झील में डलने वाले गोबर ने बढ़ाया झील का संकट
झील के लिये स्थानीय लोग लगा रहे हैं प्रशासन से गुहार
क्या झील की कायापलट कर पाएगी सरकार ?
भलस्वा झील इस वक्त अपनी बदहाली पर रो रही है। एक समय परियटकों को लुभाने वाली भलस्वा झील आज बेहद ही खराब हालतों क वजह से बदहाल हो चुकी है। जगह-जगह गंदगी का ढेर लगा है। भलस्वा गांव की डेरिया से निकलने वाला गोबर भलस्वा झील के लिये मानों संकट बनकर उभरा है। यही वजह है आज ये झील वीरान दिखाई पड़ती है।
अब कोई यहां आना पसंद नहीं करता। ऐसा भी नहीं है की झील की बदहाली पर प्रशासन को जानकारी नहीं है । बल्कि भलस्वा झील की बदहाली को लेकर सांसद हंसराज हंस ने संसद में मुद्दा भी उठाया था । लेकिन बावरजूद इसके झील के हालात में कोई सुधार नहीं हुआ।यही वजह है की भलस्वा झील अपनी बदहाली के कारण विलुप्त होने की कगार पर है। इलाके के लोग झील की अंदेखी से नाराज़ हैं और चिंता में भी हैं।
स्थानीय लोगों की माने तो पहले झील का पानी बहुत साफ होता था ।और मछलियां भी काफी संख्या में थी। अब झील का पानी केमिकल की वजह से विषैला हो गया है। जगह जगह गंदगी का का अंबार लगा हुआ है। झील में लगातार गोबर का ढलाव जारी है। जिसके चलते मछलियां भी मर गई। लोग सालों से अपनी दैनिक दिनचर्या के अनुसार झील में मछलियों को दाना खिलाने के लिए आते हैं। अब लोगों को यह नहीं पता कि मछलियां झील में है या नहीं।
यहां मछलियों को दाना डालने के लिए आए ऋषि पाल सिंह व अरविंद यादव ने बताया कि वह पिछले कई सालों से लगातार झील पर मछलियों को दाना डालने के लिए आ रहे हैं। भलस्वा झील की हालत में पिछले करीब 20 सालों में काफी फर्क देखने को मिला है। यह दिल्ली के एकमात्र बड़ी झील है। जो प्रशासन की अनदेखी की वजह से बदहाली के कगार पर पहुंच गई है।
भलस्वा झील में खेल प्रतियोगिता होती थी और यहां से ट्रेनिंग करने वाले खिलाड़ी आज बीएसएफ में उच्च पदों पर अधिकारी हैं। खुद अरविंद यादव भी यहां पर साल 1994 में केनाइन वोट चलाते थे। लेकिन अब झील की बदहाली के कारण सब कुछ बंद हो चुका है।
अरविंद यादव प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि झील को बचाने में वह जनता का सहयोग करें और यहां पर पर्यटन को बढ़ाने के लिए झील की सफाई कराई जाए। ताकि झील पर पर्यटन तो बढ़े साथ ही दोबारा से खेल प्रतियोगिताएं भी यहां पर होने लगे। जिसके बाद खिलाड़ी देश का नाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करेंगे।