Centre stops Maulana Azad fellowship: कांग्रेस सांसद टी.एन. प्रातपन ने सरकार के इस कदम को न्याय के विरुद्ध बताया है। उनका मानना है कि इस फैसले के कारण कई शोधकर्ता आगे अध्ययन करने का अवसर खो देंगे।
दिल्ली दर्पण टीवी ब्यूरो
Maulana Azad National Fellowship: मोदी सरकार बंद करने जा रही है मौलाना आज़ाद के नाम पर चलने वाली स्कॉलरशिप योजना, अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के लिए कांग्रेस सरकार में हुई थी शुरू
Centre decided to discontinue the Maulana Azad National Fellowship: केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों (minority communities) के छात्र-छात्राओं को मिलने वाले मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF) को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद करने का फैसला किया है। इस फेलोशिप को यूपीए सरकार ने शुरू किया था। तब इसे सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था।
बता दें कि सच्चर कमेटी का गठन साल 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की थी। कमेटी ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में पेश की थी। सच्चर कमेटी अल्पसंख्यक समुदायों विशेषकर मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक दशा को जानने के लिए बनाया गया था।
फेलोशिप खत्म करने की वजह
अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Union Minority Affairs Minister Smriti Irani) ने गुरुवार को लोकसभा में बताया कि फेलोशिप खत्म करने का निर्णय इसलिए किया गया क्योंकि MANF कई अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप करता है।
ईरानी ने कहा, ”चूंकि MANF योजना सरकार द्वारा लागू उच्च शिक्षा के लिए कई अन्य फैलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप करती है और अल्पसंख्यक छात्रों को पहले से ही ऐसी योजनाओं के तहत कवर किया गया है, इसलिए सरकार ने 2022-23 से MANF योजना को बंद करने का फैसला किया है।”
द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे रिसर्च स्कॉलर्स को फेलोशिप मिलने में देरी हो रही है। तब छात्रों ने भी योजना के जारी रहने पर संदेह जताया था।
कांग्रेस सांसद ने बताया अन्याय
कांग्रेस सांसद टी.एन. प्रातपन ने कहा है कि वह MANF को रोकने का मुद्दा संसद में उठाएंगे। उन्होंने सरकार के इस कदम को अन्याय बताते हुए कहा है, ”यह अन्याय है। सरकार के इस फैसले से कई शोधकर्ता आगे अध्ययन करने का अवसर खो देंगे।”
इस बीच जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र संगठन ‘नेशनल स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष एन.एस. अब्दुल हमीद ने कहा है कि यह मुद्दा उन अल्पसंख्यक छात्रों को प्रभावित करेगा, जिन्हें ओबीसी नहीं माना जाता है। हामीद ने कहा है, ”हम केंद्र से विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं। विसंगतियों को दूर करने के बजाय छात्रवृत्ति को पूरी तरह बंद करने से कई ऐसे मुस्लिम, सिख और ईसाई विद्यार्थी प्रभावित होगों, जिन्हें विभिन्न राज्यों में ओबीसी नहीं माना जाता है।”
Maulana Azad National Fellowship: मोदी सरकार बंद करने जा रही है मौलाना आज़ाद के नाम पर चलने वाली स्कॉलरशिप योजना, अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के लिए कांग्रेस सरकार में हुई थी शुरू
Centre decided to discontinue the Maulana Azad National Fellowship: केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों (minority communities) के छात्र-छात्राओं को मिलने वाले मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (MANF) को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद करने का फैसला किया है। इस फेलोशिप को यूपीए सरकार ने शुरू किया था। तब इसे सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था।
बता दें कि सच्चर कमेटी का गठन साल 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की थी। कमेटी ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में पेश की थी। सच्चर कमेटी अल्पसंख्यक समुदायों विशेषकर मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक दशा को जानने के लिए बनाया गया था।
फेलोशिप खत्म करने की वजह
अल्पसंख्यक मामलों की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Union Minority Affairs Minister Smriti Irani) ने गुरुवार को लोकसभा में बताया कि फेलोशिप खत्म करने का निर्णय इसलिए किया गया क्योंकि MANF कई अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप करता है।
ईरानी ने कहा, ”चूंकि MANF योजना सरकार द्वारा लागू उच्च शिक्षा के लिए कई अन्य फैलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप करती है और अल्पसंख्यक छात्रों को पहले से ही ऐसी योजनाओं के तहत कवर किया गया है, इसलिए सरकार ने 2022-23 से MANF योजना को बंद करने का फैसला किया है।”
द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे रिसर्च स्कॉलर्स को फेलोशिप मिलने में देरी हो रही है। तब छात्रों ने भी योजना के जारी रहने पर संदेह जताया था।
कांग्रेस सांसद ने बताया अन्याय
कांग्रेस सांसद टी.एन. प्रातपन ने कहा है कि वह MANF को रोकने का मुद्दा संसद में उठाएंगे। उन्होंने सरकार के इस कदम को अन्याय बताते हुए कहा है, ”यह अन्याय है। सरकार के इस फैसले से कई शोधकर्ता आगे अध्ययन करने का अवसर खो देंगे।”
इस बीच जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र संगठन ‘नेशनल स्टूडेंट यूनियन’ के अध्यक्ष एन.एस. अब्दुल हमीद ने कहा है कि यह मुद्दा उन अल्पसंख्यक छात्रों को प्रभावित करेगा, जिन्हें ओबीसी नहीं माना जाता है। हामीद ने कहा है, ”हम केंद्र से विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं। विसंगतियों को दूर करने के बजाय छात्रवृत्ति को पूरी तरह बंद करने से कई ऐसे मुस्लिम, सिख और ईसाई विद्यार्थी प्रभावित होगों, जिन्हें विभिन्न राज्यों में ओबीसी नहीं माना जाता है।”