एकता चौहान
अगर इंसान के अंदर कुछ कर दिखाने का जस्बा हो तो वो क्या कुछ नही कर सकता। अगर आपके अंदर भी जीत की जीद है तो आपकी जीत के आगे आपकी उम्र और आपके हालात कुछ मायने नही रखते। इस बात की मिसाल पेश की है 94 साल की भगवानी देवी डागर ने।
जिस उम्र में लोग ठिक से उठ-बैठ नही पाते उस उम्र में भगवानी देवी ने विदेश में जाकर भारत के तिरंगे का मान बढ़ाया है। भगवानी देवी ने भारत के लिए एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक जीते हैं। भगवानी दिल्ली के नजफगढ़ की रहने वाली हैं।
स्प्रिंटर दादी की उपलब्धि जितनी बड़ी है उनके एथलीट बनने की कहानी भी उतनी ही रोचक भी है। भगनावी ने बताया कि वो अपने पोते के साथ खेल के मैदानों में जाया करती थी। वहा वो अपने पोते के साथ दौड़ और शॉटपुट में हाथ अजमाया करती थी और जभी से स्प्रिंटर दादी की रुची दौड़ और शॉटपुट में पैदा हो गई और आज उनकी उपलब्धि युवा खिलाड़ियों को भी प्रेरणा दे रही है। यहां तक कि वह खिलाड़ियों में भी चर्चित हो गईं और स्थानीय बच्चे उन्हें स्प्रिंटर दादी कहने लगे है।
ये भी पढ़ें – आखिर क्यों सिख महिला को परिक्षा में बैठने से रोका गया…
हाल ही में फिनलैंड के टेम्परे में वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप आयोजित हुई थी। जिसमें भगवानी देवी ने भी हिस्सा लिया था। इसी चैंपियनशिप में स्प्रिंटर दादी ने ऐसा कारनामा कर दिखाया जिसने देश का तो नाम रोशन किया ही है। बल्कि इस उम्र के बुजुर्गों का भी हौंसला बढ़ाया है। चोरानवे साल की भगवानी देवी ने 100 मीटर स्प्रिंट रेस में 24.74 सेकेंड में दौड़ पूरी कर गोल्ड मेडल जीता है। स्प्रिंटर दादी ने एथलेटिक्स ही नही बल्कि शॉटपुट और डिस्कस थ्रो में भी उन्होंने शानदार खेल दिखाया। इन प्रतियोगिताओं में स्प्रिंटर दादी ने ब्रॉन्ज पर कब्जा जमाया।