भारत के संविधन में नशाबन्दी, शराब बन्दी के लिए राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिया गया है। नशाबन्दी के लिए महात्मा गाँधी ने बहुत कुछ प्रयास किये और उनके अनुसार नशा आत्मा और शरीर दोनों को खत्म करता है। संविधान में नशा करने को नागरिकों के मुलभूत अधिकारों में नहीं गिनाया गया है। यह भी ध्यान रहे। गुजरात में सदैव नशाबन्दी रही है। बिहार में माननीय मुख्यमंत्री नितिश जी ने अपने चुनावी वादे को पुनः नशाबन्दी
लगाकर देश को एक नई राह दी है। तमिलनाड़ में भी इस बार चुनाव में वादे के अनुसार मुख्यमंत्री जयललिता ने नशा बन्दी पर आंशिक रूप से प्रोत्साहित किया है, आगे का रास्ता बना रही है। नाॅर्थ ईस्ट में विशेषकर त्रिपुरा में महिलाओं ने शराब बन्दी करवाई है। केरल भी इस तरपफ आगे बढ़ रहा है। नितिश जी का कहना है कि अन्य राज्य भी आगे बढे़ और नशाबन्दी लागू करें।
हाल ही में राजनैतिक पार्टियां इस देश में नशाबन्दी करने पर राजस्व की हानि का बहाना बताते है। अर्थ व्यवस्था बिगडेगी। यूपी में 17000 करोड़ रूपये की कमाई शराब से मिलने वाले टैक्स से है। लोग पूछते हैं कि उसका विकल्प क्या होगा। विकल्प तो है। बिहार में दस हजार करोड़ की शराब का व्यापार था, उत्तर प्रदेश में तो लोग 25 से 30 हजार करोड़ रूपये की शराब पी रहे हैं। अगर यूपी के लोग 25-30 हजार करोड़ रूपये की शराब पीना छोड़कर दूसरी चीजों पर खर्च करेंगे, तो आमदनी कहां जाएगी? क्या इससे बाजार में, व्यापार में गुणात्मक परिवर्तन नहीं आएगा ?
इसके जवाब में यह कहां गया है कि अगर सरकार को शराब के व्यापार से पांच हजार करोड़ रूपये की आमदनी होती थी तो इसका मतलब था कि लोग कम से कम दस हजार करोड़ रूपये की शराब पी रहे थे। शराबबन्दी लागू होने के बाद बिहार में हर साल दस हजार करोड़ रूपया बचेगा। जिसके पास पैसा बचेगा वो उसे खर्च भी करेगा। पैसा बाजार में ही जाएगा। किसी दूसरे काम में पैसा खर्च होगा। आदमी बेहतर खाना खाएगा, ढंग के कपडे़ पहनेगा, बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देगा। इससे भी तो व्यवसाय और बाजार बढे़गा।
दूसरा प्रश्न यह उठाया जाता है कि जहरीली शराब और शराब के गैर कानूनी धंधे को नशाबन्दी पर बढ़ावा मिलता है। इसे रोका जा सकता है। अगर प्रशासन चुस्त हो और नागरिक, विशेषकर महिलाएं शराबबन्दी के लिए, नशाबन्दी के लिए समर्पित हो। कई राज्यों में नारी शक्ति ने इसे करके बताया हैं। बिहार में महिलायें अपने घर की तो निगरानी कर ही रही है, साथ ही पड़ोसियों पर भी नजर रख रही है। उन्हें सरकार का पूरा सहयोग मिल रहा है। बिहार में शान्ति का माहौल सृजित हो रहा है।
दूसरा जवाब यह है कि इसके साथ-साथ बिहार सरकार के अनुसर शराबबन्दी लागू होने पर अपराधें में बहुत कमी आई है। 