ये सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि एक ही झटके में राजधानी पूर्व मुख्यमंत्री से सूनी हो गई है। एक साल के अंदर दिल्ली ने मदनलाल खुराना, शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज के साथ ही शासन प्रसाशन के 26 वर्षों के अनुभव को भी हमेशा के लिए खो दिया। बहुत कम लोगों को ही मालूम होगा कि केजीवाल दिल्ली के सातवें और आठवें मुख्यमंत्री हैं। उनसे पहले आधा दर्जन और लोगों ने दिल्ली की सत्ता का नेतृत्व किया है।
यदुवंश के पास थी पहली प्रजत्रांत्रिक सरकार की कमान आजादी के बाद दिल्ली अन्य राज्यों की तरह दिल्ली को भी एक राज्य का दर्जा दिया गया था। राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के पार्ट-सी के तहत 17 मार्च 1952 को पहली बार दिल्ली राज्य विधानसभा का गठन किया गया था। तब दिल्ली के पहले प्रजातान्त्रिक सरकार की कमान यदुवंश के पास थी और उसकी पगड़ी नांगलोई के चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव के सिर पर। वे कॉंग्रेस के बड़े नेता थे और लोकसभा के सदस्य भी। तब विधानसभा में 48 सीटें थीं जसिमे से कॉंग्रेस के 39 और जनसंघ के पास पांच। चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने 1940 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में उन्होने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में ‘भूमिगत नेताओं’ में वे भी थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय वे कई बार जेल गये।उन्हें 7 मार्च 1952 को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई थी। उनका कार्यकाल लेकिन 2 वर्ष 332 दिन का रहा।
सिखों को भी मिली कमान, बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आए सिखों की सबसे बड़ी आबादी दिल्ली में ही थी, जो अब सहानुभूति से हट कर हक़ मांग रही थी। इसलिए 12 फ़रवरी 1955 को दिल्ली की सत्ता का कमान चौधरी ब्रह्म प्रकाश से लेकर कर दरियागंज से कॉंग्रेस के दूसरे बड़े नेता गुरमुख निहाल सिंह को दे दी गई। जो राजधानी के पहले सिख मुख्यमंत्री बने। बता दें की राजस्थान के पहले राजयपाल के पद को सुशोभित करने का श्रेय भी उन्ही को जाता है। लेकिन उनके एक साल और 263 दिन के कार्यकाल के संसद ने 1 अक्टूबर 1956 को विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया। और उन्हें राजस्थान का राजयपाल बना दिया गया।
10 साल रहा राष्ट्रपति शाशन गुरमुख निहाल सिंह के बाद दिल्ली में जो राष्ट्रपति शासन का दौर शुरू हुआ वह करीब दस साल तक यानि कि सितंबर 1966 तक कायम रहा। इसके बाद विधानसभा की जगह 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्यों वाली एक मेट्रोपोलिटन काउंसिल ने ली। हालांकि, दिल्ली के शासन में इस परिषद की भूमिका केवल एक सलाहकार की थी जिसके पास क़ानून बनाने की कोई शक्ति नहीं थी। इसके बाद वर्ष 1991 में संविधान के 69 वें संशोधन के बाद केंद्र-शासित दिल्ली को औपचारिक रूप से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की पहचान मिली।
भाजपा को कमान संविधान में संशोधन के बाद वर्ष 1993 में विधानसभा के 70 सीटों के लिए चुनाव हुआ। इसमें भाजपा को 49, कॉंग्रेस को 14, जनता दल को 4 सीटें मिलीं जबकि तीन सदस्य निर्दलीय थे। इस प्रचंड जीत को भाजपा ठीक से संभाल नहीं पाई और पांच साल के कार्यकाल में ही तीन तीन मुख्यमंत्री बदल डाले। सबसे पहले कमान पंजाबी वोट बैंक के मैनेजर और मोती नगर से विधायक मदनलाल खुराना को मिली। दो दिसंबर 1993 को उन्होंने शपथ ली। उन्होंने 2 साल और 86 दिनों तक नेतृत्व किया ।
इसके बाद जाट लॉबी के दबाव में 26 फ़रवरी 1996 को शालीमार बाग से विधायक साहब सिंह वर्मा को सौंप दी गई। लेकिन वे भी इसे 2 साल और 228 दिन से ज्यादा नहीं चला सके।
12 अक्टूबर 1998 को मुख्यमंत्री का पद उनसे छीन कर सुषमा स्वराज को दिया गया जो महज 52 दिन तक ही दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।
कॉंग्रेस मतलब शीला 1998 में हुए चुनाव में भाजपा कॉंग्रेस के हाथों सत्ता गँवा बैठी। 70 सीटों वाली विधानसभा में कॉंग्रेस के हाथ 52 सीटें लगी और भाजपा को केवल 15 सीटों से संतोष करना पड़ा। तब कॉंग्रेस की तरफ से दिल्ली की कमान शीला दीक्षित ने थामी। 3 दिसंबर 1998 को उन्होंने पहली बार शपथ लिया और फिर लगातार दो बार इसे दोहराया। इस दौरान हर चुनाव में भाजपा पहले से ज्यादा मजबूत हुई, लेकिन आंकड़ा 23 के पार न जा सका। क्योंकि 15 साल के अपने शासनकाल में दिल्ली में कॉंग्रेस और विकास दोनों का ही मतलब शीला थीं।
लेकिन वर्ष 2010 में हुए कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान भ्रष्टाचार के लगे आरोपों और देश भर में कॉंग्रेस के खिलाफ बने माहौल में वर्ष 2013 के चुनाव में वह अरविन्द केजरीवाल के हाथों सत्ता गँवा बैठीं। नई दिल्ली विधानसभा सीट से वह खुद भी चुनाव हार गईं। क्रांति काल वर्ष 2013 में पूरा देश क्रांति के मूड में था। भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के नाम पर दिल्ली से इसकी शुरुआत हुई और राजनीति में नई जन्मी आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिलीं। हालाँकि इस वर्ष 1993 के बाद भाजपा ने सबसे बढ़िया प्रदर्शन करते हुए 31 सीटें जीतीं थीं। लेकिन 8 सीटें जीतने वाली कॉंग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन दे कर भाजपा को एक बार फिर सत्ता से दूर कर दिया। 28 दिसंबर 2013 को केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालाँकि कॉंग्रेस की यह यारी ज्यादा दिनों नहीं चली और 49 दिनों के बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद भाजपा के सरकार बनाने से इंकार करने के बाद 363 दिनों तक राष्ट्रपति शासन रहा। इसके बाद वर्ष 2015 में हुए चुनावों में केजरीवाल की पार्टी ने इतिहास रच दिया। उन्हें 70 में से 67 सीटें मिलीं। उनका कार्यकाल 13 फ़रवरी 2020 तक। बता दें कि चौधरी ब्रह्म प्रकाश की मौत वर्ष 1993 में हो गई थी। गुरमुख निहाल सिंह की मृत्यु का कोई सार्वजानिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।30 जून 2007 को शब् सिंह वर्मा का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था। उनके बाद 27 अक्टूबर 2018 ने मदनलाल खुराना का देहावसान हुआ। 20 जुलाई 2019 को शीला दीक्षित का स्वर्गवास हुआ तो 6 अगस्त 2019 को सुषमा स्वराज भी दुनिया छोड़ गईं। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल ही एक मात्र ऐसे जीवित इंसान हैं जिनके पास दिल्ली के मुख्यमंत्री पर रहने का अनुभव है।