-राजेंद्र स्वामी , दिल्ली दर्पण टीवी दिल्ली।
दिल्ली लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के साथ ही यह कयास लगाने भी शुरू हो गए है की क्या लवली फिर से बीजेपी में शामिल होंगे ? क्या वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे ? यदि हाँ तो क्या वह सीट पूर्वी या उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट होगी ? दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में बगावत और नाराजगी से ज्यादा चर्चाएं इसी को लेकर कांग्रेस के खेमे में चल रही है। गौरतलब है अभी कुछ ही दिन पहले कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान ने भी नार्थ वेस्ट लोकसभा क्षेत्र से डॉ उदित राज को टिकट दिए जाने के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। और इसके बाद अब खुद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भी इस्तीफा दे दिया है। जाहिर है दिल्ली कांग्रेस में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मची आपसी कलह पार्टी में चर्चा का विषय बनी हुयी है। चर्चा केवल यह नहीं है कि कांग्रेस में कलह की वजह प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया है या वजह कन्हैया कुमार और डॉ उदित राज को टिकट दिए जाना इसकी वजह है। लवली ने कांग्रेस प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया पर कई आरोप लगते हुए कहा है कि उनका पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम करना मुश्किल हो रहा है। खुद को असहाय अनुभव कर रहे है।
बहरहाल चर्चा यह भी है की क्या लवली के साथ और भी कई नेता पार्टी छोड़ने वाले है ? क्या कांग्रेस को अभी एक और बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। जो आरोप लवली ने लगाए है उन पर चर्चा है की कुछ हद तक लवली के आरोप सही है। कांग्रेस में मची इस कलह का करकं दीपक बावरिया की कार्यशैली है। कांग्रेस नेता इस बात पर भी सहमत है की कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए। आम आदमी पार्टी ने कैसे कैसे आरोप कांग्रेस पर लगाए। अब जब दोनों के बीच गठबंधन हो गया तो कांग्रेस नेताओं ने उसे स्वीकार भी किया , लेकिन आम आदमी पार्टी के विधायक कांग्रेस के लिए प्रचार नहीं कर रहे है। कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भी केवल अपने हिस्से के तीन सीटों नॉर्थ वेस्ट ,चांदनी चौक और उत्तर पूर्वी पर ही काम कर रहे है। ऐसे में गठबंधन का क्या लाभ ? अभी भी समय है और कांग्रेस को सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। नाम न छपने की शर्त पर कई बड़े नेता यह स्वीकार कर रहे है कि देश में मोदी सरकार के विरोध में अंदरूनी लहर है।
यह सही समय है की कांग्रेस को पुनर्गठित किया जा सकता है। लवली और राजकुमार चौहान जैसे अवसरवादी नेताओं का कांग्रेस से बाहर रहना ही अच्छा है। लवली ने केवल अपने लाभ के लिए ऐसे नेताओं को तरजीह दी जो संकट और संघर्ष के समय या तो कांग्रेस छोड़ कर चल गयी या फिर पूरी तरह निष्क्रिय होकर बैठे रहे। अब जब चुनाव आया और उन्हें समय अनुकूल लगा तो फिर सक्रिय हो गए। और अब जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे फिर पार्टी छोड़ रहे है , बगावती तेवर दिखा रहे है। दरअसल कांग्रेस अपने इन नेताओं की ब्लैकमेल का शिकार हो रही है। राजकुमार चौहान और लवली ही पार्टी को ब्लैकमेल नहीं कर रहे है बल्कि चांदनी चौक से कांग्रेस प्रत्याशी बने जयप्रकाश अग्रवाल भी पार्टी से इस्तीफे की धमकी देकर टिकट ली नहीं बल्कि छीनी है। जयप्रकाश अग्रवाल की उम्र 80 वर्ष पर कर चुकी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता खुद इस बात को स्वीकार करते है कि वे अपने बेटे मुदित के लिए टिकट मांग रहे थे और अब चुनाव लड़ रहे है तो इसके पीछे भी मंशा मुदित को राजनीती में सेट करने की है। लोकसभा चुनाव में मुदित है ज्यादातर सभाएं ले रहे है। उम्र और स्वास्थ्य की वजह से जयप्रकाश ज्यादा चल फिर नहीं सकते। कांग्रेस कैडर में मची कलह पर कार्यकर्ता खुलकर यह चर्चा कर रहे है की पार्टी को अब ऐसे स्वार्थी नेताओं के आगे झुकाने की जरूरत नहीं है। देशभर में मोदी विरोध की आंधी चल रही है। इस आंधी में कांग्रेस का कूड़ा भी उड़ रहा है तो यह कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत ही है। वैसे भी चुनाव अब पार्टी नहीं बल्कि देश की जनता लड़ रही है। इस मौके का लाभ उठाना चाहिए। इन लोगों के चले जाने के बाद यदि कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह बीजेपी के साथ साथ ऐसे नेताओं के लिए भी अच्छा सबक होगा।
बहरहाल अब चर्चा यह भी है कि दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पर अब कौन काबिज होना चाहिए। इन चर्चाओं में सबसे ऊपर नाम देवेंद्र यादव का नाम फिर से चल पड़ा है। पार्टी के संकट और संघर्ष के समय में देवेंद्र यादव हमेशा पार्टी के साथ ही नहीं रहे बल्कि सक्रिय भी रहे। वे हर तरह से सक्षम भी है। हल्की अभी वे पंजाब के प्रभारी है और पंजाब में अब उनके करने के लिए कुछ ख़ास बचा नहीं है। लवली से पहले भी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर देवेंद्र यादव के नाम पर सहमति की मोहर लग चुकी थी। लेकिन खरगे की पसंद लवली रहे और वे प्रदेश अध्यक्ष बन गए। खरगे के लिए भी यह स्थित सहज नहीं है। कुछ वरिष्ठ नेता यह भी मानते है की दिल्ली की राजनीति वैश्य और पंजाबी समुदया के इर्द गिर्द घूमती है। लिहाज़ा किसी वैश्य को भी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाये तो इसका लाभ पार्टी को इन चुनावों में भी मिल सकता है।