[bs-embed url=”https://youtu.be/20Fnx3BzstM”]https://youtu.be/20Fnx3BzstM[/bs-embed]
दिल्ली नगर निगम चुनाव 2017 में कुल 272 वार्डों के चुनाव के लिए चुनाव आयोग समेत कई संस्थाओं ने मतदाताओं से वोट अपील करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए। जागरुकता अभियान चलाये। एमसीडी चुनाव में पहली बार मतदाताओं के लिए नोटा बटन का ऑप्शन भी रखा गया। लेकिन मतदाता पोलिंग बूथ से दूरी ही बनाये रखे और परिणाम स्वरुप वोटिंग का प्रतिशत वर्ष 2012 की अपेक्षा कम हो गया। वहीं काफी मतदाताओँ को या तो नोटा का मतलब ही नहीं पता और जिन्हें नोटा का मतलब पता भी है वे चुनाव बाद जनप्रतिनिधियों की कारगुजारी समेत कई अन्य वजह गिनाते हैं जिससे वोटरों का लगातार मोह भंग हो रहा है । वहीं मतदाता नोटा के नाम में बदलाव भी चाहते हैं। वहीं मतदाताओं के बीच जागरुकता की अलख जगा रहे एनजीओ भारतीय मतदाता संगठन के अध्यक्ष डॉ. रिखब चंद जैन भी मानते हैं कि चुनाव बाद प्रतिनिधियों की बेरुखी से मतदाता नाराज रहे हैं। उनके मुताबिक नाराज़ मतदाताओं ने ईवीएम पर नोटा का बटन ना दबाकर घर बैठकर वोट ना देना ही बेहतर समझा। जैन ने मतदाताओं की सहजता के लिए नोटा का नाम बदलने की आवश्यकता पर भी बात की।
हालांकि राजनीतिक दल कांग्रेस के पूर्व विधायक हरिशंकर गुप्ता मौसम की बेरुखी समेत कई अन्य कारणों को वोट प्रतिशत में कमी का कारण मानते हैं। साथ ही वे नोटा के और प्रचार प्रसार करने पर भी ज़ोर दिया।
दिल्ली नगर निगम के 272 में से 270 वार्डों पर हुए चुनाव में मात्र 54 प्रतिशत वोट डाले गये हैं, जो वर्ष 2012 के 58 प्रतिशत वोटिंग से 4 प्रतिशत कम हैं। मतदाताओं में नोटा के प्रति जानकारी का अभाव भी है। साथ ही चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि के कार्यों को लेकर नाराजगी भी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, जहां शिक्षा का प्रतिशत और लिविंग स्टैण्डर्ड हाई माना जाता है, वहां वोट का प्रतिशत कम होना चुनाव आयोग समते कई संबंधित संस्थाओं को सोचने पर मजबूर कर रहा है। आखिर कौन से तरीके अपनाये जाएं जिससे की मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक खींच कर लाया जा सके और मतदान के प्रतिशत में इजाफा हो।