प्रोफेसर राजकुमार जैन
आज सोशलिस्टों के पितामह आचार्य नरेंद्र देव का 134 वां जन्मदिवस है। यूं तो आचार्य जी की शख्सियत को किसी एक लेख, किताब, भाषण से बयां नहीं किया जा सकता। उन पर अनेकों लेख किताबें भाषण छप भी चुके हैं। उनके व्यक्तित्व का कुछ उदाहरणो से ही पता चल जाता है, कि वह कितने बड़े महामानव थे।
17 मंई1934 को पटना में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना आचार्य जी की अध्यक्षता में ही हुई थी। महात्मा गांधी से जब श्री प्रकाश जी ने आचार्य जी का परिचय करवाया तो पहली मुलाकात में गांधी जी आचार्य जी से इतने प्रभावित हो गए और उन्होंने कहा, “
“श्रीप्रकाश तुमने ऐसे रत्न सरीखे व्यक्ति को कहां छुपा रखा था और मुझसे कभी उनके बारे में बताया भी नहीं।
यूं तो आचार्य जी ने बरतानिया हुकूमत की खिलाफत करते हुए कई साल जेल में बिताएं परंतु जब वे और पंडित जवाहरलाल नेहरू अहमदनगर किले जेल में बंद थे, उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ लिख रहे थे। जवाहरलाल जी ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है कि यह किताब आचार्य नरेंद्र देव तथा मौलाना आजाद की सहायता के बिना नहीं लिखी जा सकती थी। आचार्य नरेंद्र मेरे लिए एक एनसाइक्लोपीडिया साबित हुए।
उनके व्यक्तित्व के गहने प्रभाव की एक और मिसाल 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव की है। सुभाष चंद्र बोस उम्मीदवार थे, उधर गांधीजी के आशीर्वाद से सीतारमैया भी खड़े थे। सुभाष बाबू ने प्रस्ताव किया कि यदि आचार्य जी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाता है, तो मैं अपना नाम वापस ले लूंगा। गांधी जी भी सहमत थे परंतु अन्य कांग्रेसी जनों ने स्वीकार नहीं किया। आचार्य जी के इंतकाल पर जवाहरलाल नेहरू ने 20 फरवरी 1956 को राज्यसभा में खिराजे अकीदत पेश करते हुए कहा,
40 वर्ष से अधिक का समय गुजरा जब हम दोनों साथ हुए स्वतंत्रता संग्राम की धूल और धूप में तथा जेल जीवन की लंबी नीरवता में जहां हमने विभिन्न स्थानों पर चार या पांच साल मुझे वास्तविक अवधि इस समय याद नहीं आ रही है साथ बिताए हम अनगिनत अनुभवो और अनुभूतियों के सहयोगी रहे और जैसा की अवश्यंभावी था हम एक दूसरे को अंतरंग रूप से जानने और समझने लगे। इसलिए मेरे लिए और हम में से बहुत से अन्य लोगों के लिए उनका निधन एक दुखद हानि है।
आज की राजनीति जिसमें दल बदल कपड़े बदलने की तरह हो गया है। उसमें भी आचार्य जी ने हिंदुस्तान की सियासत में पहला उदाहरण उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर दिखाया था। वे कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे परंतु जब वे सोशलिस्ट पार्टी बनाकर उसमें शामिल हो गए तो नैतिकता के आधार पर आचार्य जी और उनके 11 सोशलिस्ट साथियों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
30 मार्च 1948 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में अपने इस्तीफा की घोषणा करते हुए आचार्य जी ने कहा था
ैंमैने और मेरे ग्यारह साथियों ने आज असेम्बली से त्यागपत्र देने का निर्णय कर लिया है और कांग्रेस-असेम्बली पार्टी के नेता को अपना त्यागपत्र दे दिया है। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि कांग्रेस से पृथक् होने का यह निर्णय हमारे जीवन का सबसे कठिन निर्णय है। बिना पूर्व विचार के हमने यह निर्णय सहसा नहीं किया है।
ब्रिटिश पार्लमेण्ट तथा अन्य व्यवस्थापिकाओं का इतिहास बताता है कि ऐसे अवसर पर लोग त्यागपत्र भी नहीं देते। हम चाहते तो इधर से उठकर किसी दूसरी ओर बैठ जाते। किन्तु हमने ऐसा करना उचित नहीं समझा। ऐसा हो सकता है कि आपके आशीर्वाद से निकट भविष्य में हम इस विशाल भवन के किसी कोने में अपनी कुटी का निर्माण कर सकें (हर्षध्वनि)। किन्तु चाहे यह संकल्प पूरा हो या नहीं, हम अपने से विचलित न होंगे। हम जानते हैं कि हमारे देश का यह युग निर्माण का है, न कि ध्वंस का । अतः हमारी आलोचना सदा इसी उद्देश्य से होगी। हम व्यक्तिगत आक्षेपों से सदा बचने का प्रयत्न करेंगे और हम किसी ऐसे विवाद में न पड़ेंगे। राजनीतिक जीवन को स्वस्थ और नीतिपूर्ण बनाने में हम अपना हाथ बढ़ाना चाहते हैं। इन बातों में महात्मा जी का उपदेश हमारा पथ-प्रदर्शन करेगा। हम आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हमने किसी विद्वेष और विरोध के भाव से प्रेरित होकर यह कार्य नहीं किया है। हममें किसी प्रकार की कटुता नहीं है। हमारे बहुत से साथी और सहकर्मी कांग्रेस में हैं और उनके साथ हमारा सम्बन्ध मधुर रहेगा। हम जानते हैं कि उनको भी हमारे अलग होने से दुःख पहुँचा है। हमारे समान राजनीतिक आदर्श तथा हमारी समान निष्ठा अब भी हमको एक प्रकार उनसे एक सूत्र में बाँधे रहेगी।
माननीय अध्यक्ष महोदय, आप एक कुटुम्ब के सम्मानित सदस्य होते हुए भी इस भवन के अन्य कुटुम्बों के अधिकारों की भी रक्षा करते हैं। अतः हम आपसे आशा करते हैं कि आप हमको आशीर्वाद देंगे कि हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफलता प्राप्त करें। हम आपके प्रति तथा कांग्रेस असेम्बली पार्टी के नेता माननीय पं. गोविन्द वल्लभ पन्त के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं।”
स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा,समाजवादी सिद्धांतों नीतियों कार्यक्रमों के मूल स्थापक, भारतीय संस्कृति के व्याख्याता, प्राचीन साहित्य. इतिहास, बौद्ध धर्म दर्शन तथा समाजवाद के पुरोधा इस प्रकांड पंडित आचार्य नरेंद्र देव के लिए हम नतमस्तक हैं।