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नार्थ दिल्ली के पीरागढ़ी जेजे कैंप का रहने वाला गरीब परिवार अपने नवजात बच्चे को नहीं बचा पाया। इस परिवार का अब सरकारी अस्पताल पर से भरोसा उठ गया है। जिस बच्चे को इस माँ ने अपनी कोख में पाला वह सरकारी अस्पताल की लापरवाही और सुविधाओं की कमी की भेंट चढ़ गया। पीरागढ़ी स्लम बस्ती में रहने वाली गर्भवती तुलसी मंगोल पूरी के संजय गाँधी अस्पताल में पिछले कई दिनों से डिलीवरी पेैन की शिकायत लेकर अस्पताल जाती थी, लेकिन अस्पताल हर बार दर्द की दवा देकर भेज देता था। फिर जब तेज़ दर्द हुआ तो पास की दाई को बुलाना पड़ा और इस महिला ने घर में ही एक सात माह के बच्चे को जन्म दे दिया। कुछ घंटे के बाद बच्चे को साँस लेने की शिकायत हुई, तो यह परिवार नवजात को लेकर अस्पताल पहुँचा, लेकिन डॉक्टरों ने फिर इसे गंभीरता से नहीं लिया और बच्चे को सामान्य बताया। आरोप है कि डॉक्टर बच्चे को ठीक से अटेंड नहीं कर रहे थे। इस परिवार को लगा की बच्चे की जान खतरे में है तो बच्चे को वहां से लेकर पास के अंबेडकर अस्पताल की ओर दौड़ पड़े। इनके पास एम्बुलेंस भी नहीं थी। लिहाज़ा ये बच्चे को ई-रिक्शा में लेकर ही चल पड़े। इनकी किस्मत खराब थी की ई-रिक्शा भी ट्रैफिक जाम में फंस गया और बच्चे की रास्ते में ही मौत हो गई । मृतक बच्चे के मात- पिता का आरोप है की अस्पताल में डॉक्टरों ने बच्चे को अटेंड करने की बजाय आपस में मजाक और मोबाइल पर बात कर रहे थे। इस घटना के सामने आने के बाद बीजेपी ने भी दिल्ली सरकार पर तंज कसे। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली सरकार से त्याग पत्र ही मांग लिया। इस मामले पर संजय गांधी अस्पताल प्रशासन कैमरे पर तो कुछ भी बोलने से मना कर दिया, लेकिन अस्पताल के चिकित्सा अधिक्षक ने कहा कि बच्चे को अस्पताल लाया जरूर गया था, लेकिन परिवार ने बच्चे को भर्ती नहीं कराया। बच्चे की हालत गंभीर बताकर खुद ही बच्चे को लेकर दूसरे अस्पताल चले गए। बहरहाल इस मामले में अस्पताल जो भी सफाई दे, लेकिन इस घटना ने साफ़ कर दिया है की देश की राजधानी दिल्ली में सरकारें चाहे जो दावा करें, लेकिन ऐसी घटनाएं उनके दावों की पोल खोलते नजर आतीं है। दिल्ली जैसे शहर में यदि आज भी महिला की डिलीवरी दाई से हो , सरकारी अस्पताल पर भरोसा न हो तो यह भी कम शर्मनाक नहीं है।