Friday, November 22, 2024
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मुखर्जी नगर कांड से पुलिस पर क्यों उठे सवाल

मुखर्जी नगर में ग्रामीण सेवा और पुलिसवालों के बीच हुई मारपीट और उसके बाद बने हालात ने दिल्ली पुलिस के काम करने के तरीके पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। इस मामले में दिल्ली पुलिस का रवैया शुरुआत से ही अनप्रोफेशनल रहा। देश की सबसे तेज तर्रार कही जाने वाली दिल्ली पुलिस को ग्रामीण सेवा के एक अदने से ड्राइवर ने इस तरह से धोबी पछाड़ दिया है कि उससे अब न तो उठते बन रहा है और न ही जमीं पकड़ते। थाने में ही अपने एसीपी की धुनाई और तीन को सस्पेंड करने के बाद भी पुलिस को अपना थाना बचाने के लिए अर्धसैनिक बलों की शरण में है।  ये दिल्ली पुलिस है। 

जिस दिल्ली पुलिस के भरोसे न सिर्फ पौने दो करोड़ आम शहरी, बल्कि सांसद, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कई देशो के राजदूत रहते हैं, जिन पर राजधानी को आतंकियों के नापाक मंसूबों से बचाने की जिम्मेदारी रहती है उसके बहादुर जवानो की बानगी तो देखिए।  कैसे एक अधेड़ शख्स के सामने आधा दर्जन दुम दबाकर भागते नजर आ रहे हैं।  ध्यान से देखिए दिल्ली पुलिस के इन बहादुर जवानो के पास सरकारी डंडा भी मौजूद है, लेकिन इसके बाद भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही कि वह इसके करीब भी आए। जब इसे एक पुलिसवाले ने पीछे से पकड़ लिया, उसके बाद भी बहादुर जवान उसके करीब जाने और डंडा भांजने की हिम्मत नहीं जुटा सके। 

इस ड्राइवर को काबू में करने के बाद इन जवानो ने जिस तरह से ड्राइवर और उसके बेटे पर बहादुरी दिखाई उसने  पुलिस की ट्रेनिंग पर भी सवाल खड़ा कर दिया। इसे तो एक बार को छोटे अधिकारीयों की अपरिपक्वता माना जा सकता है, लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने तो पुलिस की पूरी पोल ही खोल कर रख दी। महज कुछ सौ लोगों ने पूरे महकमे को उसकी औकात बता दी। थाने में घुसकर एसीपी को पीट डाला, पुलिस के वाहन को तोडा गया और पिछले 60 घंटों से पूरे थाने को बंदी बना लिया है. भीड़ को मानाने के लिए पुलिस अपने तीन जवानो को सस्पेंड भी कर दिया है  लेकिन 60 घंटे बाद भी देश की सबसे तेज तर्रार पुलिस भीड़ से अपना थाना तक नहीं छुड़ा पाई है।

इस मामले में पुलिस ने दो एएसआई और एक कॉन्स्टेबल को सस्पेंड कर भीड़ को शांत कराने की कोशिश की।  लेकिंन इससे पुलिस अपने ही दाव में घिर गई।  इस सस्पेंशन तो भीड़ तो मानी नहीं, उल्टा जवानो में ही गलत मैसेज चला गया, कि इस तरह सरेआम पिटने के बाद भी डिपार्टमेंट उनके साथ नहीं है। अगर जान दाव पर लगाकर आरोपी को पकड़ने के बाद भी सस्पेंड होना है तो फिर आरोपी को पकड़ा ही क्यों जाए। साथ ही अगर पुलिस इसी तरह से भीड़ के आगे झुकेगी तो फिर उसकी सुनेगा कौन।   

इस मामले में पुलिस की सबसे बड़ी असफलता रही कि वह इसे धार्मिक जामा पहनने से नहीं बचा सकी। मामले के धार्मिक रंग पकड़ते ही इससे भीड़ जुड़ गई। इसकी वजह से पुलिस को  बैकफुट पर आना पड़ा। पुलिस के लिए हालात तब बद से बद्तर हो गई जब इस मामले पर राजनितिक रंग भी चढ़ गया। इससे गृहमंत्री अमित शाह के लिए भी असहज स्थित बन गई है जो दिल्ली पुलिस के लिए एक तरफ कुआं एक तरफ खाई जैसा हो गया है। इस मामले में अभी तक जहाँ दो अधिकारी चोटिल हुए हैं तो वहीँ तीन सस्पेंड, ऐसे में अब देखने वाली बात ये है कि ये मामला दिल्ली पुलिस के और कितने जवानों की बलि लेने के बाद शांत होगा।   

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