। एससी एसटी और पिछड़ा और वर्ग का आरक्षण होने से इन महिलाओं को भी आगे बढ़ने का मौका मिल जाएगा।
ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि क्या महिला आरक्षण बिल आम राय से पास हो जाएगा ? मोदी सरकार ने इस सोच के साथ कि देश में महिलाओं की शक्ति, समझ और नेतृत्व को भारतीय राजनीति में दरकिनार किया गया है। मोदी सरकार ने महिलाओं को पूज्य मानते हुए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ का प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया है। ऐसे में महिला आरक्षण लागू कराना न केवल सरकार बल्कि देश की सभी राजनीतिक दलों की परीक्षा है।
दरअसल वैसे तो दूसरे क्षेत्रों के साथ ही देश की राजनीति भी पुरुष प्रधान रही है। वैसे तो राजनेता महिला सशक्तिकरण की बात करते रहे हैं। उनको सम्मान दिलाने की बात करते रहे हैं पर महिलाओं की राजनीति में भागीदारी से वे पीछे हट जाते रहे हैं।
इसे राजनेताओं की महिलाओं के प्रति उदासीनता ही कहा जाएगा कि 1992 में पंचायत स्तर पर 33 प्रतिशत आरक्षण का क़ानून बनाए जाने के बावजूद आरक्षण के संसद और विधानसभाओं में लाने के प्रस्ताव पर आम राय बनाने में तीन दशक से ज़्यादा लग गए। राजनेता महिलाओं को राजनीतिक समझ के मामले में पिछड़ा मानते हैं। यही वजह रही कि पंचायत से लेकर लोकसभा तक महिलाएं जनप्रतिनिधि तो बनती हैं पर काम के मामले में पति ही सब कुछ करते हैं। हमारे समाज में प्रधान पति सरपंच पति, पार्षद पति और विधायक पति शब्द बहुत प्रसिद्ध हैं। मतलब चुनी हुईं महिलाओं को पीछे धकेल कर उनके पति उनका अधिकार छीन लेते हैं और जो रुतबा महिलाओं का होना चाहिए वह उनके पति का रहता है।
दरअसल दो साल पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने का ऐलान किया था पर कांग्रेस को इसका फ़ायदा नहीं बल्कि नुक़सान हुआ। उत्तर प्रदेश की 403 सीटों वाली विधानसभा में सात सीटों पर काबिज़ कांग्रेस चुनाव के बाद पाँच सीटें हार कर दो पर ही सिमट गई। इन दो महिलाओं में एक महिला कांग्रेस के राज्य सभा सांसद प्रमोद तिवारी की सीट पर लड़ रहीं उनकी बेटी अराधना मिश्रा थी। जो तीसरी बार विधायक चुन कर आईं थी। यह सीट उनकी परम्परा गत सीट मानी जाती है।
दरसल संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक में प्रावधान है कि लोकसभा दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। यानी कि महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी। इस ऐतिहासिक बदलाव के बाद से सक्रिय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेंगी।
दरअसल संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन नई संसद में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया। इस विधेयक के कानून में बदलने के बाद सदन में महिलाओं की 33 प्रतिशत अनिवार्यता हो जाएगी।
महिला आरक्षण बिल- इस बिल में लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई है। इसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत पेश किया गया है। इस संशोधन के बाद लोकसभा में एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होगी। इस विधेयक से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
महिलाओं की बढ़ेगी भागीदारी
महिला आरक्षण विधेयक में दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रावधान है। इसके तहत दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी अनिवार्य हो जाएगी। इससे राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने में गति मिलेगी। इस कानून के बाद लोकसभा में कम से कम 181 महिला सांसद चुनकर आएंगी, फिलहाल सदन में महिला सदस्यों की संख्या 82 है।
देखने की बात यह है कि लोकसभा और दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर ही देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं में भी ये बदलाव लागू होगा। जैसे लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। ठीक उसी तरह से सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की 33 प्रतिशत सीटें अनिवार्य हो जाएगी। इसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित सीटों में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी।
इस बिल के पास होने के बाद लोकसभा, दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाएगी। महिलाओं के लिए लाए गए आरक्षण 15 वर्षों तक प्रभाव में रहेगा। इसके साथ ही इसमें प्रावधान है कि सीटों का आवंटन रोटेशन प्रणाली के तहत की जाएगी।