1 अप्रैल से 25 जून 2015 तक का आंकड़ा और 1 अप्रैल से लेकर 25 जून 2016 तक का आंकड़ा निकलवा कर इसकी तुलना करवाई। पता चला कि संज्ञेय अपराध् में साढे़ चैदह प्रतिशत, हत्या में 38 प्रतिशत, डकैती में 24 प्रतिशत, दंगा-पफसाद में 56 प्रतिशत, फरौती के लिए अपहरण जैसे मामलों में 70 प्रतिशत, बलात्कार के मामलों में 22 प्रतिशत, एससी-एसटी उत्पीड़न के मामले में 23 प्रतिशत की कमी आई। सबसे अधिकत ध्यान देने वाली बात है कि शराब पीने के बाद होने वाली सड़क दुर्घटना में 30 प्रतिशत की कमी आई है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्राी नितिन गडकरी जी रोड़ एक्सीडेंट में कमी लाने के लिए अगर पूरे देश में शराबबन्दी लागू कर दें तो सड़क दुर्घटना में 30 प्रतिशत की कमी खुद ही आ जाएगी। सबसे अधिक मौतें शराब पीने के बाद होने वाले रोड़ एक्सीडेंट से होती है। बिहार में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में भी 33 प्रतिशत की कमी आ गई है।
नशाबन्दी के क्या लाभ हैं? माननीय नितिश कुमार जी, मुख्यमंत्राी बिहार के शब्दों में देखें – महत्वपूर्ण लाभ तो यह भी है कि पहले बिहार में जहां दरवाजे तक बारात पहुंचने में घंटों लगते थे, अब कम समय लगता है। पहले बारात में चलने वाले लोग शराब पी लेते थे। एक ही जगह नाच रहे हैं तो नाच रहे हैं। लड़की पक्ष वाला कुछ बोल नहीं पाता था। अब दरवाजे तक पहुंचने में देर नहीं लगती। तुरन्त ढोल-बाजा बजाया और लग गया दरवाजा। अभी झारखंड में एक मिनिस्टर की बेटी की शादी में बारात का डेढ़ घंटे से इंतजार करते रहे थे। बारात आ ही नहीं रही थी। 200 मीटर दूर से आने वाली बारात को इतना समय लग रहा है, झारखंड में भी शराबबन्दी लागू करवा दी जाये तो पांच मिनट में बारात पहुंच जायेगी। यानी, शराबबन्दी का एक यह भी लाभ तो है ही। शराबबन्दी के दूरगामी पफायदे भी है।
कहीं-कहीं यह कहा जाता हैं कि शराबबन्दी से टूरिज्म को ध्क्का पहुंचता है। इस विषय पर गुजरात के लोगों ने सटीक जवाब दिया कि दारू पीने वाले टूरिस्ट अगर आना चाहें तो आये, न आना चाहें तो जहां दारू मिले वहां जायें। शराब के आधर पर टूरिज्म को बढ़ावा देने से स्थानीय लोागों का चरित्र और सस्ंकृति में विकृति आती है।
अगला प्रश्न यह उठाया जाता है कि शराबबन्दी तथा नशाबन्दी से नशे के व्यापार और उत्पादन में लगे लोग बेरोजगार हो जाते है। उसका जवाब यह है कि वैकल्पिक उद्योग धंधो को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा। शराब की जगह दूध् और जूस को बढ़ावा देना होगा। उसमें भी तो रोजगार मिलेगा। डेरी उत्पादन, पफल, जूस और शीतल पेय, उत्पादनों को बेचने से रोजगार मिलेगा।
भारतीय संस्कृति की अनुपम देन ‘योग’ को विश्व भर में बढ़ावा मिल रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी का यह विश्व मं अति प्रिय विषय है और इसे पूरे विश्व में व्यापकता देने का अटूट प्रयास कर रहे है। शराब पी कर, नशा करके योग नहीं हो सकता। अतः नशामुक्ति, शराबबन्दी होनी ही चाहिए।
नशा सिपर्फ शराब का ही नहीं ड्रग्स का भी बन्द होना चाहिए। भांग, गांजा, जरदा, पान मसाला इत्यादि को बन्द करने से भी स्वास्थ्य की सेवाओं और बिमारियों में कमी होगी। स्वास्थ्य सेवाओं और दवाओं पर होने वाले खर्च बचेगें। देश की महिलाओं, परिवार, बच्चों और विशेषकर सम्पूर्ण सजग नागरिकों की मांग है कि पूरा देश नशामुक्त हो। इससे जीवन, परिवार में खुशी बढे़गी। जीवन बनेगा। परिवार बनेगा।
प्रस्तुत आलेख मुख्यतः माननीय नितिश जी पत्रकार सम्मेलन पर आधरित है।