रोहिणी सेक्टर 21 का ये वही पार्क है जो सरकारी पैसों से नहीं बल्कि साफ माहौल में जीने की जिजीविषा से उपजे पुरुषार्थ की पराकाष्ठा से आए पासीनों की बूंदों से हरा है। यहां खिलखिला रहे हौलीहॉक, डहेलिया, फ़्लॉक्सबगुना, मैरीगोल्ड और सनफलवार से लेकर हरियाली की कार्पेट में बिछे घास तक सब कुछ यहां के ही कुछ लोगों के तन मन और धन के समर्पण से उपजा है। वरना चार साल पहले तक इसकी पहचान जंगल जलेबी वाले पार्क की थी।
कहानी तीन साल पुरानी है, तब यहां, जंगल जलेबी के पेड़ों की भरमार होती थी, जिसके नीचे शराबियों और जुआरियों की महफिलें जमती थीं।यहां पड़े कचरे से उठती बू किसी को अपने पास भी नहीं आने देती थी। ऐसे में विभागों को चिट्ठियां लिख लिख कर और नेताओं को अर्जी दे देकर भी जब वर्षों तक कुछ नहीं हुआ, तो कुछ स्थानीय लोगों ने इसका बीड़ा खुद उठा लिया।
अपने जेब से पैसे लगाए और समर सिबल ठीक कराया, फूल और पौधे लगाए। जिसकी बदौलत आज सुबह शाम इस पार्क में दो, ढाई सौ बच्चे तितलियों के पीछे भागते हैं, युवा भाग कर स्वास्थ्य को दुरुस्त करते हैं, प्रौढ़ स्वच्छ वायु में प्राणायाम करते हैं। मगर प्रशासन आज भी धृतराष्ट्र बना बैठा है।