अंशु ठाकुर, दिल्ली दर्पण टीवी
इनदिनों जब राजनीती में कैग रिपोर्ट का मामला बहुत गरमाया हुआ है. दिल्ली में रेखा सरकार बनने के बाद सीएम रेखा गुप्ता ने ये ऐलान किया था कि वो विधानसभा में कैग रिपोर्ट पेश करेंगी . जिसकी वजह से दिल्ली की सियासत में काफी हलचल मच गयी थी.
यह पहली बार नहीं है, जब कैग की रिपोर्ट ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हो. कैग रिपोर्ट की वजह से मुख्यमंत्री और मंत्रियों की कुर्सी तक जा चुकी है. इतना ही नहीं, कैग की रिपोर्ट से बने भ्रष्टाचार के माहौल में पूरी मनमोहन सरकार ही चली गई.
ऐसे में सबसे पहले ये समझते है कि CAG आखिर है क्या और ये काम कैसे करता है ?
संविधान में सरकारी खर्च की जांच पड़ताल करने के लिए एक सरकारी एजेंसी बनाने का प्रावधान है. अनुच्छेद 148 के मुताबिक इस एजेंसी के प्रमुख की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. प्रमुख को उसी तरह से हटाया जा सकता है, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के एक जज को.
संसद के किसी भी सदन से निष्कासन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.
दोनों सदनों में विशेष बहुमत से प्रस्ताव को पारित किया जाता है.
पारित प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है.
राष्ट्रपति, CAG को हटाने का आदेश देते हैं.
संविधान के अनुच्छेद 149, 150 और 151 में कैग के कामकाज और शक्तियों के बारे में जिक्र है. कैग का काम सभी सरकारी संस्थाओं का ऑडिट करना है और उसकी रिपोर्ट संसद या विधानसभा के पटल पर रखना है. वर्तमान में कैग 2 तरह से ऑडिट करता है. 1. रेग्युलेरिटी ऑडिट और 2. परफॉर्मेंस ऑडिट.
रेग्युलेरिटी ऑडिट को कम्पलायंस ऑडिट भी कहते हैं. इसमें सभी सरकारी दफ्तरों के वित्तीय ब्यौरे का विश्लेषण किया जाता है. विश्लेषण में मुख्यत: यह देखा जाता है कि सभी नियम-कानून का पालन किया गया है या नहीं? 2जी स्पैक्ट्रम की नीलामी का मामला रेग्युलेरिटी ऑडिट की वजह से ही उठा था.
इसी तरह परफॉर्मेंस ऑडिट में कैग यह पता लगाया जाता है कि क्या सरकारी योजना शुरू करने का जो मकसद था, उसे कम खर्च पर सही तरीके से किया गया है या नहीं? इस दौरान योजनाओं का बिंदुवार विश्लेषण किया जाता है.