अशोक विहार की रामलीला कमेटी की रामलीला को सनातन धर्म में रंगने की पूरी तैयारी
हिंदुत्व पर केंद्रित रहेंगी रामलीलाएं, देखने को मिलेगा सियासत का तड़का
चरण सिंह राजपूत
राम मंदिर का उद्घाटन भले ही 22 जनवरी को होने की बात की जा रही हो पर जल्द ही देशभर में होने जा रही रामलीला में भगवान राम की नगरी रही अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की भव्यता को दर्शाने और सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार की पूरी व्यवस्था कर दी गई है। इस बार की रामलीला हर बार होने वाली रामलीला से जरा थोड़ी हटकर देखने को मिलेगी। इस बार रामलीलाओं में सनातन धर्म, हिंदुत्व पर जोर के साथ ही सियासत का तड़का रहेगा।
अशोक विहार की रामलीला कमेटी इस बार रामलीला को सनातन धर्म में रंगने जा रही है। ख़बरें ऐसी आ रही हैं कि दिल्ली ही नहीं बल्कि देश भर में होने वाली अधिकतर रामलीला कमेटियां राम मंदिर के उद्घाटन से पहले रामलीला में हिंदुत्व का माहौल बनाने का पूरा प्रयास करेंगी। दिल्ली में एक रामलीला कमेटी के अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया कि सनातन धर्म को न मानने वाले व्यक्ति को रामलीला में नहीं घुसने दिया जाएगा। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यह कैसे निर्धारित होगा कि फला व्यक्ति सनातन धर्म को मानता है या नहीं। या फिर यह कहें कि रामलीला कमेटियां राम को एक धर्म विशेष से बांधना चाहती हैं।
दरअसल राम को भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, इंडोनेशिया के साथ वे सभी देश जहां पर भारतीय मूल के लोग रहते हैं वहां भगवान की तरह पूजते हैं। राम को सनातन धर्म ही नहीं बल्कि दूसरे धर्म के न जाने कितने लोग भी अपना आदर्श मानते हैं। यहां तक कि कितने मुसलमान भी यह कहते सुने जा सकते हैं कि भगवान राम हिन्दुओं के ही नहीं बल्कि हमारे भी हैं। ऐसे में राम को एक धर्म विशेष में बांधकर क्या उनके महत्व को कम नहीं किया जा रहा है ?
दरअसल अधिकतर रामलीला कमेटियों में बीजेपी को मानने वाले लोग ज्यादा हैं। यह वजह होती है कि रामलीलाओं में बीजेपी का प्रभाव ज्यादा होता है। वैसे भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर बीजेपी ने ही आंदोलन किये हैं और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का श्रेय लोग बीजेपी को ही दे रहे हैं। विशेषकर पीएम मोदी को।
वैसे भी बिहार में जातिगत जनगणना के हिन्दू मुस्लिम मुद्दे को पीछे धकेल कर अगड़े और पिछड़े मुद्दे को सुलगने से हिन्दू संगठनों में बेचैनी हैं। अब यह भी बड़ी वजह हो गया है कि हिन्दू संगठनों ने रामलीलाओं में सनातन धर्म के माध्यम से हिन्दू और मुस्लिम एजेंडे पर जोर देने की पूरी रणनीति बना ली है। इस बार की रामलीलाओं में रामलीला से ज्यादा राम मंदिर और सनातन धर्म का प्रचार और प्रसार ज्यादा दिखाई दे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जैसे दिल्ली में एक धार्मिक कार्यक्रम में एक विशेष धर्म के व्यक्ति ने प्रसाद क्या खा लिया कि उसे पीट पीटकर कर मार डाला। तो क्या रामलीला देखने यदि किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति आता है तो उसके साथ बदसलूकी होगी ? दरअसल रामलीला देखने के लिए हिन्दुओं के साथ ही दूसरे धर्म के लोग भी आते रहे हैं। यहां तक कि मुसलमान भी। तो ऐसे में रामलीला भी धर्म विशेष से नहीं बांध दी रही है ?