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दिल्ली के बाहरी क्षेत्र में, हरियाणा की सीमा से सटे हरियाली और नहर में बहती कंचन जल धारा के बीच बसा है गोपाल गोसदन ,जहाँ दो दशक से भी ज्यादा से गऊ सेवा का पुण्य कार्य किया जा रहा है। यहाँ आने पर अनुभव होता है की कितने नियोजित तरीके के गौवंश की सेवा की जाती है और गऊ माता की सभी आवश्यकताओं का कितनी तत्परता के साथ ख्याल रखा जाता है। गोपाल गोसदन जहाँ गौसेवा ही एक मात्र धर्म है। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही आपको यहाँ एक अद्भुत शांति और सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है। चारो ओर हरियाली, साफ़ सफाई और रख रखाव का पूरा ख्याल रखते गौसेवक और इन सब के बीच वास कर रही हजारों की संख्या में गौमाता के दर्शन। करीब सोलह एकड़ क्षेत्र की हरियाली में फैले गोपाल गोसदन में चारो तरफ गोवंश के रहने के लिये आदर्श माहौल दीखता है। कहते हैं जहाँ गाय बसते हैं वहाँ साक्षात कृष्ण भगवान् का वास होता है और इसी को ध्यान रखते हुए गौशाला के प्रांगण में ही राधे-कृष्ण का मंदिर भी बना हुआ है जहाँ समय समय पर पूजा पाठ और हवन होते रहते हैं। गाय एक बहुउपयोगी पशु ही नहीं बल्कि भारतीय परिवेश में गाय को माँ का स्थान दिया गया है। गाय के दूध से बनने वाले उत्पाद तो हमारे जीवन में ख़ास महत्व रखते ही हैं साथ ही साथ गाय के मल मूत्र से बने उत्पादों का भी धार्मिक और स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं में विशिष्ठ महत्त्व है। श्यामा गाय को स्वयं भगवन कृष्ण की चहेती बताया जाता है और ये गाय दुर्लभ प्रजाति की होती हैं। इतनी बड़ी व्यवस्था को गौशाला से जुड़े लोग , सम्मानित ट्रस्टी गण और संरक्षक कमेटी के लोग परस्पर सहयोग करते हुए पूरी निष्ठा के साथ संचालित करते आये हैं।गोपाल गोसदन में सैर करना ही सुखद अनुभूति है तथा इसका सदस्य होना भी सम्मान की बात है।