Sunday, November 17, 2024
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 पर्दों पर इतिहास की छाप

परिचय

इतिहास ना जाने कितनी ही कहानी, कितने ही किस्से अपने आप में समेटे हुए आज भी बढ़ता जा रहा हैं। वो हर विशिष्ट घटनाऐं जो बीते हुए समय में घटित हुई हो वो इतिहास बन जाती हैं। इतिहास शब्द से तात्पर्य “यह निश्चय था” से हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो वो विशिष्ट घटनाऐं जो भूतपूर्व अर्थात जो आज से पहले हो चुकी हैं इतिहास हैं। इतिहास के माध्यम से हम पुराने समय को और भी अच्छे से जान पाते हैं, कई वर्षों पूर्व के समय में क्या-क्या हुआ, उस समय की सांस्कृति, लोक गीत, विशिष्ट व्यवाहर, तथा उस समय की प्रचलित बातों को जान पाते हैं। जिससे पुराने समय को समझना और भी आसान हो जाता हैं। जिन ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्यों के आधार पर प्रमाणित किया जाता हैं केवल उसे ही इतिहास में स्थान मिलता है।

इतिहास का प्रभाव

लोगों में इतिहास को जानने की उत्सुक्ता बनी रहती हैं और इसका सबसे अधिक असर भारतीय पर्दों पर दिखाई देता हैं फिर चाहें वो छोटा पर्दां हो या बड़ा पर्दा। हालांकि इतिहास को समेटा नहीं जा सकता परंतु फिर भी टेलीविज़न और सिनेमा, दोनों में इतिहास के  कुछ पहलुहों को दर्शाने की निरंतर कोशिश की जाती रही हैं।

ऐतिहासिक फिल्मों की बात करें तो जोधा अकबर (2008), बाजीराओ मस्तानी (2015), लगान (2001), मगंल पांडे (2005), पद्मावत (2018), आदि जैसी बहतरीन फिल्में हैं जो दर्शकों के दिल में अपनी जगह बना पाई और आज भी इन फिल्मों को लोग देखना पसंद करते हैं। वहीं बात करे टेलीविज़न की तो इतिहास को दिखाने में टेलीविज़न भी फिल्मों से किसी मामले में कम नहीं हैं। यहां भी एक के बाद एक बहतरीन धारावाहिक देखें जा सकते हैं। जिसमें जोधा अकबर, झॉसी की रानी, धरती का वीर योद्धा – पृथ्वीराज चौहान, पेशवा बाजीराओ, धरती का वीर पूत्र – महाराना प्रताप, पोरस जैसे बहुत ही अच्छे ऐतिहासिक धारावाहिक देखें जा सकते हैं। फिल्मों और धारावाहिक में जो सबसे बड़ा अंतर हैं वो ये की फिल्मों में समय निर्धारित होता हैं तथा फिल्म को उसी समय में खत्म करनी होती हैं परंतु धारावाहिक में यह कई दिनों या उससे अधिक समय तक चलते हैं। यही नहीं फिल्म को एक दिन में पूरा देखा जा सकता हैं परंतु धारावाहिक को एक दिन में देखना सम्भव नहीं हैं।

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